UP News: संगम नगरी प्रयागराज (Prayagraj) के जिस सरकारी अस्पताल से शव वाहन न मिलने पर पिता द्वारा 10 साल के बच्चे का शव कंधे पर रखकर ले जाने का मामला सुर्ख़ियों में है, उस अस्पताल को लेकर चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है. मेडिकल कॉलेज (Medical College) द्वारा संचालित इस सरकारी अस्पताल में चार एम्बुलेंस और एक शव वाहन हैं, लेकिन इन पांच वाहनों को चलाने के लिए ड्राइवर सिर्फ एक ही है. नियम के मुताबिक़ इन पांच वाहनों पर कम से कम सोलह ड्राइवर और इतने ही हेल्पर होने चाहिए, लेकिन यहां 32 लोगों का काम सिर्फ एक ड्राइवर से ही लिया जा रहा है. 


स्टाफ की कमी से जूझ रहा है अस्पताल


बताया जा रहा है कि यही वजह है कि अस्पताल से इक्का-दुक्का रसूखदार लोगों को छोड़कर किसी को भी न तो एम्बुलेंस मिल पाती है और न ही शव वाहन. ऐसे में लोगों को या तो प्राइवेट एम्बुलेंस वालों को मुंहमांगा पैसा देना पड़ता है या फिर लाचार सिस्टम के सामने घुटने टेककर अपनों का शव कंधे पर रखकर ले जाने को मजबूर होना पड़ता है. फिलहाल इस बारे में जब हमने अस्पताल के ज़िम्मेदार लोगों से बात की तो उन्होंने इसकी पुष्टि की, लेकिन साथ ही यह सफाई भी दी कि ड्राइवरों और हेल्परों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजा गया है. मंज़ूरी मिलने पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. 


अस्पताल का एकमात्र ड्राइवर भी जल्द हो जाएगा रिटायर


 भर्तियों को लेकर मेडिकल कॉलेज प्रशासन कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अकेला ड्राइवर पिछले आठ महीने से बीमार सिस्टम की गाड़ी को अकेले ही धक्का दे रहा है. वैसे पिछले कई सालों से यहां की एम्बुलेंस और शव वाहन दो ड्राइवरों के सहारे ही चल रहे थे. पिछले साल दिसंबर महीने से एक ड्राइवर के रिटायर होने के बाद पूरा बोझ इकलौते बचे राजाराम दुबे के कंधे पर आ गया. अकेले ड्राइवर राजाराम को पूरे वक़्त काम करना पड़ता है और इससे उनकी ज़िंदगी नरक जैसी हो गई है. कब किसी साहब का फोन आ जाए, इसको लेकर राजाराम हमेशा टेंशन में रहते हैं. वैसे उनके रिटायरमेंट में भी अब सिर्फ एक साल का ही वक़्त बचा है.


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एम्बुलेंस के लिए परेशान दिखे मरीज


अस्पताल परिसर में चल रहे जिला प्रशासन के पोस्टमार्टम हाउस के बाहर रियाज़ और सिराज के साथ ही कई लोग मिले जो शव वाहन या फिर एम्बुलेंस को लेकर परेशान नज़र आए. शव वाहन न मिलने से रियाज़ को अपने करीबी रिश्तेदार का शव ले जाने के लिए बैटरी रिक्शा मंगाना पड़ा था, जबकि बेहद गरीब परिवार के सिराज पांच किलोमीटर की दूरी के लिए 900 रुपये में प्राइवेट एम्बुलेंस लेने को मजबूर नज़र आए. वैसे आरोप यह भी है कि अस्पताल प्रशासन प्राइवेट एम्बुलेंस संचालकों से मिलने वाले कमीशन के फेर में ही सरकारी एम्बुलेंसों और शव वाहन को सिर्फ शो पीस बनाए हुए है. अस्पताल परिसर में जगह-जगह प्राइवेट एम्बुलेंस खड़े रहते हैं. यह मनमाने तरीके से लोगों से पैसे वसूलती हैं. अस्पताल के चीफ मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. अजय सक्सेना के मुताबिक़ ड्राइवरों की कमी से दिक्कतें हो रही हैं. इसे जल्द ही दूर करने की कोशिश की जाएगी.


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