Pitru Paksha 2024: भारत को रीति रिवाज परंपराओं वाला देश माना जाता है और सबसे प्रमुख बात की इस विराट सनातन संस्कृति में मनुष्य के साथ-साथ पेड़ पौधे जीव जंतु पशु पक्षियों का भी विशेष महत्व है. 17 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हो चुका है, लोगों द्वारा अपने पूर्वजों के श्राद्ध के लिए विधि विधान से पूजन किया जा रहा है. लेकिन इसी दौर में श्राद्ध पूजन करने वाले परिवारों के बीच एक खास बात को लेकर भी चर्चाओं का दौर शुरू हो चुका है. उनका कहना है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध का भोजन कराने के उद्देश्य से कौवा मिल ही नहीं रहे हैं. इसकी प्रमुख वजह बताई जा रही है कि आसमान में इनकी संख्या अब लगभग न के बराबर हो चुकी है.
वर्तमान समय में काशी के पिशाच मोचन कुंड पर श्राद्ध पूजन करा रहे पंडित विश्वकांताचार्य ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में बताया कि विशेष तौर पर पितृपक्ष में पितरों की शांति के लिए पंचबली भोग (भोजन) निकाला जाता है. जिसमें कौवा, कुत्ता, चींटी, गौ और देवता को भोग के रूप में भोजन निकाला जाता है. लेकिन इस बार बेहद हैरान करने वाला विषय है कि पक्षी कौवा का दिखना बेहद दुर्लभ हो चुका है.
श्रद्धालुओं के मन में शंका
श्राद्ध के लिए आने वाले श्रद्धालु कौवा के लिए भोग के रूप में भोजन तो निकाल रहे हैं, लेकिन कौवा के न आने से श्राद्ध पूजन को लेकर श्रद्धालुओं के मन में शंका होने लग रही है. पितृपक्ष में कौवा के भोजन ग्रहण करने का विशेष महत्व है, माना जाता है कि निकाला गया श्राद्ध का भोजन कौवा के द्वारा ग्रहण कर लिया गया तो पितरों द्वारा भी भोजन कर लिया गया है. ऐसे में इस बार कौवा के न दिखने की वजह से श्रद्धालु काफी चिंतित नजर आ रहे हैं कि कहीं उनका पूजन अधूरा तो नहीं रह गया.
वहीं इस मामले में जब एबीपी न्यूज ने BHU के जूलॉजिस्ट सलिल दुबे से बातचीत की तो उनका कहना है कि इसमें कोई संदेह नहीं कि बीते वर्षों में पक्षी कौवा की संख्या में काफी कमी देखी गई है और यह चिंताजनक है . सबसे हैरानी वाली बात तो यह है कि कौवा एक ऐसा पक्षी है जो बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रहता है. इनकी कम होती संख्या के पीछे असली वजह तेजी से बढ़ता शहरीकरण और वृक्षों का कटाव है.
दूसरे पक्षियों के ही घोसले में अंडे देना, सुरक्षित रहने के लिए यह पक्षी जाना जाता है. वर्तमान समय में अब ऐसे अनेक पक्षी हैं जो खुद के घोसलों के लिए भी इधर से उधर भटकते नजर आ रहे हैं. ऐसी स्थिति में इनके जीवन पर भी असर पड़ना स्वाभाविक है . निश्चित ही इस विषय में गंभीरता से ध्यान देना चाहिए नहीं तो आने वाले समय में इनकी प्रजाति बिल्कुल विलुप्त हो जाएगी.