नई दिल्ली: कोरोना काल में घर लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए मोती की खेती एक सुनहरे अवसर के रूप में सामने आई है. वाराणसी के नारायणपुर गांव में मोती की खेती करने वाले तीन युवाओं ने लोगों के लिए मिसाल पेश की है. इन युवाओं ने दिखाया कि अगर सही दिशा में परिश्रम हो तो मिट्टी से मोती उगाए जा सकते हैं. नारायणपुर गांव के युवक मोती की खेती करते हुए लोगों को इसके प्रति प्रोत्साहित भी कर रहे हैं.


पीएम मोदी ने किया ट्वीट
एबीपी गंगा ने हाल ही में नारायणपुर गांव में मोती की खेती करने वाले तीन युवाओं की खबर को प्रमुखता से दिखाया था. पीएम मोदी ने भी इस खबर को लेकर ट्वीट किया है. पीएम ने ट्वीट कर कहा कि ''वाराणसी के नारायणपुर गांव में मोती की खेती करने वाले तीन युवाओं ने हर किसी के लिए एक मिसाल पेश की है. इन युवाओं ने यह दिखाया कि अगर सही दिशा में परिश्रम हो तो मिट्टी से मोती उगाए जा सकते हैं...''





करीब 40 रुपए का खर्च आता है
बता दें कि एक मोती के उत्पादन से लेकर बाजार तक पहुंचने में करीब 40 रुपए का खर्च आता है. वहीं मोती स्थानीय बाजार में 300 से लेकर 400 रुपए तक में बेची जाती है. मोती की खेती में करीब 12 से 18 महीने का समय लगता है. डिजाइनर मोतियों को खासा पसन्द किया जा रहा है. जिनकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है. सीप से मोती निकाल लेने के बाद सीप को भी बाजार में बेंचा जा सकता है. सीप से कई सजावटी सामान तैयार किये जाते है.


ऐसे होती है मोती की खेती 
मोती की खेती के लिए तैयार इन्फ्रास्ट्रक्चर सीमेंटेड पानी टैंक सहित लगभग 40 हजार रुपए तक का खर्च आता है. मोती की खेती के लिए सीप जिसे ओयस्टर भी कहा जाता है, उसमें न्यूक्लियस डाला जाता है. इस सीप को जाल के बैग पर लगाते हैं और डंडे के सहारे खड़ा कर देते हैं. इसके बाद इसे पानी के टैंक या तालाब में 3-4 फुट गहरे पानी में लगभग 12 से 18 महीने तक छोड़ा जाता है, जिसके बाद डिजाइनर मोती के साथ गोल मोती बनकर तैयार हो जाती है.


यह भी पढ़ें:



राज्य में कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण के लिये ज्यादा से ज्यादा संख्या में किए जाएं टेस्ट: सीएम योगी


कोरोना काल में हाईटेक हुए नकलची, मुंह पर मास्क लगाकर बाजू, पैर और हथेली में ही उतार ली पूरी किताब