Sonbhadra News: यूपी में पड़ रही प्रचंड गर्मी के कारण बिजली की मांग में भारी वृद्धि हुई है जिससे प्रदेश की बिजली आपूर्ति लड़खड़ाई है. गांवों में पूरी रात बिजली नहीं मिल पा रही है, जबकि शहरी क्षेत्रों में अघोषित कटौती से हालात बदतर होते जा रहे हैं. सोनभद्र जिले में सार्वजनिक क्षेत्र की कई इकाइयों के बंद होने से बिजली की उपलब्धता घट गई है. वहीं दूसरी तरफ केंद्रीय सेक्टर की भी तमाम इकाइयों के बंद होने से यूपी के कोटे में कमी हो गई है. जनपद सोनभद्र में 350 मेगावाट बिजली की मांग के बदले केवल 200 मेगावाट बिजली की सप्लाई मिल पा रही है.


आ रही है कोयले की कमी
जिले में उत्पादन एनटीपीसी को छोड़कर प्रदेश के सभी सरकारी और निजी बिजली घरों में कोयले की कमी लगातार बढ़ती जा रही है. सोनभद्र नरे में कोल खदान होने की वजह से विद्युत गृह की कोई इकाई बंद नहीं हैं. कोयले की कमी से इकाई को कम लोड पर संचालित भी नहीं किया जा रहा है, लेकिन मांग के अनुरूप कोयला नहीं मिलने से विद्युत गृहों से प्रतिदिन कोयले के स्टॉक में कमी आ रही है, जो जल्द ही समस्या का कारण बनेगा. अनपरा में मानक का 37 फीसदी कोयले का स्टॉक हैं. परियोजना में प्रतिदिन 40 हजार टन कोयले की खपत होती है, लेकिन आपूर्ति 30 हजार टन की ही हो रही हैं. परियोजना में लगभग दो लाख टन कोयले का भंडारण है. जिससे महज परियोजना को पांच दिनों तक ही चलाया जा सकता है.


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की जा रही है कोयले के बढ़ाने की कवायद
निजी क्षेत्र की अनपरा सी लैंको परियोजना में मानक का महज 21 फीसद ही कोयला हैं. 14 हजार टन प्रतिदिन खपत के सापेक्ष इन दिनों लगभग 12 हजार टन की आपूर्ति हो रही हैं. लैंको में लगभग 56 हजार टन कोयले का स्टॉक है. जिससे परियोजना को महज 4 दिन तक चलाया जा सकता है. इसी क्रम में ओबरा तापीय परियोजना में मानक का 14 फीसद ही कोयले का स्टाक है. प्रतिदिन 14 हजार टन खपत के सापेक्ष लगभग 7 हजार टन कोयले की आपूर्ति हो रही है. परियोजना में लगभग 58 हजार टन कोयले का स्टॉक है. जिनसें महज चार दिन तक प्लांट को चलाया जा सकता है. अनपरा तापीय परियोजना के सीजीएम आरसी श्रीवास्तव ने कहा कि कोयले की कमी को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयासों को तलाश कर स्टाक को बढ़ाने की कवायद जारी है. बिजली परियोजनाओं में केंद्र सरकार की एनटीपीसी में स्टाक सबसे ज्यादा एनटीपीसी शक्तिनगर में कोयले का स्टॉक मानक से 118 फीसदी अधिक है. प्रतिदिन 26 हजार टन खपत के सापेक्ष उतनी आपूर्ति एनसीएल से हो रही है. परियोजना में पांच लाख टन से अधिक कोयले का स्टॉक है. इसी क्रम में एनटीपीसी रिहंद बीजापुर में सबसे ज्यादा मानक का 173 फीसदी कोयले का स्टॉक है. प्रतिदिन 28 हजार टन खपत के के सापेक्ष 31 हजार टन कोयले की आपूर्ति हो रही है. परियोजना में लगभग 11 लाख टन कोयले का स्टॉक है.




ग्रामीण स्तर पर मिल रही है रोस्टर के अनुसार बिजली
अप्रैल में अब तक राज्य विद्युत उत्पादन निगम को 280 मिलियन (28 करोड़) यूनिट बिजली उत्पादन की हानि उठानी पड़ी है. जिले में फिलहाल आपूर्ति की स्थिति में सुधार के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. खुद ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा भी मान रहे हैं कि कुप्रबंधन की वजह से प्रदेश में बिजली व्यवस्था चरमराई है. एक तरफ उत्पादन इकाइयां साथ नहीं दे रही हैं तो दूसरी तरफ वितरण और ट्रांसमिशन नेटवर्क भी आपूर्ति व्यवस्था सुचारू रखने में नाकाम साबित हो रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में रोस्टर के अनुसार भी बिजली नहीं मिल रही है . शहरी क्षेत्रों में ओवरलोड सिस्टम बाधक बन रहा है.


गांवों में की जा रही है 21 से 22 घंटे तक की कटौती 
पावर कॉर्पोरेशन की आंतरिक रिपोर्ट के अनुसार बीती रात गांवों में औसतन 2 से 3 घंटे, तहसील मुख्यालयों पर 6 से 7 घंटे, नगर पंचायतों में 6 से 7 घंटे की कटौती की गई. रिपोर्ट में जिला मे मुख्यालयों, तहसील मुख्यालय, नगर पंचायतों और उद्योगों को 24 घंटे आपूर्ति का दावा किया गया है लेकिन जिले में जमीनी स्तर पर हालात कुछ और हैं.




किया जा रहा है कोयले का प्रबंध
सोनभद्र जनपद में बिजली उत्पादन कराने वाली प्रदेश की सबसे बड़ी 2630 मेगावाट क्षमता की अनपरा तापीय परियोजना की सातों इकाई मांग के अनुरूप पूर्ण क्षमता से संचालित हो रही है. शुक्रवार की अपराह्न तक 2367 मेगावाट विद्युत उत्पादन जारी रहा. अनपरा परियोजना में 210 मेगावाट की तीन इकाई से विद्युत उत्पादन किया जाता है. इन दिनों अ परियोजना से लगभग 505 मेगावाट बिजली उत्पादन हो रहा है. अनपरा ब परियोजना में 500 मेगावाट क्षमता की दो इकाई से विद्युत उत्पादन होता है. शुक्रवार को अनपरा ब से 902 मेगावाट विद्युत उत्पादन जारी रहा. इसी क्रम में अनपरा डी परियोजना में 500 मेगावाट क्षमता की दो इकाई संचालित होती है, जिससे 960 मेगावाट विद्युत उत्पादन जारी है. इसी क्रम में 1200 मेगावाट क्षमता की अनपरा सी लैंको परियोजना से 600 मेगावाट की दो इकाई से विद्युत उत्पादन किया जाता है. शुक्रवार को दोनो इकाई से 1113 मेगावाट बिजली ग्रिड को दी गई. सूत्रों के मुताबिक अनपरा तापीय परियोजना मे कोयले के इस संकट दौर में भी पूर्ण क्षमता से सभी इकाईयों से विद्युत उत्पादन जारी है. कोयले के स्टाक को बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास जारी है. ओबरा में 200 मेगावाट की चार इकाइयों से विद्युत उत्पादन किया जा रहा है. जबकि अनुरक्षण के लिए 200 मेगावाट की 13 वीं इकाई बंद चल रही है. शुक्रवार को प्रदेश में बिजली की अधिकतम और न्यूनतम मांग में वृद्धि कायम रही. अधिकतम बिजली की मांग जहां 20605 मेगावाट बना रहा वहीं न्यूनतम मांग भी बढ़कर 17037 मेगावाट के आसपास बना रहा. अनपरा की इकाइयों द्वारा पूर्ण क्षमता से विद्युत उत्पादन किए जाने से निगम का उत्पादन 4300 मेगावाट के आसपास बना रहा.


तीन हजार मेगावाट का है अंतर
भीषण गर्मी के चलते प्रदेश में बिजली संकट गहरा गई है. मांग 23 हजार के सापेक्ष आपूर्ति 20 हजार मेगावाट हो रही है. इस तरह तीन हजार मेगावाट की कमी के कारण आपात कटौती लगातार जारी है. बिजली कटौती से आम जनजीवन पूरी तरह त्रस्त है. परियोजना के चारों इकाई 9 वीं 10 वीं 11 वीं और 12 वीं को फुल लोड पर चलाया जा रहा है. उप्र राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक पी गुरुप्रसाद के निर्देश के बाद ओबरा परियोजना प्रबंधन चारों इकाई को फुल लोड पर चला रहा है, ताकि प्रदेश में बिजली की किल्लत कम हो सके.


बढ़ रही है बिजली की मांग


यूपी में बिजली की मांग 22,000 मेगावाट से ऊपर पहुंच गई है. जबकि अधिकतम आपूर्ति 19,250 मेगावाट है. चूंकि पूरे उत्तर भारत में बिजली की मांग बढ़ गई है इसलिए ग्रिड से अतिरिक्त बिजली का आयात संभव नहीं हो पा रहा है. वैसे भी अधिकांश समय ग्रिड में अनशिड्यूल इंटरचेंज (निर्धारित कोटे से ज्यादा आयात) की दरें आठ रुपये प्रति यूनिट के आसपास चल रही है और एनर्जी एक्सचेंज में इससे ज्यादा दर पर बिजली उपलब्ध है इसलिए अतिरिक्त बिजली खरीदना भी संभव नहीं हो पा रहा है. कॉर्पोरेशन के अधिकारी मार्केट में बिजली न होने की बात कहकर हाथ खड़े कर दे रहे हैं.


सोनभद्र में पौने दो लाख कोयले की है खपत
बता दें कि महज अकेले सोनभद्र में बिजली उत्पादन में रोजाना लगभग पौने दो लाख टन कोयला जलाया जा रहा है. वहीं सोनभद्र और इससे सटे सिंगरौली स्थित दस कोयला खदानों से रोजाना लाखों टन कोयले का उत्खनन किया जा रहा है, जो कार्बन उत्सर्जन का एक बड़ा स्रोत है.


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