Controversy on Mihir Bhoj Statue: सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति से जुड़ा विवाद लेता जा रहा है सियासी रंग, बीजेपी पर भड़के सपा-बसपा
Politics on Samrat Mihir Bhoj statue: सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति से जुड़ा विवाद थम नहीं रहा है. इस बीच सियासी दल इस मुद्दे को लेकर बीजेपी को घेरने में जुट गये हैं.
Controversy on Samrat Mihir Bhoj: सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के अनावरण में लगे शिलापट्ट पर गुर्जर शब्द ना लिखे जाने का मामला अब राजनीतिक रंग लेता जा रहा है. विपक्षी दल जहां इसे 2022 में चुनावी मुद्दा बनाने की रणनीति तैयार कर रहे हैं, तो वहीं बीजेपी के नेता इस मुद्दे को निर्जीव बता रहे हैं.
मुद्दे पर शुरू हुई राजनीति
दरअसल, इसी मुद्दे पर एबीपी गंगा ने सभी राजनीतिक दलों की राय जानने की कोशिश की, कि आखिरकार ये मुद्दा 2022 में कितना असरदार साबित होगा. एबीपी गंगा की टीम सबसे पहले सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के जिला अध्यक्ष मनोज गुप्ता के पास पहुंची और उनसे बात कर ये जानने की कोशिश की, कि गुर्जर शब्द पर हो रही राजनीति से उन्हें 2022 में कितना फर्क पड़ेगा और इसको लेकर उनके पार्टी की क्या रणनीति होगी.
बीजेपी ने कहा, नहीं पड़ेगा कोई फर्क
एबीपी गंगा से खास बातचीत के दौरान जिला अध्यक्ष मनोज गुप्ता ने कहा कि, इस मुद्दे से भारतीय जनता पार्टी को कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है. क्योंकि सपा बसपा कार्यकाल में तीनों प्राधिकरण ने गुर्जर समाज को जिस तरह से लूटा है उसे वह कभी भूल नहीं पाएंगे, और विपक्ष के पास 2022 में कोई चुनावी मुद्दा नहीं है. मुद्दा विहीन है, विपक्ष इसलिए वह इस तरह के मुद्दों को उठाना चाहती है, ताकि वह जनता के बीच में जा सके, लेकिन इन मुद्दों से भारतीय जनता पार्टी को कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है, बल्कि 2017 से ज्यादा सीट भारतीय जनता पार्टी 2022 में हासिल करेगी.
क्योंकि 2017 में जिस तरह से गुर्जर और जाट समाज ने भारतीय जनता पार्टी को अपना समर्थन दिया है, उसी तरह से 2022 में भी उनका समर्थन मिलेगा क्योंकि गुर्जर समाज बीजेपी का एक अभिन्न अंग है.
कांग्रेस ने कहा-बीजेपी को होगा नुकसान
जब हमारी टीम ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रघुराज सिंह से बात कर इस मुद्दे पर कॉंग्रेस का पक्ष जानने की कोशिश की तो उनका कहना था कि, बीजेपी हमेशा से जाति धर्म की राजनीति करती है, लेकिन इस मुद्दे से बीजेपी को 2022 के चुनाव में बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा. अगर सरकार ने इस मुद्दे पर माफी नहीं मांगी तो. क्योंकि कहीं ना कहीं गुर्जर समाज इस बात को लेकर बेहद नाराज है कि पहले शिलापट्ट पर गुर्जर शब्द लिखा गया उसके बाद मिटाया गया फिर लिखा गया आखिर बीजेपी चाहती क्या थी, उसकी मंशा क्या थी, इसे बीजेपी नेताओं को स्पष्ट करना चाहिए.
और जो बीजेपी के नेता यह कह रहे हैं कि इस मुद्दे से उन्हें कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है, तो उन्हें हम साफ बता दें कि यह पब्लिक है सब जानती है और 2022 में वह किस तरह से जवाब देगी यह आने वाला वक्त खुद बताएगा.
उन्होंने कहा कि, कांग्रेस पार्टी जाति और मजहब पर चुनाव नहीं लड़ती कांग्रेस पार्टी एक विचारधारा है और वह विकास, बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर चुनाव में उतरती है ना कि जाति और मजहब जैसे मुद्दों को.
जातियों में बांटना गलत
हालांकि, समाजवादी पार्टी के नेता इस मुद्दे को अन्य चुनावी मुद्दों के साथ जोड़कर मैदान में उतरने की रणनीति बना रहे हैं. उनका कहना है कि, किस जिले में तमाम ऐसी समस्याएं हैं जिन्हें बीजेपी के जनप्रतिनिधि लगातार नजरअंदाज कर रहे हैं. ऐसे में यह मुद्दा बीजेपी के लिए बेहद नुकसानदायक साबित होगा, क्योंकि हमने बचपन में किताबों में भी पढ़ा है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर समुदाय से आते है ऐसे में उन्हें जातियों में बांटना बेहद गलत है.
इससे पहले गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की जाति पर सवाल नहीं उठाए गए कि, इस बार ही उनकी जांच पर सवाल क्यों उठे जबकि, कई दशकों से उनके नाम के आगे गुर्जर शब्द लिखा जाता आ रहा है. इस बार महंगाई बेरोजगारी और स्थानीय मुद्दे भारतीय जनता पार्टी को जिले से गायब करने का काम करेंगे, क्योंकि अब जनता जाग चुकी है और अब वो जाति धर्म और मजहब पर बंटने वाली नहीं है, क्योंकि 2022 में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने जा रही है.
गुर्जर समाज जाग चुका है
हालांकि, इस मुद्दे पर हमने बहुजन समाज पार्टी के नेताओ से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कैमरे पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया, लेकिन ऑफ कैमरा उन्होंने बताया कि यह मुद्दा बीजेपी को भारी पड़ने वाला है, क्योंकि गुर्जर समाज अब जाग चुका है और उसमें भारतीय जनता पार्टी की इस ओछी राजनीति काफी ज्यादा नाराजगी है, जिसका परिणाम 2022 के चुनाव में देखने को मिलेगा.
दरअसल बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती का यह गृह जनपद है उनका पैतृक गांव दादरी विधानसभा में ही आता है. ऐसे में बसपा इस मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाकर 2022 में अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को वापस पाना चाहती है. यही वजह है कि, उसके नेता अभी से ही बसपा के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने में जुट गए हैं.
20 से 25 विधानसभा सीट प्रभावित करता है
बता दें कि, दादरी विधानसभा गुर्जरों की राजधानी कही जाती है और गुर्जर समाज पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 20 से 25 विधानसभा सीटों को प्रभावित करता है. इसलिए हर राजनैतिक दल गुर्जर समाज को साधने भी लगा हुआ है, यही वजह है कि सपा और बसपा के मुखिया अखिलेश यादव व मायावती ने हाल ही में ट्वीट कर गुर्जर समाज को साधते हुए सरकार पर निशाना साधा है.
लेकिन जहां विपक्षी दल इस मुद्दे को 2022 का चुनावी मुद्दा बनाने के लिए अभी से जमीन तैयार करने की कवायद में जुट गई है तो, वहीं सत्ताधारी बीजेपी का कहना है कि, इस मुद्दे से उससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि, विपक्षी दल इस मुद्दे को राजनैतिक जामा कैसे पहनाता हैं और बीजेपी इन विपक्षी दलों की रणनीति को कैसे भेदती है.
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