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पीलीभीत के इस मंदिर की है प्राचीन मान्यता, हर बार खुदाई में निकल रहीं 11वीं शताब्दी की मूर्तियां

पीलीभीत जंगल के बीचोबीच एक किलोमीटर में फैले प्राचीन मंदिर के गर्भ गृह में जुताई के समय 11 वीं शताब्दी की मूर्तियां व शिलालेख मिले हैं। मंदिर के टीलों से लेकर खुदाई में मिली शिलालेख व मूर्तियों को लेकर पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने निरीक्षण किया।

पीलीभीत, एबीपी गंगा। पीलीभीत के जंगल के बीचोबीच स्थित इलाबास देवल के देवस्थल के छिपे रहस्य से पीलीभीत को नई ख्याति मिल सकती है । बीते दिनों पुरातत्वविद की टीम द्वारा सर्वेक्षण कर  मंदिर के गर्भ गृह में मिली खुदाई के दौरान की मूर्तियों व शिलालेखों की रिपोर्ट भारत सरकार को भेजी जा चुकी है। बताया जाता है कि गांव के लोगों को आज भी खुदाई के समय मूर्तियां व 11वीं शताब्दी के लगभग की शिलालेख मिले हैं, जिसके लिए पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने सर्वे किया है ।
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जंगल के बीच स्थित बीसलपुर तहसील में इलावांस देवल नाम से प्रसिद्ध प्राचीन देव स्थल मंदिर में हर वर्ष भारी मेला लगता है। यूं तो मंदिर के आसपास ग्रामीणों को यहां खुदाई के दौरान खेतों में मूर्तियां व शिलालेख प्राप्त होते हैं। वहीं मंदिर के गर्भ गृह में बने टीले भी अपने में रहस्य छुपाए हुए हैं ।
पीलीभीत के इस मंदिर की है प्राचीन मान्यता, हर बार खुदाई में निकल रहीं 11वीं शताब्दी की मूर्तियां
शिवम कश्यप का कहना है कि वे मंदिर के गर्भगृह  के रहस्य के बारे में बीते दो वर्षों से अध्ययन कर रहे है । जो बीसलपुर तहसील के जंगलों में बना है। उन्होंने पत्र लेखन के माध्यम से जिला प्रशासन को पुरातत्व से जुड़े इस मंदिर के बारे में अवगत कराया। जिसके बाद आगरा की पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने देव स्थल पर आकर खुदाई में मिली खजुराहो जैसी मूर्तियों व मिली शिलालेखों के बारे में ग्रामीनों से बात की। जिसके बाद ऐसा कहा जा रहा है कि  11 वीं शताब्दी से जुड़े इस मंदिर के गर्भ गृह के रहस्य से पीलीभीत को नई ख्याति मिलेगी। बहुत जल्द अन्वेषण के बाद पीलीभीत में दक्षिण भारत के राजा से जुड़ी कहानी को पूरे प्रदेश में जाना जाएगा, ये पीलीभीत जिले के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।
पीलीभीत के इस मंदिर की है प्राचीन मान्यता, हर बार खुदाई में निकल रहीं 11वीं शताब्दी की मूर्तियां
स्थानीय निवासी जगन्नाथ का कहना है कि बीते कई वर्षों से उनके गांव से लेकर दूर-दूर से लोग यहां आते हैं, ये मंदिर कुल देवी के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, जहां हर मनोकामना पूर्ण होती है। हर वर्ष यहां भारी मेले का आयोजन होता है। बीते दिनों पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने यहां आकर खोजबीन कर जांच पड़ताल भी है। विभिन्न समाचार पत्रों ने इसके रहस्य के बारे में कई बातें सामने आई है। जिसको लेकर पीलीभीत को एक नई पहचान मिल पाएगी।
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स्थानीय मंदिर की देखरेख करने वाले व्यक्ति का कहना है कि यहां खेतो की जुताई के समय कई बार मूर्तियां मिली हैं, जिनको मंदिर में रख दिया जाता है। बीते दिनों खेतों में टीले की खुदाई में भी नटराज भगवान की मूर्तियां मिली हैं।
पीलीभीत के जंगलों में वसा इलावांस देवल के प्राचीन मंदिर को अब पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम के सर्वे के बाद पीलीभीत को नई पहचान मिल सकेगी । साथ ही मंदिर में मिली मूर्तियां व शिला लेखों का संरक्षण कर लाखों लोगों की जुड़ी आस्था की धरोहर को संरक्षण मिल सकेगा।
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वहीं, पीलीभीत जिले के गांव इलाहाबाद देबल की गलियों और खेतों में भी गौरवमई इतिहास की तमाम निशानियां बिखरी पड़ी हैं। आजादी के 70 साल बाद भी विकास की बाट जो रहा यह गांव 10वीं शताब्दी में राजपूतों की आस्था का प्रमुख केंद्र था। जहां करीब 1 किलोमीटर के दायरे में फैला भगवान शिव और माता पार्वती का विशाल मंदिर था। राजपूत माता पार्वती को वनदेवी मानकर उनकी पूजा करते थे । वक्त थपेड़े खाकर गुमनामी के अंधेरे में गुम हुए इलाहाबाद देबल  के बारे में सबसे पहले 1829 में अंग्रेज इतिहासकार ने लिखा था, इसके बाद 1837 में जेम्स प्रिंसेप में सरेंडर और अट्ठारह सौ में मंदिर के बारे में लिखा। अंग्रेजों के समय में इस पर खूब काम हुआ, मगर आजादी के बाद प्रदेश और देश की सरकार ने ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इलाहाबाद की चिंता नहीं की ।
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