UP Politics : बीजेपी सांसद रीता बहुगुणा जोशी (Rita Bahuguna Joshi) ने अपने पिता व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा पर एक किताब लिखी है. उनकी यह किताब लोकार्पण से पहले ही विवादों में घिर गई है. दरअसल रीता जोशी ने अपनी इस किताब में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर जमकर निशाना साधा है. उनकी कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े किये हैं और आरोप लगाया है कि इंदिरा गांधी उनके पिता हेमवती नंदन बहुगुणा के सियासी कद और लोकप्रियता से घबराती थीं.  किताब में दावा किया गया है कि इंदिरा को इस बात का डर था कि एच एन बहुगुणा उन्हें हटाकर देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं. इसी वजह से कई बार उनके पिता के खिलाफ साजिशें भी रचीं गईं.


रीता जोशी ने अपनी इस किताब में मिलेनियम स्टार अमिताभ बच्चन को गांधी परिवार का सियासी मोहरा बताया है. हालांकि अमिताभ बच्चन पर कोई टिप्पणी करने के बजाय उन्हें बेचारा करार दिया है. किताब के ज़रिये पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सियासी समझ पर भी सवाल उठाए गए हैं. कहा गया है कि हेमवती नंदन बहुगुणा वीपी सिंह के सियासी कद को ख़ासा बौना मानते थे. उन्हें लगता था कि वह पूरे देश को लीड नहीं कर सकते थे और उनके पीएम बनने से देश का नुकसान होगा. यही वजह है कि समूचे विपक्ष के एकजुट होने के बावजूद वह उनके साथ नहीं गए थे.


रीता जोशी ने अपनी इस किताब में प्रयागराज से जुड़ी रही इंदिरा गांधी की बेहद करीबी मानी जाने वाली पूर्व केंद्रीय मंत्री और उप राज्यपाल डा. राजेंद्र कुमारी बाजपेई पर भी निशाना साधा है. किताब में कहा है कि राजेंद्र कुमारी बाजपेई- बंशी लाल- सिद्धार्थ शंकर रे और कुछ अन्य नेताओं के साथ मिलकर इंदिरा गांधी को उनके पिता के खिलाफ भड़काती थीं. इंदिरा गांधी को चाटुकारिता पसंद थी, लिहाजा चाटुकारों की मंडली बहुगुणा को लेकर उनमे हमेशा असुरक्षा की भावना पैदा करती थी. इंदिरा को हमेशा इस बात का डर दिखाया जाता था कि बहुगुणा जी कभी भी उनकी कुर्सी पर काबिज होकर देश का प्रधानमंत्री बन सकते हैं. 


रीता जोशी ने अपनी किताब में इंदिरा गांधी पर कई आरोप लगाए हैं


रीता जोशी ने अपनी किताब में एक और खुलासा किया है कि इमरजेंसी से ठीक पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट से रायबरेली का चुनाव रद्द होने में भी इंदिरा गांधी को उनके पिता की साजिश नज़र आती थी. रीता जोशी का कहना है कि इस मामले में फैसला सुनाने वाले जज जगमोहन लाल सिन्हा कायस्थ बिरादरी के थे. उनकी मौसी का ब्याह भी कायस्थ जज से हुआ था. ऐसे में इंदिरा गांधी को लगता था कि बहुगुणा ने ही कोई साजिश रचकर उनके खिलाफ फैसला दिलवाया है. रीता जोशी ने अपनी किताब में इंदिरा गांधी पर एक और आरोप लगाया है. लिखा है कि वह पार्टी के सभी बड़े नेताओं पर अपने बेटे संजय गांधी को थोपती थीं. खुद उनके पिता हेमवती नंदन बहुगुणा पर मुख्यमंत्री रहते हुए समूचे यूपी में हेलीकॉप्टर से हर जगह साथ ले जाने का दबाव बनाया जाता था. उनके पिता के एतराज जताने पर भी इंदिरा गांधी उनसे नाराज़ रहती थीं.


किताब में अमिताभ बच्चन को बताया गांधी परिवार का मोहरा


किताब में दावा किया गया है कि इसी वजह से गढ़वाल उपचुनाव में उन्हें हराने के लिए न सिर्फ पूरी ताकत झोंक दी थी, बल्कि तमाम साजिशें भी रची गईं थीं. इंदिरा के लाख विरोध और सरकारी मशीनरी के खुले दुरुपयोग के बावजूद उनके पिता यह उपचुनाव जीतने में कामयाब हो गए थे. इससे कांग्रेस के लोग बौखला गए थे. गढ़वाल उपचुनाव समेत तमाम दूसरे मसलों पर बहुगुणा के ताकतवर साबित होने की वजह से ही राजीव गांधी ने अमिताभ बच्चन को अपनी दोस्ती का हवाला देकर उन्हें इलाहाबाद सीट से चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया था. किसी फिल्म स्टार को बड़े राजनेता के खिलाफ उत्तर भारत में पहली बार उतारा गया था, ताकि बहुगुणा चुनाव हार जाएं. अमिताभ बच्चन ने तो टिकट तक नहीं मांगा था. रीता ने इसी वजह से अमिताभ पर कोई टिप्पणी नहीं की है, बल्कि उन्हें सियासी तौर पर बेचारा कहते हुए उन्हें गांधी परिवार का मोहरा बताया है.


रीता जोशी ने कहा  इंदिरा गांधी पार्टी के किसी नेता पर भरोसा नहीं करती थीं


रीता जोशी ने अपनी किताब में लिखा है कि इंदिरा गांधी पार्टी के किसी भी नेता पर न तो भरोसा कर पाती थीं और न ही उसे फ्री हैंड छोड़ती थीं. इतना ही नहीं पार्टी नेताओं को वह जो ज़िम्मेदारी देती थीं, उसमे अपने लोगों से रोड़े भी अटकाती थीं. इंदिरा के बारे में एक उदाहरण देते हुए किताब में लिखा गया है- वह खरगोश से तेज दौड़ने के लिए कहती थीं, लेकिन खरगोश के पीछे कुत्ते छोड़कर उससे उसका शिकार करने को भी कहती थीं. रीता ने लिखा है कि उनके पिता सिद्धांतवादी राजनीतिज्ञ थे. उन्होंने इमरजेंसी लगाए जाने का विरोध किया था. वह संजय गांधी की बेवजह की दखलंदाजी पर एतराज जताते थे. इंदिरा को हमेशा सही सलाह देते थे, लेकिन चाटुकारों से घिरी इंदिरा अक्सर उन्हें अपना प्रतिद्वंदी व सियासी दुश्मन ही समझती थीं.


इंदिरा गांधी को लेकर रीता जोशी ने ये खुलासा भी किया है


रीता जोशी ने खुलासा करते हुए लिखा है कि इंदिरा को इस बात का भी डर सताता रहता था कि बहुगुणा भी उनकी तरह सोवियत रूस के भरोसेमंद व करीबी होते जा रहे हैं. नदवा में इस्लामिक कांफ्रेंस के लिए सीएम रहते हुए इंतजाम किये जाने से भी इंदिरा उनसे नाराज़ थीं। इंदिरा गांधी जब उद्योगपति बिड़ला को निर्दलीय तौर पर राज्यसभा भेजना चाहती थीं, तब भी उनके पिता ने खुलकर विरोध किया था और सदन में उद्योगपतियों को भेजे जाने को गलत परंपरा बताया था. इंदिरा इससे भी उनसे चिढ गई थीं। रीता जोशी ने लिखा है कि राजेंद्र कुमारी बाजपेई -बंशी लाल- वीपी सिंह- सिद्धार्थ शंकर जैसे नेता बहुगुणा जी की लोकप्रियता से घबराते थे और इसी वजह से इंदिरा गांधी को उनके खिलाफ भड़काते थे. 


रीता जोशी की किताब पर उठ रहे विवाद


दूसरी ओर किताब पर उठ रहे सवालों और विवादों पर रीता जोशी का कहना है कि सच को कभी झुठलाया नहीं जा सकता. इतिहास पर बहस होनी चाहिए. जिसे भी एतराज हो वह चर्चा कर सकता है. रीता जोशी की इस किताब का नाम - 'हेमवती नंदन बहुगुणा : भारतीय जनचेतना के संवाहक' नाम से है. वाणी प्रकाशन ने इसे हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में प्रकाशित किया है. इसका लोकार्पण चार मई को नई दिल्ली में उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू करेंगे. इस मौके पर उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी समेत तमाम दूसरी हस्तियां भी मौजूद रहेंगी. रीता जोशी की यह किताब सवा तीन सौ पन्नों की है. किताब में इंदिरा गांधी और वीपी सिंह से लेकर तमाम नेताओं पर जिस बेबाकी से निशाना साधा गया है और उनकी कार्यशैली व सियासी समझ पर सवाल उठाए गए हैं, उससे इस पर आने वाले दिनों में कोहराम मचना तय है. 


लोकार्पण के बाद किताब पर राजनीतिक घमासान  बढ़ सकता है


लोकार्पण के बाद किताब जब सामने आएगी, तब राजनीतिक घमासान और भी बढ़ सकता है. वैसे दबे जुबान चर्चा यह भी हो रही है कि कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की सियासत कर रही बीजेपी सांसद डॉ रीता बहुगुणा जोशी अपनी इस किताब के बहाने सियासी तीर चलाकर इसका फायदा भी लेना चाहती हैं. किताब को लिखने में रीता जोशी की मदद करने वाले वरिष्ठ पत्रकार डॉ. राम नरेश त्रिपाठी अब इस दुनिया में नहीं रहे. कोरोना की चपेट में आने से तकरीबन साल भर पहले उनका निधन हो चुका है.


हालांकि रीता जोशी ने इंदिरा गांधी और अपने पिता के बीच रिश्तों की खटास को लेकर साफ़ तौर पर कहा है कि यह एक ऐसी कड़वी हकीकत है, जिसे बेटी रहते हुए उन्होंने खुद देखा और महसूस किया है. इतिहास की प्रोफ़ेसर होने के नाते वह इन तथ्यों को गलत बताने वालों को चुनौती देती हैं कि सवाल उठाने वाले भी कुछ लिखकर उसे सार्वजनिक करें. राजनीति में सत्ता पर काबिज रहने के लिए साम - दाम- दंड- भेद सब का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इतिहास के तथ्यों को कभी झुठलाया नहीं जा सकता। उन्होंने किताब में जो कुछ लिखा है वह ठोस तथ्यों पर आधारित सच्चाई है.


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