आगरा, नितिन उपाध्याय। ताज नगरी आगरा में लॉकडाउन के तीसरे चरण में बेरोजगारी के साथ गरीबी और भुखमरी की दिल दहला देने वाली तस्वीर सामने आई है। यहां एक मजदूर की बेटी ने भूख और इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया है और दूसरी बेटी जिंदगी और मौत के बीच एक अंधेरे कमरे में बिस्तर पर पड़ी हुई है। परिवार रो-रोकर अपनी मजबूरी की व्यथा सुना रहा है पर जिम्मेदार अधिकारियों की बनाई व्यवस्थाएं अब भी उसे मुंह चिढ़ा रही हैं।


भोजन की आस
एक किराये के कमरे में बिना बल्ब के एक 13 साल की मासूम बिस्तर पर आधी बेहोशी की हालत में पड़ी है। मुंह पर मां के हाथ का बना पुराने कपड़ों का गंदा सा मास्क है और जबान पर बहन भूखी प्यासी बीमारी से मार गई अब मेरा नम्बर है के अलावा कोई शब्द नहीं है। पास ही दो छोटे छोटे मासूम निःशब्द भोजन की आस में इधर उधर नजरें दौड़ा रहे हैं और शायद वो सोच रहे हैं कि अब बहन मरेगी तो उन्हें खाना मिलेगा।


कैसे बुझेगी पेट की आग
कुछ लोगों से मिली राशन की मदद को हाथ में लिए बीमार मां गैस के खाली सिलेंडर और कभी पति को निहार रही है कि अब वो आखिर कैसे इस राशन को रोटियों का रूप देकर सबके पेट की आग बुझाए। इन सबके बीच गरीब मजदूर बाप आंखों में आंसू लिए सोच रहा है कि एक बेटी तो चली गयी अब वो दूसरी को खाली जेब के दम पर कैसे बचाये और बाहर पुलिस के सख्त पहरे के बीच कैसे परिवार के लिए चूल्हा जलाने को लकड़ियां लाये।


जब आया बुरा वक्त
आपको यह शायद किसी लेखक की कल्पना वाली मार्मिक कहानी लग रही होगी पर यह जूते के फिटर बनाने वाले मजदूर राम सिंह की सच्ची कहानी है। जूते के फिटर बनाने वाले राम सिंह का पहले थाना न्यू आगरा क्षेत्र के कौशलपुर में मकान था। पत्नी बबिता को अचानक लकवा मार गया और बुरे वक्त में मकान बिक गया। इसके बाद राम सिंह वाटरवर्क्स चौराहे पर लाल मस्जिद के पास मलिन बस्ती में किराए के एक कमरे में आ गया।


नहीं बची जमापूंजी
नोटबन्दी जैसी परेशानी झेलनी के बाद जमापूंजी नाम का शब्द उसके शब्दकोश से हट गया और जैसे तैसे मजदूरी कर वो पत्नी बबिता, 13 साल की बेटी दीपेश, 11 साल की वैष्णवी, सात साल की परी और पांच साल के भारत के साथ जीवन गुजारने लगा। इसी बीच 23 मार्च से जनता कर्फ्यू और फिर लॉकडाउन शुरू हो गया। कमरे के एक कोने में बनी रसोई के सारे बर्तन कब खाली हो गए उसे पता ही नहीं चला।


परिवार से नाराज था भगवान
मांग कर गुजर शुरू हुई पर तब तक गैस सिलेंडर भी दम तोड़ गया और अब वो पुलिस चौकी और बस्ती के सामने बने अग्रवन क्वारंटाइन सेंटर से खाने के पैकेटों के जरिये आधा पेट खाकर परिवार के साथ रहने लगा। इतने कष्टों के बीच लॉकडाउन का दूसरा चरण शुरू हुआ तो क्वारंटाइन सेंटर में लोगों ने हंगामा कर दिया। इसके बाद खाने का पैकेट अब सिर्फ पुलिस चौकी से ही मिल पा रहा था और वो भी एक टाइम का पर भगवान शायद परिवार से कुछ ज्यादा ही नाराज था तभी तो उसकी दूसरे नम्बर की बेटी वैष्णवी 11 की तबीयत खराब होने लगी उसका खून पानी जैसा होने लगा। शरीर पीला पड़ गया।


बेटी की मौत
मजबूर राम सिंह न उसे भरपेट भोजन दे पाया और न ही उसकी कंगाल जेब बेटी का इलाज ही करवा पाई। बतौर राम सिंह 28 अप्रैल को वैष्णवी ने भूख और इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया। लोगों ने थोड़ी-थोड़ी लकड़ी दी और जैसे तैसे यमुना के घाट पर उसके शरीर को आग के हवाले कर दिया गया। इसके बाद उसकी बड़ी बेटी दीपेश में भी वैष्णवी जैसी बीमारी के लक्षण दिखने लगे और वो भी चारपाई पर आ गयी।



नहीं मिली मदद
काफी प्रयास के बाद भी सरकारी हेल्पलाइन नम्बरों से कोई मदद नहीं मिली और आज जब मृतक बेटी के विद्यालय की प्रिंसिपल ने पिता को फोन कर बेटी के ऑनलाइन पढ़ने की बात कही तो उन्हें बच्ची की मौत की जानकारी हुई। प्रिंसिपल द्वारा जब यह बात कुछ समाजसेवियों तक पहुंची तो उन्होंने राशन और कुछ पैसों की व्यवस्था कर दी पर सख्ती के डर से उनकी भी हिम्मत नहीं हुई कि वो इलाज के लिए बच्ची को ले जाएं। परिवार के पास इस समय बस आंसू हैं जिनसे वो अपने दिल को दिलासा दे रहा है।


देखभाल का आदेश
फिलहाल इस दर्दनाक मामले पर जिलाधिकारी प्रभु नारायण ने खबर का संज्ञान लेते हुए सीडीओ और एसएन के सीनियर डाक्टर वीरेंद्र भारती को परिवार के पास भेजा है और उनकी उचित देखभाल की व्यवस्था के आदेश दिए हैं।