लखनऊ, एबीपी गंगा। लोकसभा चुनाव 2019 के रण में सभी दलों ने जातिया समीकरण साधने की कोशिश की। चुनावी बिसात में परिवारवाद से लेकर प्रत्याशियों की लोकप्रियता पर भले ही बातें बड़ी-बड़ी हुईं हो, लेकिन आधार सबका जातीय ही रहा। तभी तो किसी ने पिछड़ों पर दांव चला, तो किसी ने सवर्णों को तरजीह दी। हर दल ने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर संतुलन बनाने की कोशिश की।


यूपी की सियासत पर गौर किया जाए, तो सभी 80 लोकसभा सीटों पर कोई भी प्रमुख दल नहीं लड़ रहा है। जहां बीजेपी ने दो सीटें अपने सहयोगी दल (अपना जल) के लिए छोड़ी हुई हैं, वहीं कांग्रेस ने सपा-बसपा गठबंधन के समर्थन में सात सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे और दो सीटों को अपने सहयोगी दलों के लिए छोड़ दीं। सपा 37, तो बसपा 38 सीटों पर चुनावी मैदान में है।


जतीयों पर दलों की नजर, पिछड़ों पर दांव


इस बार प्रत्याशी तय करने में दलों ने खासा वक्त लगाया। दलों ने पिछड़ा वर्ग पर दांव चलते हुए प्रत्याशियों की चयन प्रक्रिया में पिछड़ा वर्ग की जातियों और उपजातियों को लुभाने का प्रयास किया। जहां पूर्वांचल में बीजेपी ने निषादों व राजभरों समेत कई जातियों को लुभाने की कोशिश की, सपा ने भी निषादों को साथ लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन जातीय समीकरणों पर कांग्रेस और बसपा का भी ध्यान केंद्रीय रहा।



अगड़ा बनाम पिछड़ा राग


इन चुनावों में अगड़ा बनाम पिछड़ा राग भी सुनने को मिला। जहां सपा पिछड़ा बनाम अगड़ा राग गानी दिखी, तो वहीं बीजेपी ने पिछड़े कार्ड को बखूबी खेला। इसकी छलक टिकट बंटकारे में भी देखने को मिली।




  • सपा ने पिछड़ों में 10 टिकट यादव बिरादरी को दिए

  • बसपा ने एक यादव को टिकट दिया है।

  • निषाद, कुर्मी समेत कई जातियों पर सभी ने दांव लगाया।


सवर्णों को अहमियत


ऐसा नहीं है कि दलों के केंद्र में केवल पिछड़ा वर्ग ही रहा। सवर्णों को भी टिकट देने में देश के प्रमुख राष्ट्रीय दलों बीजेपी और कांग्रेस ने खासी उदारता दिखाई। दोनों दलों ने 30-30 सवर्ण प्रत्याशियों को टिकटि दिया। वहीं, कांग्रेस ने संतुलन बनाते हुए ओबीसी और मुस्लिमों को भी तरजीह दी।



दलों ने इन जगहों पर सवर्णों पर चला दांव


बीजेपी ने गौतमबुद्धनगर, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, सुल्तानपुर, कन्नौज, कानपुर, झांसी, इलाहाबाद, श्रावस्ती, बस्ती, कुशीनगर, चंदौली जैसी सीटों पर ब्राह्मण प्रत्याशियों पर दांव चला। कन्नौज को छोड़ दिया जाए, तो ये सभी बीजेपी की सिटिंग सीटें हैं। हालांकि, इस बार अपेक्षाकृत बसपा ने इस बार सवर्णों को कम टिकट दिए। वहीं, सपा ने गाजियाबाद, लखनऊ, गोंडा, उन्नाव में तो बसपा ने गाजियाबाद, सीतापुर, प्रतागढ़, फर्रुखाबाद, संतकबीरनगर, देवरिया, घोसी, भदोही से सवर्ण प्रत्याशी मैदान में उतारे। कांग्रेस ने गाजियाबाद, मथुरा, धौरहरा, लखनऊ, रायबरेली, अमेठी, कैसरगंज, जौनपुर, सलेमपुर, मिर्जापुर, इलाहाबाद जैसी सीटों पर ब्राह्मण प्रत्याशियों पर दांव चला।



मुस्लिम वोटरों की अहमियत


हालांकि, उत्तर प्रदेश के चुनाव में मुस्लिम वोटरों की अलग अहमियत हैं। पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनावों के नतीजों के मद्देनजर इस बार सप-बसपा ने अपने रणनीति में बदलाव करते हुए अपेक्षाकृत कम मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं।




  • सहारनपुर सीट पर सपा बसपा रालोद गठबंधन ने व कांग्रेस दोनों ने मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव चला।

  • पिछले चुनाव की तुलना में इस बार पूरे प्रदेश में बसपा ने केवल सहारनपुर, अमरोहा, मेरठ, धौरहरा, डुमरियागंज, गाजीपुर में ही मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारा।

  • सपा ने कैराना, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, बहराइच में मुस्लिम को टिकट दिया।

  • सपा बसपा रालोद गठबंधन 78 सीटों पर मैदान में हैं। इन 78 में गठबंधन की ओर से केवल 11 प्रत्याशी मुस्लिम हैं।

  • पिछली बार सपा ने 13 मुस्लिमों को टिकट दिये थे।