वाराणसी, नितीश कुमार पाण्डेय। लॉकडाउन के दौरान भले ही इंसान खुद को घरों में कैद महसूस कर रहे हैं, लेकिन प्रकृति खुली सांस ले ली है। लॉकडाउन का दूसरा चरण जारी है और इस दौरान पावन गंगा नदी का जल भी फिर से निर्मल होने लगा है। वाराणसी में गंगा इतनी स्वच्छ हो गई हैं, मानों गंगा मइया इस दिन का ही इंतजार कर रही थीं। लॉकडाउन भले ही कुछ लोगों को कांटे की तरह चुभ रहा हो, लेकिन इस वक्त प्रकृति खिल-खिला रही है।



बता दें कि लॉकडाउन के दौरान वाराणसी में गंगा 40 प्रतिशत तक शुद्ध हो चुकी हैं। जो मछलियां कभी गंगा प्रदूषण की भेंट चढ़ जाती थीं, वो मछलियां सीढ़ियों के किनारे अटखेलियां ले रही हैं। वैज्ञानिकों की मानें, तो गंगा का पानी अब स्नान करने के योग्य हो गया है।



....वैज्ञानिकों के शोध में प्रदूषण मुक्त हैं गंगा


भगीरथ के पुरखों को तारने वाली भागीरथी पर प्रदूषण का साया मंडरा रहा था। गंगा में गिरने वाले नाले और फैक्ट्री का प्रदूषित कारक सीधे नदी के जल में जाने की वजह से गंगा के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा था, जो जल कभी आचमन के योग्य था। कुछ दिनों पहले उस जल में स्नान से भी परहेज करने की बात हो रही थी, लेकिन लॉकडाउन के दौरान चौबेपुर से चुनार तक गंगा के हालात पर बीएचयू आईआईटी के प्रोफेसर पीके मिश्र ने शोध किया, तो पता चला कि गंगा का जल अब पहले से शुद्ध हो गया है, बल्कि इनका तो दावा है कि आज की जो स्थिति है, उसमें गंगा का जल 40 प्रतिशत तक शुद्ध हो गया है।


....प्रदूषण के कारकों पर नियंत्रण शुद्धि की बड़ी वजह


गौरतलब है कि लॉकडाउन के बाद से गंगा में नावों का संचालन बन्द हैं, फैक्ट्रियों को भी बन्द किया गया है और इसके साथ ही गंगा में स्नान आदि भी बन्द हैं। लिहाजा गंगा के जल को प्रभावित करने वाले प्रदूषण पर इन दिनों नियंत्रण है। इसके साथ ही, रेल और विमान सेवा पर भी पूरी तरह से रोक है, इसलिए हवाएं भी शुद्ध हैं। नतीजा सालों बाद गंगा का काला पड़ रहा जल, अब साफ दिखने लगा है। वाराणसी के घाट किनारे जल में अटखेलियां करती मछलियां भी इन दिनों देखी जा सकती है। वैज्ञानिकों की मानें, तो गंगा में घुलित आक्सीजन (do) की मात्रा 5 और 6 मिलीग्राम पर लीटर के बीच थी, वो अब बढ़कर 10 मिलीग्राम पर लीटर तक पहुंच गई है। उसी तरह केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (cod) लगभग 20 मिलीग्राम पर लीटर तक था, वो घटकर आठ मिलीग्राम पर लीटर आ गया है। बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (bod) गंगा में 4 से 6 मिलीग्राम पर लीटर था, वो घटकर 2 से 3 मिलीग्राम पर लीटर पहुंच गया है। लिहाजा अब जल शुद्ध है ।



....शुद्धता को बरकरार रखना बड़ा चैलेंज


प्रशासनिक आंकड़ों पर गौर करें, तो वाराणसी में पांच एसटीपी, एक एसटीपी डीएलडब्ल्यू , एक भगवानपुर दो दीनापुर एक गोइठहां में, जिसमे डीएलडब्ल्यू एसटीपी 12 एमएलडी जल को ट्रीट करके रीयूज कर रहा है। भगवान में 9.8 एमएलडी सीवेज का शोधन कर गंगा में छोड़ा जाता है। दीनापुर में एक 80 एमएलडी शोधन के बाद गंगा में  और दूसरा 140 एमएलडी सीवेज सहायक नदी वरुणा में गोइठहां में 120 एमएलडी शोधन के शारदा सहायक कैनाल में जाता। ऐसे में लगभग 300 एमएलडी सीवर  शहर से निकलता है और लगभग 200 एमएलडी अभी ट्रीट हो रहा और 100 एमएलडी अभी भी सीधे तौर पर गंगा और सहायक नदी वरुणा में जा रहा है। रमना में पचास एमएलडी निर्माणाधीन है और उम्मीद है कि इसके बनने के निर्माण के बाद समस्या हल हो जाएगी। लगातार शुद्ध हो रहा गंगा का जल अच्छे संकेत तो दे रहा है, लेकिन अब इस जल को आगे शुद्ध रखना भी एक बड़ा चैलेंज होगा और देखना ये होगा कि सरकार और व्यवस्था गंगा की शुद्धता को लेकर आगे क्या कदम उठाती हैं?


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