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लॉकडाउन का पॉजिटिव इफेक्ट, प्रयागराज में गंगा की क्वालिटी में 10-20 फीसदी तक का सुधार

प्रयागराज संगम में लॉकडाउन का पॉजिटिव इफेक्ट देखने को मिला है. लॉकडाउन की वजह से प्रयागराज में गंगा की क्वालिटी में 10-20 फीसदी तक का सुधार आया है.

प्रयागराज, मोहम्मद मोईन: कोरोना की महामारी ने जहां एक तरफ समूची दुनिया में तबाही और कोहराम मचा रखा है. वहीं, दूसरी तरफ यह मोक्षदायिनी और जीवनदायिनी कही जाने वाली राष्ट्रीय नदी गंगा के लिए वरदान साबित हो रहा है. कोरोना के चलते देश में मार्च महीने के आखिरी हफ्ते से लागू लॉकडाउन ने गंगा को काफी हद तक प्रदूषण मुक्त कर दिया है. संगम नगरी प्रयागराज में भी गंगा की तस्वीर एकदम बदल गई है. गंगाजल की शुद्धता में दस से बीस फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. साथ ही इसके पानी का रंग भी बदला है. गंगाजल का ये बदला हुआ स्वरूप गंगा भक्तों को काफी राहत दे रहा है, क्योंकि 70 दिनों के चार लॉकडाउन ने वह कमाल कर दिखाया है, जो करोड़ों -अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद नहीं हो सका था.

गंगा में आक्सीजन की मात्रा बढ़ी

गंगोत्री से निकलकर कानपुर के रास्ते प्रयागराज पहुंचने वाले गंगाजल की क्वालिटी में सत्तर दिनों के लॉकडाउन की वजह से बड़ा बदलाव हुआ है. दरअसल, लॉकडाउन में ज़्यादातर फैक्ट्रियां और कारखाने बंद थे. होटल -रेस्तरां, शादीघर, दफ्तर और बाजारों में सन्नाटा पसरा हुआ था. लॉकडाउन की वजह से लोग पूजा-अर्चना के लिए गंगा के घाटों तक नहीं जा रहे थे. मौसम के साथ देने की वजह से गंगा में आक्सीजन की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही थी. पानी का इस्तेमाल घटकर आधा हो जाने की वजह से एसटीपी बेहतर तरीके से काम कर रही थीं. यही वजहें हैं कि गंगा का प्रदूषण कम हुआ है और उसकी क्वालिटी पहले से बेहतर हुई है. क्वालिटी के साथ ही गंगा का रंग भी पहले के मुकाबले थोड़ा साफ हुआ है. जनता कर्फ्यू से लेकर सत्तर दिनों के चार लॉकडाउन में गंगा की क्वालिटी में कितना बदलाव हुआ है, इसका ठोस आधार पर पता लगाने के लिए एबीपी न्यूज नेटवर्स ने क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मदद ली और संगम पर पहुंची.

गंगा पर दिखा लॉकडाउन का सकारात्मक असर

बोर्ड के मॉनिटरिंग ऑफिसर रामजस और उनके सहयोगी हमारे साथ प्रयागराज में उस जगह पहुंचे, जहां गंगा और यमुना का मिलन होता है, यह जगह संगम कहलाती है. लॉकडाउन की वजह से यहां इक्का -दुक्का श्रद्धालु ही नज़र आ रहे थे. नावें भी नहीं चल रहीं थीं. लिहाजा टीम के सदस्य पैदल ही बीच धारा तक गए और गंगाजल के वैज्ञानिक परीक्षण के लिए बीचों-बीच से सैंपल लिया. इस दौरान क्वालिटी मॉनिटरिंग ऑफिसर रामजस ने बताया कि वह पिछले कई सालों से गंगा के पानी का सैंपल ले रहे हैं, लेकिन गंगाजल को इतना साफ पहले कभी नहीं देखा. उनके मुताबिक, यह लॉकडाउन का असर है.

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गंगा की क्वालिटी में 10-20 फीसदी तक का सुधार

गंगाजल के क्वालिटी की वैज्ञानिक तरीके से जांच बेहद ज़रूरी थी, लिहाज़ा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम के साथ हम उसके क्षेत्रीय दफ्तर पहुंचे और सभी सैंपल को वहां के अफसरों को दिया, जहां लैब में उसकी जांच. गंगाजल को प्रयागराज के क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रीजनल ऑफिसर जेबी सिंह ने अपनी लैब में सैंपल को टेस्ट कराया. गंगाजल की टेस्टिंग में तीन दिनों का वक्त लग गया. इस दौरान वहां के वैज्ञानिकों ने जांच के दौरान पाया गया कि चौथे चरण का लॉकडाउन खत्म होने के अंतिम दिन सैंपल किया गया गंगाजल, निर्धारित मानक से बेहतर पाया गया है. रीजनल ऑफिसर जेबी सिंह ने हमें जो आंकड़े दिए, उसके मुताबिक, इसका कलर हैजेन 15 के करीब है, जो निर्धारित मानक के हिसाब से ही है. इसका पीएच वैल्यू 8.18 पाया गया. डिजाल्व आक्सीजन की मात्रा 9.1 मिलीग्राम प्रति लीटर थी, जबकि बीओडी यानी बायो केमिकल आक्सीजन डिमांड 2.2 मिलीग्राम प्रति लीटर थी. सैंपल किए गए गंगाजल के केमिकल आक्सीजन डिमांड की वैल्यू 12 के करीब थी, जबकि अमोनियम नाइट्रेट की मात्रा 0.56 पाई गई. टोटल कॉलीफार्म 2400 के करीब पाया गया, तो फेकल कोलीफॉर्म 680 के करीब मिला. उनके मुताबिक, लॉकडाउन पीरियड में गंगा की क्वालिटी में दस से बीस फीसदी तक सुधार हुआ है. हालांकि प्रयागराज में गंगाजल पहले भी मानक के दायरे में था, लेकिन सत्तर दिनों में क्वालिटी और बेहतर हो गई है.

श्रद्धालु भी खुश

इस दौरान प्रयागराज के संगम पर पहले की तरह श्रद्धालुओं की भीड़ तो नहीं, लेकिन जो श्रद्धालु वहां पहुंच रहे हैं, वो मौजूदा गंगा को देखकर काफी खुश हैं. उनका कहना है कि यह गंगा मइया की ही कृपा है कि उन्होंने अपने भक्तों को निर्मल व अविरल गंगाजल में आस्था की डुबकी लगाने का मौका दिया है.

गंगा सिर्फ आस्था तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह जीवनदायिनी भी है। करोड़ों भारतवासियों का जीवन गंगा पर ही केंद्रित है. ऐसे में कोरोना के मुश्किल दौर से मिले सबक से यह सीखा जा सकता है कि संयमित जीवनशैली के ज़रिये मोक्षदायिनी कही जाने वाली गंगा को उसका पुराना गौरव वापस दिलाया जा सकता है. वैसे भी यह तब और अहम हो जाता है कि आईसीएमआर जैसी संस्थाएं गंगाजल के ज़रिये कोरोना के इलाज की संभावनाएं तलाश रही हैं.

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