अंग्रेजी के मशहूर लेखक विलियम शेक्सपीयर ने कभी कहा था कि नाम में क्या रखा है. लेकिन इस कथन के साथ भी उन्होंने अपना नाम दिया ही था. तो जाहिर है कि नाम में तो बहुत कुछ रखा है. और जब बात उत्तर प्रदेश की हो तो नाम में तो और भी बहुत कुछ है. चुनाव है, वोट बैंक है और उसकी राजनीति है. तभी तो उत्तर प्रदेश के चुनावी सीजन में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2329 करोड़ रुपये की लागत से बने 9 मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन किया है, तो उसका मकसद भले ही यूपी में मेडिकल सेवाओं का विस्तार है, लेकिन इन कॉलेजों के नाम के पीछे एक बड़े वोट बैंक की राजनीति है, जिसे समझना ज़रूरी है.


प्रधानमंत्री मोदी ने यूपी के नए 9 नए मेडिकल कॉलेजों का उद्घाटन सिद्धार्थनगर जिले में आयोजित एक कार्यक्रम में किया है. तो सबसे पहले बात सिद्धार्थनगर जिले में नए खुले मेडिकल कॉलेज की ही कर लेते हैं. यहां के मेडिकल कॉलेज का नाम माधव प्रसाद त्रिपाठी के नाम पर रखा गया है. अब माधव प्रसाद त्रिपाठी कौन हैं, जान लीजिए. वो बीजेपी की पूर्ववर्ती या यूं कहें कि मूल पार्टी भारतीय जनसंघ के उत्तर प्रदेश के पहले अध्यक्ष रहे हैं. सांसद रहे हैं और विधायक भी. अब यूपी में तो इन दिनों आम चर्चा है कि ब्राह्मण बीजेपी से नाराज है. अब ये चर्चा है या जानबूझकर ये जुमला उछाला गया है, ये बातें फिर कभी.


अभी तो ये है कि माधव प्रसाद त्रिपाठी के नाम पर मेडिकल कॉलेज का नाम रखकर सिद्धार्थनगर और उसके आस-पास के जिलों के ब्राह्मण वोटरों को लुभाने की कोशिश की ही जाएगी और बार-बार ये बताया भी जाएगा कि ये ब्राह्मणों का सम्मान है, बीजेपी या यूं कहें कि जनसंघ के कार्यकर्ता का सम्मान है, जिसके नाम पर मेडिकल कॉलेज खोला जा रहा है.



इस कड़ी में दूसरा नाम वीरांगना अवंतीबाई लोधी का है, जिनके नाम पर एटा में मेडिकल कॉलेज खोला जा रहा है. अब अवंतीबाई जाति से लोधी हैं. 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम की पहली महिला सेनानी मानी जाती हैं, जो युद्ध के दौरान शहीद हो गई थीं. रामगढ़ राजघराने से ताल्लुक रखने वाली रानी अवंती बाई के नाम पर साल 2001 में डाक टिकट भी जारी किया गया था और अब उनके नाम पर मेडिकल कॉलेज खोला गया है, ताकि लोधी जाति को सम्मान दिया जा सके और साथ में उनका वोट भी मिल सके. क्योंकि इस इलाके के सबसे बड़े लोध नेता और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह अब दिवंगत हो चुके हैं. लिहाजा लोध वोटरों को लुभाने के लिए वीरांगना अवंतीबाई के नाम से बड़ा नाम और कोई दूसरा हो भी नहीं सकता है.


मेडिकल कॉलेजों की लिस्ट में तीसरा नाम सोनेलाल पटेल का है. कुर्मी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सोने लाल पटेल के नाम पर मेडिकल कॉलेज खोलने से कुर्मी समुदाय में संदेश जाएगा कि उन्हें बीजेपी की सरकार में वो मान-सम्मान मिल रहा है, जिसके वो हकदार हैं. सोनेलाल पटेल की बेटी अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर से सांसद हैं और मोदी सरकार में मंत्री भी. अब उनके पिता के नाम पर मेडिकल कॉलेज खोलकर पटेल वोटरों को संदेश देने की कोशिश की गई है.


लिस्ट में चौथा नाम उमानाथ सिंह का है. इनके नाम पर जौनपुर में मेडिकल कॉलेज खोला गया है. उमा नाथ सिंह जनसंघ के कार्यकर्ता रहे हैं और विधायक भी. जाति से क्षत्रिय हैं, जो एक बड़ा वोट बैंक है. खुद सीएम योगी आदित्यनाथ भी क्षत्रिय हैं. उमानाथ सिंह के नाम पर मेडिकल कॉलेज खुलने से संदेश जाएगा कि पार्टी एक सामान्य बीजेपी कार्यकर्ता को भी सम्मान देती है और साथ ही ये भी संदेश जाएगा कि सिर्फ किसी जाति विशेष के लिए ही बीजेपी ने काम नहीं किया है, बल्कि वो ब्राह्मण हो या क्षत्रिय, लोधी हो या कुर्मी, सबको बराबर सम्मान मिला है और सबके प्रतीकों के नाम पर मेडिकल कॉलेज खोला गया है.


इस लिस्ट में पांचवा नाम फतेहपुर में खुलने वाले मेडिकल कॉलेज का है, जिसे अमर शहीद जोधा सिंह अटैया ठाकुर दरियाव सिंह का नाम दिया गया है. जोधा सिंह अटैया और ठाकुर दरियाव सिंह 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन के नायक रहे हैं, जिनकी वीरता की कहानियां आज भी फतेहपुर में बच्चों की जुबान पर है. अंग्रेजों के खिलाफ छापामार युद्ध करने वाले जोधा सिंह अटैया को अंग्रेजों ने उनके 50 दूसरे साथियों के साथ फांसी पर लटका दिया था. ठाकुर दरियाव सिंह ने 32 दिनों तक फतेहपुर में अपनी सरकार चलाई थी, जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें उनके पूरे परिवार के साथ फांसी पर लटका दिया था.


बाकी के बचे चार मेडिकल कॉलेज में से तीन मेडिकल कॉलेज के नाम धार्मिक प्रतीकों के आधार पर रखे गए हैं. मिर्जापुर के मेडिकल कॉलेज का नाम शक्तिपीठ मां विंध्यवासिनी देवी के नाम पर रखा गया है तो गाजीपुर में खुले मेडिकल कॉलेज को महर्षि विश्वामित्र का नाम दिया गया है. राम और लक्ष्मण को शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा देने वाले महर्षि विश्वामित्र के पिता राजा गाधि यहीं से थे. इसी वजह से महर्षि विश्वामित्र को गाधितनय भी कहा जाता है.


हरदोई में खुले मेडिकल कॉलेज को स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय, हरदोई का नाम दिया गया है. वहीं देवरिया में खुले मेडिकल कॉलेज को देवरहा बाबा का नाम दिया गया है. पूर्वांचल में देवरहा बाबा भी आस्था का प्रतीक हैं. उन्हें सिद्ध संत माना जाता है, जिसका एक कांग्रेस कनेक्शन भी है. और वो कनेक्शन आपातकाल के बाद कांग्रेस में हुई टूट का है.


आपातकाल के दौरान कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गाय और बछड़ा हुआ करता था. संजय गांधी की मनमानियों और उनके सख्त फैसलों की वजह से विरोधी हमेशा कांग्रेस पर निशाना साधते थे और इसके लिए उनके चुनाव चिन्ह गाय-बछड़े का इस्तेमाल करते थे. प्रतीकों की राजनीति के दौर में गाय-बछड़ा इंदिरा गांधी और संजय गांधी का प्रतीक बन गया था. तब आपातकाल के बाद हुए चुनाव में इंदिरा गांधी चुनाव हारकर सत्ता से बाहर हो गई थीं.उनकी हार से कांग्रेस के कई नेताओं को लगा कि अब इंदिरा गांधी खत्म हो गई हैं. लिहाजा कांग्रेस में देवराज उर्स, ब्रह्मानंद रेड्डी, यशवंत राव चव्हाण और शरद पवार जैसे नेता बगावत पर उतर आए थे. 1978 का अंत होते-होते इंदिरा गांधी ने फिर से कांग्रेस को तोड़ दिया. अपनी पार्टी का नाम रखा कांग्रेस (आई). इसमें आई का मतलब इंदिरा था. दूसरी पार्टी का नाम हुआ कांग्रेस यू. इसमें यू का मतलब उर्स था, जो देवराज उर्स से जुड़ा था. पार्टी टूट गई थी, लेकिन तब भी उसका चुनाव चिन्ह निर्धारित नहीं हुआ था. ऐसे में एक दिन इंदिरा देवरहा बाबा के दर्शन करने गई थीं. माना जाता है कि देवरहा बाबा ने हाथ उठाकर उन्हें आशीर्वाद दिया था, जिसके बाद इंदिरा ने अपनी पार्टी का चुनाव पंजा रखा और फिर 1980 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर सत्ता में पहुंची.


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