लखनऊ (वीरेश पाण्डेय). उत्तर प्रदेश बीते एक महीने से मानो अपहरण प्रदेश बन गया है. जिस बिहार में कभी अपहरण कुटीर उद्योग की तरह पनप चुका था, जहां की पुलिस अपहरणकर्ताओं के आगे घुटने टेक चुकी थी, ठीक वैसे ही उत्तर प्रदेश पुलिस का हाल भी होता जा रहा है. एक तरफ पुलिस के अधिकारी आंकड़ों की बाजीगिरी कर अपराध कम होने का दावा करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ कानपुर, गोरखपुर. लखनऊ, कानपुर देहात गाजियाबाद में हुई आपराधिक घटनाएं पुलिस की काबिलियत और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती है.


उत्तर प्रदेश बीते एक महीने में लगातार हो रही आपराधिक वारदातें या तो कोरोना के चलते फैली बेरोजगारी का नतीजा है या फिर जिलों और मुख्यालय में तैनात अफसरों के नाकारापन का सबब.


कानपुर, गोरखपुर की घटना ने ध्वस्त की कानून-व्यवस्था


उत्तर प्रदेश पुलिस ने मानो किडनैपिंग, लूट हत्या जैसी घटनाओं के आगे घुटने टेक दिए हैं. वारदातों में अफसरों की सारी तीरंदाजी धरी की धरी रह जाती है. कानपुर में संजीत यादव अपहरण कांड, गोरखपुर में बलराम गुप्ता अपहरण कांड, कानपुर देहात के धर्मप्रकाश किडनैपिंग केस तो यही कह रहे हैं. बीते एक महीने में हुई अपहरण की वारदातों में सिर्फ गोंडा में आठ साल के नमो अपहरण कांड को छोड़ दें तो यूपी पुलिस किसी भी केस का ना तो समय पर खुलासा कर पाई और ना ही अपह्रत की जान बचा पाई. कानपुर के बर्रा थाने की पुलिस तो संजीत यादव के अपहरणकर्ताओं को 30 लाख की फिरौती तक पहुंचाने में सक्रिय रही लेकिन वह ना तो संजीत यादव को बचा पाई और ना ही समय रहते अपहरणकर्ताओं को दबोच सकी. परिजन इस पूरे मामले में पुलिस की अपहरणकर्ताओं से मिलीभगत का आरोप लगाकर सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं.


कानपुर के बाद कानपुर देहात के भोगनीपुर इलाके से गायब हुआ धर्मकांटे का कर्मचारी आज तक लापता है. परिजनों के पास आई 20 लाख की फिरौती की मांग के बावजूद कानपुर देहात की पुलिस खाली हाथ हैं. कुछ ऐसा ही हाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर का भी है. गोरखपुर के पिपराइच में 12 साल के मासूम बलराम गुप्ता को भी पुलिस नहीं बचा सकी. तो वहीं दूसरी तरफ बीते एक महीने से गाजियाबाद से लापता व्यापारी विक्रम त्यागी का तो पुलिस आज तक पता ही नहीं लगा सकी है.


गोंडा में आठ साल के मासूम नमो अपहरण कांड को छोड़ दें तो यूपी पुलिस बीते एक महीने में हुए किसी भी अपहरण की वारदात का ना तो समय से खुलासा कर पाई है और ना ही अपह्रत को बरामद कर सकी है. लगातार बढ़ती घटनाओं पर सियासत भी तेज है. प्रियंका गांधी ट्वीट करने से लेकर सीएम योगी को कानून व्यवस्था ठीक करने की नसीहत भरी चिट्ठी भी लिख चुकी हैं.


बिकरु कांड से दहल उठी यूपी पुलिस


यह हाल सिर्फ अपहरण की घटनाओं पर ही नहीं तमाम अन्य घटनाएं उत्तर प्रदेश की बिगड़ती कानून व्यवस्था और पुलिसिंग पर सवाल खड़े कर रही है. कानपुर का बिकरु कांड तो खाकी के दामन पर ऐसा बदनुमा दाग है जिसको छुड़ाने के लिए खाकी को दशकों लग जाएंगे. कन्नौज में एक ही परिवार के 3 लोगों की हत्या, तो गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी की छेड़खानी के विरोध में की गई हत्या और लखनऊ में गैंगवार के चलते हिस्ट्रीशीटर पर की गई फायरिंग और जानलेवा हमले की घटना और गाजियाबाद में बंधक बनाकर 10 लाख की दिनदहाड़े लूट. लखनऊ से लेकर गाजियाबाद, गोरखपुर से लेकर कन्नौज तक बिगड़ी कानून व्यवस्था को बता रही है.


आंकड़ों का फील गुड


यह अलग बात है कि उत्तर प्रदेश पुलिस के अफसर आंकड़ों की बाजीगिरी कर सरकार को क्राइम कंट्रोल में फीलगुड करा रहे हैं. बिकरु कांड के बाद डीजीपी मुख्यालय ने जो आंकड़े जारी किए उसमें डकैती, लूट, हत्या से लेकर अपहरण छेड़खानी बलात्कार महिला संबंधी अपराध, दहेज हत्या तक हर बड़ी वारदात में कमी बताई है. अपहरण में 41 फ़ीसदी डकैती में 38 फ़ीसदी, लूट में 45 फ़ीसदी, हत्या में 8 फीसदी, बलात्कार 25 फीसदी की कमी बताई गई.


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