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UP Nikay Chunav: निकाय चुनाव से पहले सपा में इंटरव्यू को लेकर घमासान, सीनियर नेताओं के एतराज के बाद फैसला वापस
Prayagraj News: सीनियर नेताओं की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि उनसे काफी जूनियर पदाधिकारी ये जानकारी मांगे कि उन्होंने पार्टी के लिए क्या किया या उनका क्या योगदान रहा है.
UP Nikay Chunav: प्रयागराज (Prayagraj News) में मेयर के टिकट (Mayor Ticket) को लेकर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) में घमासान मचा हुआ है. सीट ओबीसी वर्ग के लिए रिजर्व होने के बावजूद दो दर्जन से ज्यादा नेता टिकट के लिए औपचारिक तौर पर आवेदन कर चुके हैं, हालांकि कई ऐसे पुराने व अनुभवी नेताओं के नाम भी चर्चा में हैं जिन्होंने आवेदन तो नहीं किया, लेकिन पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ने को लेकर उनके मन में भी लड्डू फूट रहे हैं.
स्थानीय पदाधिकारियों द्वारा दावेदारों से इंटरव्यू लिए जाने के फैसले पर कोहराम जरूर मचा हुआ है. कई सीनियर नेताओं व दावेदारों के एतराज़ के बाद इंटरव्यू की प्रक्रिया को अब ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, लेकिन इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि कुछ लोगों ने औपचारिक तौर पर आवेदन ही नहीं किया. इंटरव्यू को लेकर चुनाव से पहले मचे घमासान ने पार्टी की तैयारियों को जरूर प्रभावित किया है, लेकिन एतराज जताने वाले नेताओं से लेकर स्थानीय पदाधिकारी तक अब सब कुछ ठीक हो जाने का दावा कर रहे हैं.
सपा में इंटरव्यू को लेकर घमासान
दरअसल, सपा में स्थानीय पदाधिकारियों ने मेयर व पार्षद का चुनाव लड़ने के इच्छुक पार्टी नेताओं से औपचारिक तौर पर आवेदन करने को कहा था. मेयर पद के लिए 40 से ज्यादा आवेदन हुए थे, जबकि पार्षद की 100 सीटों पर तकरीबन साढ़े पांच सौ. इस बीच प्रयागराज में मेयर की सीट ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित कर दी गई, ऐसे में टिकट के दावेदारों की संख्या घटकर दो दर्जन रह गई. स्थानीय पदाधिकारियों की तरफ से बाकायदा प्रेस नोट जारी कर ये एलान किया गया था कि मेयर के सभी दावेदारों का इंटरव्यू लिया जाएगा. उनसे पार्टी के लिए किए गए कामों के जानकारी मांगी जाएगी और इंटरव्यू के जरिए ही उनकी चुनावी तैयारियों को परखा जाएगा. इंटरव्यू के आधार पर तीन से चार दावेदारों के नामों का एक पैनल बनाकर उसे पार्टी हाईकमान के पास भेजा जाएगा. पार्टी हाईकमान ही इन दावेदारों में से किसी एक के नाम पर मुहर लगाएगा.
सीनियर नेताओं ने जताई नाराजगी
बताया जाता है कि स्थानीय पदाधिकारियों द्वारा इंटरव्यू लिए जाने के एलान से कई पुराने व दिग्गज नेता नाराज थे. उनकी नाराजगी इस बात को लेकर थी कि वह खुद कई दशकों से पार्टी में जुड़े हैं, तमाम महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं. पार्टी के सभी लोग उनके बारे में बखूबी जानते हैं, ऐसे में स्थानीय स्तर के उनसे कम अनुभवी व जूनियर पदाधिकारी उनका इंटरव्यू लें. बताया जाता है कि इंटरव्यू के फैसले के चलते कुछ वरिष्ठ नेताओं ने औपचारिक तौर पर आवेदन ही नहीं किया.
इसके अलावा आवेदन करने वाले कुछ एक नेताओं ने इंटरव्यू देने से मना कर दिया. इनकी दलील थी कि यह उनके सियासी कद व रसूख के हिसाब से कतई ठीक नहीं है कि उनसे काफी जूनियर पदाधिकारी पार्टी के लिए किए गए उनके संघर्षों व योगदान के बारे में जानकारी मांगे. उन्होंने पार्टी के लिए जो कुछ किया है, उसकी जानकारी तो सभी को है.
विरोध के बाद फैसला वापस
स्थानीय पदाधिकारियों ने आवेदन जमा करने की समय सीमा खत्म होने के बाद इंटरव्यू के लिए बाकायदा तारीखों का ऐलान भी कर दिया था, लेकिन पहले ही दिन जिस तरीके का विरोध और एतराज हुआ, उसके बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. पार्टी के जिम्मेदार नेताओं में से कोई इंटरव्यू के बदले अब आपस में बैठक करने की बात कह रहा है तो कोई इंटरव्यू की सूचना मीडिया में किसी गलतफहमी की वजह से जारी हो जाने के दावे कर रहा है. कोई पदाधिकारी इस फैसले से ही इंकार कर रहा है तो कोई अब यह कह रहा है कि इंटरव्यू का जो कार्यक्रम प्रस्तावित था उसे फिलहाल स्थानीय स्तर पर खत्म कर दिया गया है.
वैसे एतराज जताने वाले नेताओं में से कुछ ने इंटरव्यू दे भी दिया था. विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हरिओम साहू पिछले तीन दशकों से समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए हैं, लेकिन अब उन्हें पार्टी के टिकट की दरकार है. लिहाजा कैमरे के सामने वो ये कहने से नहीं चूकते कि नाम व अनुभव नहीं, बल्कि पद बड़ा होता है और स्थानीय पदाधिकारियों को इंटरव्यू देने में उन्हें कतई हिचक नहीं हुई. कहा जा सकता है कि इंटरव्यू को लेकर समाजवादी पार्टी में आया तूफान अब भले ही शांत हो गया हो, लेकिन कुछ एक नेता अब यह कह रहे हैं कि बिना औपचारिक आवेदन के ही पार्टी को उनके नाम पर विचार करना चाहिए.
सपा को हो सकता है नुकसान
ऐसे में अब देखना यह होगा कि पार्टी अपने नेताओं की ही नाराजगी व दलीलों से कैसे निपटती है. वैसे प्रयागराज में सपा फिलहाल बीजेपी को सीधी टक्कर देती हुई नजर आ रही है. दूसरी तरफ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इंटरव्यू को लेकर छिड़े विवाद से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रतिभान त्रिपाठी का कहना है कि समाजवादी पार्टी में एक जाति विशेष का वर्चस्व होने की जो परंपरा है यह उसी का नतीजा है और यह कोई नई बात नहीं है.
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डॉ. सुब्रत मुखर्जीरिटायर्ड प्रोफेसर, दिल्ली यूनिवर्सिटी
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