UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश की फिजाओं में इस वक्त सियासत गूंज रही है, क्योंकि कुछ दिनों बाद उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं. यूपी की सियासत में हमेशा से ही मूर्तियों और नाम का काफी महत्व रहा है. अभी तक तो महापुरुषों की मूर्तियों के जरिए वोट बैंक को साधने की कोशिश की जाती रही है लेकिन अब बदली हुई सियासत में कहीं कोई फूलन देवी की मूर्ति लगा रहा है तो कोई विकास दुबे और श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे अपराधियों की मूर्ति लगवाने की बात कह रहा है. इतना ही नहीं एक बार फिर मेडिकल कॉलेज के नामों को लेकर भी सियासत उत्तर प्रदेश में काफी गर्म है.
9 मेडिकल कॉलेजो की मिलेगी सौगात
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार एक साथ 9 मेडिकल कॉलेजो की सौगात प्रदेश को देने वाली है. कार्यक्रम में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होंगे. हालांकि, पहले 30 जुलाई को कार्यक्रम तय हो गया था, रिबन तैयार था लेकिन ऐन वक्त पर एमसीआई की अनुमति ना मिलने के चलते कार्यक्रम को टाला गया है. लेकिन, जो 9 मेडिकल कॉलेज तैयार हुए हैं उनके नाम सरकार ने घोषित कर दिए हैं. कहीं बीजेपी ने अपने पहले प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर मेडिकल कॉलेज का नामकरण किया है तो कहीं अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल के नाम पर मेडिकल कॉलेज का नाम रखा गया है.
नाम के पीछे सियासी मकसद
सिद्धार्थनगर मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने वाले थे उसका नाम उत्तर प्रदेश बीजेपी के पहले प्रदेश अध्यक्ष और सांसद माधव प्रसाद त्रिपाठी के नाम पर किया गया है. तो वहीं, प्रतापगढ़ में तैयार हुए मेडिकल कॉलेज का नाम डॉक्टर सोनेलाल पटेल के नाम पर सरकार ने रखा है. जाहिर इसके पीछे एक मकसद दोनों जातियों के वोट बैंक को साधना है. हालांकि, ये कोई पहला मौका नहीं है जब उत्तर प्रदेश में किसी अस्पताल संस्थान का नाम किसी राजनीतिक व्यक्ति के नाम पर रखा गया है इससे पहले भी जो सरकारें रही हैं उन्होंने ये प्रयोग किया है.
बीजेपी से ही उठे विरोध के स्वर
जब चुनाव करीब हैं तो कहीं ना कहीं इस नामकरण के जरिए कुछ खास वोट बैंक को साधने की कोशिश की जा रही है. हालांकि, खुद बीजेपी में ही इस नामकरण को लेकर विवाद भी शुरू हो गया है. प्रतापगढ़ में मेडिकल कॉलेज का नाम डॉक्टर सोनेलाल पटेल के नाम पर करने को लेकर खुद बीजेपी के शिक्षक एमएलसी और प्रतापगढ़ से आने वाले उमेश द्विवेदी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि प्रतापगढ़ मेडिकल कॉलेज का नाम अगर करना है तो वहां के किसी ब्राम्हण समाज के व्यक्ति के नाम पर उसे किया जाए फिर चाहे करपात्री जी महाराज के नाम पर उसका नामकरण किया जाए या फिर प्रतापगढ़ में शिक्षण के क्षेत्र में अग्रणी काम करने वाले मुनीश्वर दत्त उपाध्याय के नाम पर किया जाए.
चुनाव से जोड़कर देखना ठीक नहीं
भले ही बीजेपी के अपने एमएलसी नाम को लेकर अब सवाल खड़े कर रहे हो, लेकिन उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री का साफ तौर पर कहना है कि पहले भी महापुरुषों राजनीतिक व्यक्तियों के नाम पर अस्पतालों के नाम पर रखे गए हैं और अगर सरकार ने ये नाम तय किए हैं तो जाहिर है कि उसके पीछे उस व्यक्ति की कामों को बारे में लोगों को बताना है. उनका साफ तौर पर कहना है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है और इसे चुनाव से जोड़कर देखना ठीक नहीं है. हालांकि, पार्टी के एमएलसी की चिट्ठी पर उनका कहना है कि पत्र उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखी है तो इस पर कोई भी निर्णय मुख्यमंत्री ही लेंगे.
मूर्तियों पर भी हो रही है सियासत
बात अगर नाम तक ही सीमित रहती तो भी ठीक था लेकिन अब तो वोट बैंक को साधने के लिए मूर्तियों पर भी सियासत शुरू हो गई है. हालांकि, अभी तक तो जो मूर्तियां लगाई जाती रही हैं उनमें महापुरुषों की मूर्ति प्रमुख होती थी पर सियासत ऐसी बदली है कि कोई अब चंबल के बीहड़ों में राज करने वाली दस्यु सुंदरी फूलन देवी की मूर्ति लगवाने में जुटा है तो कोई दुर्दांत अपराधी और माफिया श्री प्रकाश शुक्ला और विकास दुबे की मूर्ति लगाने की बात कह रहा है.
डकैतों और माफियाओं को मिल रही है जगह
दरअसल, सियासत में मूर्तियों के सहारे वोट तो मिलते हैं लेकिन अब इस सियासत में डकैतों और माफियाओं को भी जगह मिलती नजर आ रही है. बिहार में एनडीए की सहयोगी वीआईपी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले दस्तक दी तो निषाद वोट बैंक साधने के लिए फूलन देवी की मूर्ति लगाने का एलान कर दिया. वहीं, कानपुर में तो भारतीय ब्राह्मण महासभा ने तो विकास दुबे और श्री प्रकाश शुक्ला की मूर्ति लगाने का एलान कर दिया है. ओमप्रकाश राजभर ने भी प्रेस रिलीज जारी कर फूलन देवी की मूर्ति को लगाए जाने को सही ठहराया है.
फूलन देवी को सियासत में लाए थे मुलायम सिंह यादव
वहीं, समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधानसभा में नेता विरोधी दल रामगोविंद चौधरी का साफ तौर पर कहना है कि फूलन देवी को अपराध की दुनिया से राजनीति में मुलायम सिंह यादव लेकर आए थे. दो-दो बार मुलायम सिंह यादव ने फूलन देवी को टिकट दिया और उन्हें संसद तक पहुंचाया. जाहिर है समाजवादी पार्टी के भीतर कहीं ना कहीं फूलन देवी को लेकर एक सिंपैथी जरूर नजर आ रही है.
रहती है चमत्कार की उम्मीद
ये शायद सियासत की मजबूरी है कि यहां वोट दिलाने वाले को हर तरह से याद किया जाता है. फिर भले ही वो कितना भी दुर्दांत अपराधी ही क्यों ना हो. सियासी दलों को ऐसे लोगों से हमेशा चमत्कार की उम्मीद रहती है और चमत्कार को नमस्कार तो सभी करते हैं.
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