Varanasi 2023: काशी को विश्व की प्राचीन नगरी कहा जाता है और सनातन संस्कृति का मूल आधार भी इस शहर के कण कण में देखा जा सकता है. यही वजह है कि चाहे काशी हो या फिर सनातन संस्कृति, केवल हिंदू धर्म के लोग नहीं बल्कि विश्व के अलग-अलग धर्म को मानने वाले लोग भी इसके प्रत्यक्षदर्शी होने के लिए पूरी आस्था के साथ विदेशों से भी चले आते हैं. पितृपक्ष के मौके पर धर्म नगरी काशी में कुछ ऐसी ही तस्वीर देखी जा रही है, जब रुसी नागरिक इवगिनी अपने पिता के श्राद्ध करने के लिए बनारस के घाट पहुंचे थे.


रूस के रहने वाले 40 वर्षीय इवगिनी हिंदू संस्कृति और परंपरा को मानते हैं. बीते कई वर्षों से वह अपने करीबीयों और पिता के श्राद्ध के लिए बनारस आ रहे हैं. इसी कड़ी में इस पितृपक्ष पर भी इवगिनी बनारस के घाट पर अपने पिता व अन्य परिजनों के श्राद्ध के लिए पहुंचे. इस दौरान पारंपरिक वेशभूषा और विधि विधान से उन्होंने अपने पिता का श्राद्ध किया. बातचीत के दौरान इवगिनी ने कहा कि हमारी आस्था है कि सनातन संस्कृति के अनुसार श्राद्ध और तर्पण से मृतक लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और काशी को मोक्ष नगरी भी कहा जाता है. इसीलिए हम अपने पिता जिनका निधन 2018 में हो गया था और अन्य परिजनों के श्राद्ध के लिए काशी आए हैं. इसके अलावा इवगिनी ने अपना सनातन नाम मोक्षन भी बताया.


सनातन संस्कृति पर इवगिनी को पूरी आस्था- पुरोहित 


रूसी नागरिक का विधि विधान से बनारस के घाट पर श्राद्ध कराने वाले पुरोहित श्रीकांत पाठक ने बातचीत के दौरान बताया कि- इवगिनी एक रूसी नागरिक हैं जिन्हें भारतीय हिंदू संस्कृति और परंपराओं पर पूरी आस्था है. वह अपने पिता और परिजनों के श्राद्ध के लिए काशी आए हैं. इवगिनी ने पूरे विधि विधान और बताएं नियमों के अनुसार श्राद्ध किया है. उनका मानना है कि पितृपक्ष में अपने पिता और परिजनों का काशी में श्राद्ध करने से उन्हें जन्म मृत्यु से मुक्ति यानी मोक्ष की प्राप्ति होगी.


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