पीलीभीत, एबीपी गंगा। पूरे देश में 15 दिनों को पितृ पक्ष के रूप में मनाया जाता है. जिसको लेकर लोग अपने पूर्वजों और स्वर्ग सिधार चुके लोगों को खुश करने के लिए अपने तर्पण के साथ ही पकवान बनाकर दान अथवा कौवे को खिलाकर पुण्य कमाने का काम करते हैं. लेकिन पीलीभीत के वृद्धाश्रम में रहने वाले करीब 19 बुजुर्ग ऐसे भी हैं, जिनके अपनो ने ही कमजोर बेबसी के लिए बेसहारा छोड़ दिया है. उनको इंतजार है अपनों के साथ रहने का, अपनी सेवा का, जो आज उनके बेटे व बहुएं कामयाब होकर भी नहीं कर रहे हैं.


इन बुजुर्गों को इनके बच्चों ने अपने से दूर कर दिया है. इनके बच्चों के पास अमीरी तो बहुत है, सेवा भी करेंगे लेकिन उनके मां-बाप आज इस तर्पण के समय अपने बच्चों की सेवा के लिए तड़प रहे हैं. उन्हें आस है कि शायद उन्हें भी उनके बच्चे सेवाभाव से गले लगाकर उनके सपनों के पंखों की उड़ान को पूरा करेंगे.


औलाद को कामयाब किया पर खुद...
यहां रहने वाले पीलीभीत के अशोक गुप्ता और उनकी पत्नी सितारा गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने दो बेटों सहित तीन बेटियों को पढ़ा लिखा कर कामयाब कर दिया. लेकिन आज वो पूछते हैं कि ऐसे बेटे ही किस काम के, जिन्होंने जीते जी अपने माता-पिता का तर्पण कर दिया. उनका कहना है कि मरने के बाद तर्पण का दिखावा करने से कहीं अच्छा है कि आज की युवा पीढ़ी अपने माता पिता की सेवा करे न कि उनके मरणोपरांत इस सामाजिक दिखावे का चोला पहन कर तर्पण की सेवा करें. आज उनके दोनों बेटों में से कोई उनसे मिलने तक नहीं आता. यही वजह है कि आज वे वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हैं. वे करीब 05 सालों से यहां जीवन व्यतीत कर जीवन के अंतिम पड़ाव इंतजार कर रहे हैं.


दोनों में से कोई बेटा मां की सुध नहीं लेता
यहीं रहने वाली शहर की मुन्नी गुप्ता के भी दो बेटे हैं. वे बताती हैं कि एक बेटा अजय सरकारी फैक्ट्री में नौकरी कर बीवी-बच्चों के शौक पूरे कराने में लग गया है तो वहीं दूसरा बेटा संजय अपनी सिलाई कढ़ाई के लिए जिले में फेमस हो गया है. हालांकि दोनों में से कोई भी मां की सेवा नहीं कर सका और उन्हें दो वक्त की चैन की रोटी नहीं खिला सका. वे बताती हैं कि इसी सेवा की आस लिए उनके पति का चार साल पहले देहांत हो गया. उनकी अस्थियां और उनकी आत्मा आज भी अपने बेटे के हाथों तर्पण के लिए तरस रहीं है.


मां-बाप की सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य
पिछले करीब 20 वर्षों से वृद्धाश्रम के अध्यक्ष अनिल महेंद्रू का कहना है कि कुछ लोग इस पितृ माह में कौवे और लोगों को खाना खिलाकर दान की बात करते हैं. वहीं, कुछ फादर्स डे, मदर्स डे पर झूठी समाजिक शान शौकत का दिखावा करते हैं. वे कहते हैं कि ये सब दिखावा तो है. ऐसा नहीं होता तो वृ्द्धाश्रम में रहने वाले 19 बुजुर्ग भी किसी के माता-पिता हैं. वे कहते हैं कि लोगों को अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए, वही पितृ पक्ष के लिए सेवा है. जीते जी मां-बाप की सेवा ही धर्म है और वही इस धरती पर पुण्य का काम है.


मां आश्रम में बेटा एनजीओ में सेवा कर रहा
बरेली की रहने वाली सुशीला देवी बताती हैं कि उनका बेटा दिल्ली के बड़े एनजीओ में काम करता है. वह लोगों की सेवा करता है. वहीं, उनकी पुत्रवधू एक शिक्षक है. हालांकि, वो पूछती हैं कि लोगों की ये सेवा और बहू की शिक्षा किस काम की है जब उन्होंने अपनी बूढ़ी मां को वृ्द्धाश्रम में छोड़ रखा है. वह आज भी उनके आने का इंतजार करती हैं.


पीलीभीत की कहानी को देख कर आपको समझ आ गया होगा कि इन बुजुर्ग आंखों में इंतजार है. वे जीते जी अपने बेटों और बेटियों से सेवा करवाना चाहते हैं लेकिन इनकी पीड़ा सुनकर ऐसा लगता है कि इस कलयुगी काल में सेवाभाव जैसा शब्द मानो सिर्फ पढ़ने और बोलने को रह गया है.


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