एबीपी गंगा, लखनऊ। देश में आम चुनाव हो रहे हो और यूपी के बाहुबली नेताओं का जिक्र ना हो, भला ये कैसे मुमकिन है। कभी यूपी की राजनीति में अपना प्रभाव रखने वाले पूर्वांचल के कई बाहुबली नेताओं को आज प्रमुख राजनीतिक दलों ने किनारे कर दिया है। अपनी छवि को लेकर सतर्क पार्टियों ने इस बार बाहुबली नेताओं से दूरी बनाने में अपनी भलाई समझी है। साफ है कि कोई भी दल नहीं चाहता कि किसी ऐसे प्रत्याशी को टिकट मिले जिसकी छवि खराब हो। राजनीतिक दलों के ठंडे रवैये से बाहुबलियों के सपने भी चकनाचूर हो गए हैं।


वैसे तो बाहुबली नेताओं का राजनीति में हमेशा से दखल रहा है, लेकिन पिछले कुछ चुनावों में लगातार हार के कारण राजनीति दल इनमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। हालांकि, कुछ बहुबली नेताओं ने विधानसभा या संसद तक का सफर भी तय किया है।


धनंजय सिंह
बाहुबली नेता धनंजय बसपा की टिकट पर साल 2009 में जौनपुर से चुनाव लड़े और जीते। धनंजय ने सपा के पारस नाथ यादव को हराया था। 2014 में निर्दलीय लड़े और जमानत भी नहीं बचा सके। पिछली बार की तरह इस बार भी बड़े दलों ने खास तवज्जो नहीं दी।


अतीक अहमद
जेल में बंद अतीक साल 2004 में समाजवादी पार्टी की टिकट पर फूलपुर से चुनाव लड़े और संसद पहुंचे। बड़े दलों से टिकट के लिए संपर्क में लगे रहे। आखिर में उन्होंने वाराणसी से पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का एलान किया, लेकिन पेरोल ना मिलने के कारण उन्होंने अपना फैसला बदल दिया।


मुख्तार अंसारी
वाराणसी सीट पर साल 2009 में बसपा की तरफ से टिकट मिला। भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी से हार गए। हालांकि अंसारी ने जोशी को टक्कर दी और सिर्फ लगभग 17 हजार वोट से ही पीछे रह गए। फिलहाल पंजाब की जेल में बंद हैं। मुख्तार अपने बेटे अब्बास को टिकट दिलाने के प्रयास में थे।


बृजेश सिंह
बाहुबली एमएलसी बृजेश सिंह लोकसभा चुनाव में टिकट पाने की जुगत में थे। उन पर कई साल पहले मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमले का आरोप है। इस हमले में एक की मौत हो गई थी जबकि कई घायल हुए थे।