(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Pithoragarh News: नवरात्र खत्म होने के बाद चौमू देवता का डोला पहुंचा मंदिर, कंधों पर उठाकर की विदाई
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में चौमू देवता के मंदिर चौपखिया में रिहायशी गांव के लोगों ने पूजा अर्चना करने के बाद मां भगवती, चौमूं देवता का डोला रियांसी गांव से कंधों पर उठाकर मंदिर पहुंचाया.
Uttarakhand News: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में चौमू देवता (Chomu Devta) के मंदिर चौपखिया में रिहायशी गांव के लोगों ने पूजा अर्चना करने के बाद मां भगवती, चौमूं देवता का डोला रियांसी गांव से कंधों पर उठाकर मंदिर पहुंचाया. शारदीय और चैत्र नवरात्रि की नवमी के दिन हर वर्ष यहां पर चौपखिया नाम से प्रसिद्ध धार्मिक, व्यापारिक मेले का आयोजन होता है. इसके बाद सोरघाटी के इस मेले का समापन हो जाता है. चौमूं देवता की मान्यता पिथौरागढ़ की सोरघाटी ही नहीं नेपाल मे भी मानी जाती है. कहा जाता है चौमूं देवता सात भाई थे जिनमें से एक भाई रियांसी के चौपख्या में रहने लगा, एक भाई लोहाघाट के चमदेवल में, एक पंचेश्वर और अन्य अल्मोड़ा जिले मे स्थापित है. चौमूं देवता, मां भगवती का आर्शीवाद लेने यहां हजारों की संख्या मे श्रद्धालु पहुंचते हैं.
सदियों से चला आ रहा है मेला
मुख्य पुजारी भुवन चंद्र जोशी ने बताया सदियों से मेला चला आ रहा है. पूरी सोरघाटी के साथ नेपाल से भी लोग जुड़े हुए हैं. काली नदी के किनारे के सीमांत क्षेत्र है,अपूर्व आस्था का केंद्र रहा है. चौमू चतुर्बाहु सात भाई थे,जिनमें से एक भाई चौपखिया में स्थित है. चौमू चतुर्बाहु शिव के गण हैं. इनको पूत और दूध का देवता माना जाता है. मान्यता है कि अगर कोई महिला पुत्र की चाह चाहती है तो यहां आकर कर चौमूं चतुर्बाहु का जो डोला उठता है नवमी के दिन उस डोले को स्पर्श करने मात्र से ही उसकी मनोकामनाएं की पूर्ति होती है. व्यापारिक मेला होने से नेपाल से भौरा, हल्दी से खेती के डोका, हल और अन्य खेती के उपकरण यहां पर बेचने के लिए लाते थे. मान्यता है कि एक साल डोला तल्ली रियांसी से उठेगा और भगवती का डोला मड़ेगांव मल्ली रियांसी से उठेगा.
स्थानीय निवासी आन सिंह खडायत ने बताया यहां पर शिवजी का मंदिर स्वस्फटित है. जिसे नेपाल से कोई आदमी मूर्ति लेकर आ रहा था, इस स्थान पर बैठने के बाद वो उसे उठा नहीं पाया. सौन पट्टी का जितना भी एरिया है सब जगह चौमूं देवता हैं अल्मोड़ा में भी मंदिर है. लोहाघाट मे भी ये मात्र हमारा देवता ही नहीं अंग्रेजों ने इसे राजा की मान्यता भी दी थी. हम हर वर्ष दो दो महीने पूजा करते है.