प्रयाग में मुंडन संस्कार के साथ शुरू होता है पिंडदान, पितरों को मिलती है जीवन- मरण के बंधन से मुक्ति
प्रयाग में पितृ पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिये पिंड दान किया जाता है। हिंदू धर्म की मान्यता के मुताबिक यह परंपरा तीन जगह ही होती है। प्रयाग, काशी और गया।
प्रयागराज,मोहम्मद मोइन। पुरखों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए एक पखवाड़े तक चलने वाला पितृ पक्ष आज से शुरू हो गया है। पितृ पक्ष के पहले ही दिन तीर्थराज प्रयाग के संगम पर हजारों श्रद्धालु पिंडदान व तर्पण कर रहे हैं और त्रिवेणी की धारा में डुबकी लगाकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। पितृ मुक्ति का प्रथम व मुख्य द्वार कहे जाने की वजह से प्रयाग में पिंडदान का विशेष महत्व है। हालांकि प्रयागराज में आई ज़बरदस्त बाढ़ की वजह से संगम आने वाले श्रद्धालुओं को कुछ दिक्कतों का सामना भी करना पड़ रहा है।
हिन्दू धर्म के मुताबिक पिंडदान की परम्परा सिर्फ प्रयाग, काशी और गया में ही है, लेकिन पितरों के श्राद्ध कर्म की शुरुआत प्रयाग के मुंडन संस्कार से ही शुरू होती है। पितृ पक्ष के पहले दिन आज प्रयाग के संगम तट पर देश के कोने-कोने से आये हजारों श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति व मुक्ति के लिए श्राद्ध कर्म कर रहे हैं। यहां मुंडन कर अपने बालों का दान करने के बाद सत्रह पिंडों को तैयार कर उनकी पूजा अर्चना की जा रही है और विधि विधान से उन्हें संगम में विसर्जित कर बाकी रस्मे अदा की जा रही हैं। हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष को शुभ कामों के लिए वर्जित माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म कर पिंडदान और तर्पण करने से पूर्वजों की सोलह पीढ़ियों की आत्मा को शान्ति और मुक्ति मिल जाती है। इस मौके पर किया गया श्राद्ध पितृ ऋण से भी मुक्ति दिलाता है। मान्यताओं के मुताबिक़ कोई भी व्यक्ति जीवन में एक बार ही पिंडदान कर सकता है। हालांकि तर्पण और दान आदि की रस्मे कई बार निभाई जा सकती हैं।
हिन्दू धर्म शास्त्रों में मोक्ष यानी मुक्ति के देवता भगवान विष्णु माने जाते हैं। तीर्थराज प्रयाग में भगवान विष्णु बारह अलग-अलग माधव रूप में विराजमान हैं। मान्यता है कि गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती की पावन त्रिवेणी में भगवान विष्णु बाल मुकुंद स्वरुप में साक्षात वास करते हैं। यही वजह है कि प्रयाग को पितृ मुक्ति का पहला और सबसे मुख्य द्वार माना गया है। इसके अलावा काशी को मध्य व गया को अंतिम द्वार कहा जाता है। पितरों के श्राद्ध कर्म की शुरुआत प्रयाग में ही मुंडन संस्कार से होती है। यहां मुंडन कर अपने बालों का दान करने के बाद ही तिल, जौ और आते से बने सत्रह पिंडों को तैयार कर पूरे विधि विधान के साथ उनकी पूजा अर्चना कर उसे गंगा में विसर्जित करने और संगम में स्नान कर जल का तर्पण किये जाने की परम्परा है। ऐसी मान्यता है कि संगम पर पिंडदान करने से भगवान विष्णु के साथ ही तीर्थराज प्रयाग में वास करने वाले तैंतीस करोड़ देवी-देवता भी पितरों को मोक्ष प्रदान करते हैं।
धार्मिक महत्व की वजह से ही पितृ पक्ष के पहले ही दिन हजारों देश के कोने-कोने से आये हजारों श्रद्धालु तीर्थराज प्रयाग में संगम पर पिंडदान और तर्पण कर रहे हैं। हालंकि यहां पर श्रद्धालुओं के आने और पिंडदान करने का सिलसिला कल पूर्णिमा से ही शुरू हो गया था। प्रयागराज में संगम का पूरा क्षेत्र इन दिनों गंगा और यमुना नदियों में आई ज़बरदस्त बाढ़ में डूबा हुआ है, इससे श्रद्धालुओं को खासी दिक्कतों का सामना ज़रूर करना पड़ रहा है। हालांकि दिक्कतों के बावजूद श्रद्धलुओं की आस्था में कहीं कोई कमी नहीं नज़र आ रही है।
हिन्दू धर्म की मान्यता के मुताबिक कोई भी व्यक्ति पूरी तरह नहीं मरता है और वह बार-बार जन्म लेता है, इसलिए पितृ पक्ष में पिंडदान और तर्पण कर पुरखों को खुश करने की परम्परा सदियों से चली आ रही है।