प्रयागराज, मोहम्मद मोईन। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में यूपी के तमाम शहरों में हुई हिंसा के बाद सुर्खियों में आए विवादित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई ने प्रतिबंध से बचने के लिए नया हथकंडा अपनाया है। पीएफआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर यूपी सरकार और पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। संगठन ने अपनी अर्जी में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में यूपी में हुई हिंसक घटनाओं की न्यायिक जांच कराए जाने की मांग की है। पीएफआई द्वारा दाखिल की गई पीआईएल में हिंसा की जांच सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के किसी रिटायर्ड जज अथवा किसी स्वतंत्र एजेंसी की हाई लेवल कमेटी से कराए जाने की मांग की गई है।
अर्जी में कहा गया है कि तमाम शहरों में हुए प्रदर्शन के दौरान यूपी पुलिस ने लोगों को समझाने या रोकने के बजाय अत्याचार किया। फायरिंग की गई। साथ ही, लोगों पर लाठीचार्ज किया गया। आरोपों के घेरे में खुद सरकार और उसकी पुलिस है, इसलिए पूरे मामले की न्यायिक जांच हो या फिर कोई स्वतंत्र जांच बेहद ज़रूरी है। पीएफआई की अर्जी में दोषी पुलिस वालों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई किये जाने की भी मांग की गई है।
इसके साथ ही, हिंसा के पीड़ितों को उचित मुआवजा दिए जाने का आदेश दिए जाने व योगी सरकार द्वारा आरोपियों से आर्थिक वसूली के आदेश को गलत बताते हुए इस फैसले पर रोक लगाए जाने की भी गुहार लगाई गई है। दलील यह दी गई है कि शांतिपूर्वक प्रदर्शन लोगों का अधिकार है। प्रदर्शन कर रहे लोगों को वीडियो फुटेज या तस्वीरों के आधार पर दंगाई या दोषी बताना पूरी तरह गलत है। पीएफआई की इस अर्जी पर हाईकोर्ट में शुक्रवार यानी 17 जनवरी को सुनवाई होगी। सुनवाई चीफ जस्टिस कोर्ट में दोपहर के वक्त होने की उम्मीद है।
दरअसल, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया अपनी इस अर्जी के ज़रिये प्रतिबंध की कार्रवाई से बचना चाह रहा है। पीएफआई साल 2006 में अपने गठन के बाद से ही अक्सर विवादों में रहा है। यूपी में पिछले महीने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में तमाम शहरों में हुई हिंसा व प्रदर्शन की घटनाओं के बाद यह संगठन फिर से सुर्ख़ियों में आया। आरोप है कि पीएफआई से जुड़े लोगों ने ही हिंसा की साजिश रची और लोगों को भड़काया भी। आशंका जताई जा रही है कि तमाम रिपोर्ट्स के आधार पर यूपी सरकार जल्द ही पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया पर पाबंदी लगा सकती है। कयास यह लगाए जा रहे हैं कि प्रतिबंध की कार्रवाई से बचने के लिए संगठन ने कानूनी दांव पेंच का सहारा लिया है। अगर हाईकोर्ट पीएफआई की अर्जी पर कोई फैसला लेती है तो वह उसके बचाव का बड़ा हथियार साबित हो जाएगा। उस सूरत में सरकार के लिए इस संगठन पर पाबंदी लगाना उतना आसान नहीं होगा। इस मामले में अदालत क्या फैसला सुनाती है और उस फैसले का प्रभाव पीएफआई की भविष्य पर किस तरह पड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी।
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