प्रयागराज: गाजियाबाद के मुरादनगर में ठेकेदार और सरकारी अफसरों की लूट खसोट व भ्रष्टाचार के चलते श्मशान घाट की छत गिरने से तमाम लोगों को अपनी जान गंवाने पड़ी, लेकिन ऐसा नहीं है कि इस तरह की लूट खसोट और भ्रष्टाचार सिर्फ गाजियाबाद जिले तक ही सीमित है. यूपी के ज्यादातर सरकारी निर्माण कार्यों में अक्सर ही लापरवाही व मानक की अनदेखी किए जाने की शिकायतें सामने आती रहती हैं. सूबे के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का शहर प्रयागराज भी इससे कतई अछूता नहीं है.


ट्रफिक डायवर्जन से लोगों को आ रही है दिक्कतें


प्रयागराज में शहर को लखनऊ और फैजाबाद से जोड़ने वाले वाला मुख्य रास्ता पिछले 4 दिनों से बसना नाले पर बने पुल के क्षतिग्रस्त होने से की वजह से बंद पड़ा हुआ है. यहां ट्रैफिक का डायवर्जन कर दिया गया है. छोटे वाहनों को पड़ोस के दूसरे संकरे रास्ते से बारी- बारी से गुजारा जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ रोडवेज बसों समेत बड़े वाहनों को करीब 25 किलोमीटर का अतिरिक्त सफर तय करना पड़ रहा है. रोडवेज ने प्रयागराज से लखनऊ और फैजाबाद रोड पर रूट पर आने जाने का किराया भी फौरी तौर पर बढ़ा दिया है. इसके साथ ही फाफामऊ और आसपास के इलाकों में लम्बा जाम भी लग रहा है.


25 साल पहले बनाया गया था पुल


दरअसल प्रयागराज शहर के बाहरी हिस्से फाफामऊ में बसना नाले पर लोक निर्माण विभाग ने तकरीबन 25 साल पहले एक पुल बनाया था. यह पुल प्रयागराज को लखनऊ और फैज़ाबाद से जोड़ने वाले मुख्य मार्ग पर बनाया गया था. इस पुल के पिलर्स की मिट्टी 4 दिन पहले धंस गई, जिसकी वजह से पुल के गिरने का खतरा मंडराने लगा. आनन-फानन में अफसरों ने पुल को पूरी तरह से आवागमन के लिए बंद कर दिया. पहले इसकी मरम्मत की कोशिश की गई, लेकिन जब यह लगा कि नए सिरे से पिलर खड़ा करने और इसके बराबर एक वैकल्पिक पुल तैयार किए बिना काम नहीं चलेगा तब एक बाईपास तैयार किए जाने का काम शुरू किया गया. पुल को तैयार होने में अब कई महीने का वक्त लगेगा क्योंकि यह बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है और इस पर आवागमन जान जान जोखिम में डालने वाला होगा.


वैकल्पिक रास्ता बनने में अभी वक्त लगेगा


सरकारी अमला विकल्प के तौर पर जो बाईपास तैयार करा रहा है उसे भी पूरा होने में हफ्ते भर का वक्त लग सकता है, तब तक लोगों को इसी तरह डायवर्टेड रास्ते से ही सफर तय करना होगा. पुल पर आवागमन बंद होने से करीब एक किलोमीटर के बाजार और सारी दुकानें भी बंद हैं, क्योंकि इन तक कोई जा ही नहीं पा रहा है. इसके अलावा लंबी दूरियों का सफर तय करने वालों के साथ ही स्थानीय लोगों को भी आवागमन में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.


मानकों को ताक पर रखा गया था


लोक निर्माण विभाग द्वारा तकरीबन 25 साल पहले तैयार किए गए इस पुल के बारे में जानकारों का कहना है कि इसे तैयार करते वक्त मानकों का पूरी तरह से ख्याल नहीं रखा गया. मिट्टी धंसने से पिलर को कोई खतरा ना हो इसके लिए बाहरी दीवार नहीं खड़ी की गई थी और यही पुल के क्षतिग्रस्त होने की सबसे बड़ी वजह बना है. बहरहाल पुल के क्षतिग्रस्त होने से लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. लोगों का कहना है अगर निर्माण के वक्त पुल की रिटेनिंग वॉल भी बनाई जाती तो आज यह नौबत नहीं आती. यह सरासर लापरवाही का मामला है.


कौन जिम्मेदार?


इस मामले में कोई भी जिम्मेदार अधिकारी कैमरे के सामने कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. मतलब साफ है कि रूट डायवर्ट कर सरकारी अमले ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है. मियाद खत्म होने से काफी पहले ही पुल क्यों क्षतिग्रस्त हुआ, इसके पीछे किसकी लापरवाही है, कौन इसका जिम्मेदार है, इसके लिए ना तो अभी तक कोई किसी की जवाबदेही तय की गई है और ना ही किसी को जिम्मेदार ठहराया गया है.


यह तो गनीमत रही कि मिट्टी धंसने से पिलर के कमजोर होने की बात वक्त रहते पता चल गई वरना हमेशा वाहनों की भीड़ से के बोझ तले दबे रहने वाले इस पुल पर गाजियाबाद के मुरादनगर जैसे किसी बड़े हादसे की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता था. बेशक प्रयागराज में बड़ा हादसा होने से तो बच गया लेकिन किसी की जवाबदेही और जिम्मेदारी तय तो होनी ही चाहिए ताकि भविष्य में किए जाने वाले निर्माणों पर ऐसी लापरवाही फिर से न बरती जा सके.


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