Prayagraj Children Hospital: मौसम में आए बदलाव की वजह से संगम नगरी प्रयागराज (Prayagraj) में भी बड़ी संख्या में बच्चे बीमार हो रहे हैं. कोई वायरल बुखार (Fever) की चपेट में आ रहा है तो किसी को उल्टी-दस्त की शिकायत है. अचानक बीमार बच्चों की भीड़ आने से यहां सरकारी अस्पतालों (Government Hospitals) के सारे इंतजाम फेल हो गए हैं. हालात इतने बदतर हैं कि चिल्ड्रन हॉस्पिटल की इमरजेंसी में एक-एक बेड पर तीन से चार बच्चों को लिटाकर उनका इलाज किया जा रहा है. इससे पहले से ही बीमार बच्चों में संक्रमण और बढ़ने का खतरा मंडराने लगा है.
डॉक्टर्स को इलाज करने में हो रही है दिक्कत
बीमार मासूमों को अस्पताल में भर्ती कराने और उन्हें पहले से ही भरे हुई बेड पर थोड़ी सी जगह दिलाने के लिए लोगों को जिम्मेदारों के सामने नाक रगड़नी पड़ रही है. कई बच्चों को तो उनकी माताएं जमीन पर ही लिटाकर इलाज की गुहार लगा रही हैं. चिल्ड्रन हॉस्पिटल की इमरजेंसी में तो मेले जैसे हालात हैं. यहां बीमार बच्चों और उनके परिवार वालों का मेला सा लगा हुआ है, जिसकी वजह से डॉक्टर्स को इलाज करने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
बेड की कमी
प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज द्वारा संचालित सरोजनी नायडू चिल्ड्रन हॉस्पिटल पूरे प्रयागराज मंडल का रेफरल अस्पताल है. इसके अलावा आसपास के दूसरे जिलों के भी गंभीर रूप से बीमार तमाम बच्चे यहां इलाज के लिए भेजे जाते हैं. पिछले कुछ दिनों से यहां इतने ज़्यादा बीमार बच्चे इलाज के लिए आ रहे हैं कि हॉस्पिटल में तिल रखने तक की जगह नहीं बची है. हॉस्पिटल के बेड फुल हो गए तो दो-दो बच्चों को लिटाया गया, लेकिन सोमवार को हालत ये हो गई कि एक एक बेड पर तीन से चार बच्चों को एडमिट करना पड़ा. ज़्यादातर बच्चे छोटे हैं, इसलिए उनके परिवार का कम से कम एक सदस्य भी बच्चे के पास इसी बेड पर बैठता है. ऐसे में अस्पताल में किस तरह का इलाज हो रहा होगा, इसका अंदाजा खुद ही लगाया जा सकता है.
अस्पताल प्रशासन ने कही ये बात
बहरहाल मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ एसपी सिंह का कहना है कि हर साल इस सीजन में अचानक से बीमार बच्चों की भीड़ बढ़ती है. किसी भी बीमार बच्चे को वापस ना भेजा जाए, इसी वजह से एक बेड पर कई बच्चों को एडमिट करना पड़ रहा है. उनके मुताबिक तमाम लोगों का भरोसा इस सरकारी अस्पताल पर है और साथ ही जगह भरने का हवाला देकर बीमार बच्चों को वापस भेजने से उनकी जिंदगी को खतरा हो सकता है, इसलिए ऐसे हालात में भी इलाज किया जा रहा है. अस्पताल और मेडिकल कॉलेज प्रशासन की दलील अपनी जगह ठीक है, लेकिन सवाल ये उठता है कि अगर हर साल इस सीजन में बीमार बच्चों की संख्या बढ़ जाती है तो सिस्टम को चलाने वाले लोग इसे लेकर कोई इंतजाम क्यों नहीं करते हैं.
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