Prayagraj Latest News: मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि के 10 किलोमीटर के दायरे में मांस और शराब बेचने पर पाबंदी जारी रहेगी. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस बैन को हटाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि भारत महान विविधता का देश है. यदि हम अपने देश को सभी समुदायों और संप्रदायों के प्रति सहिष्णुता और सम्मान के लिए एकजुट रखना चाहते हैं तो इस तरह के कदम नितांत आवश्यक हैं.
22 वार्डों में जारी रहेगी पाबंदी
कोर्ट ने कहा, यह आदेश नगरपालिका के सिर्फ 22 वार्डों के लिए है इसलिए इससे किसी के मौलिक अधिकार का कोई हनन नहीं हो रहा है. याचिका में पसंद का भोजन करने पर इन वार्डों की पुलिस द्वारा परेशान करने की आशंका जताई गई थी और ऐसा होने का आरोप भी लगाया गया था.
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अदालत ने इसके पीछे कोई आधार नहीं माना. अदालत ने अपने फैसले में कहा- इस तरह की घोषणा राज्य का विशेषाधिकार है. अदालत ने यह भी कहा कि जनहित याचिका में प्रतिबंध लगाने की सरकारी अधिसूचना और आदेश को चुनौती नहीं दी गई है, इसलिए उसकी वैधता पर कोई टिप्पणी नहीं की जा रही है और ना ही उसकी जांच की जा रही है.
जानें पूरा मामला
गौरतलब है कि यूपी सरकार ने पिछले साल 10 सितंबर को वृंदावन में कृष्ण जन्मभूमि परिसर के आसपास तकरीबन 10 किलोमीटर के क्षेत्र को तीर्थ स्थल घोषित कर वहां शराब व मांस की बिक्री पर पाबंदी लगा दी थी. नगर पालिका परिषद के दायरे में आने वाले 22 वार्डों में यह पाबंदी लगाई गई थी.
मथुरा के खाद्य सुरक्षा अधिकारी ने इसके बाद इन जगहों पर चलने वाले मांसाहारी रेस्टोरेंट के लाइसेंस निलंबित कर दिए थे. मथुरा की सामाजिक कार्यकर्ता शाहिदा ने बिक्री पर रोक लगाने के आदेश को मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए इसी साल जनवरी महीने में वहां के डीएम को प्रत्यावेदन दिया था. डीएम के यहां से कोई राहत नहीं मिलने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी.
इसमें कहा गया था कि इन इलाकों में रहने वाले लोगों को उनकी पसंद के मांसाहारी भोजन करने से रोका जा रहा है और उनके व्यवसाय व आजीविका को चलाने से भी वंचित किया जा रहा है. यूपी सरकार की तरफ से इस याचिका का विरोध किया गया. सरकार की तरफ से कहा गया कि पाबंदी सिर्फ 22 वार्डों में है, इससे किसी के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होता है. इसके अलावा ना ही पुलिस प्रशासन द्वारा किसी को अनावश्यक तौर पर परेशान किया जा रहा है.
यूपी सरकार की तरफ से यह भी कहा गया कि पीआईएल में सरकारी आदेश को सीधे तौर पर कोई चुनौती नहीं दी गई है ना ही उसकी वैधता पर सवाल खड़े किए गए हैं. कोर्ट ने यूपी सरकार की इस दलील से सहमति जताई. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पीआईएल में लोगों को परेशान करने का जो आरोप लगाया गया है इसे साबित करने के लिए कोई सामग्री रिकॉर्ड में नहीं लाई गई है. कोर्ट ने इसी आधार पर अर्जी को खारिज कर दिया. जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई.
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