प्रयागराज: संगम नगरी प्रयागराज में माघ मेले की शुरुआत कुछ घंटों बाद मकर संक्रांति के स्नान पर्व के साथ होगी. करीब दो महीने तक चलने वाले आस्था के इस सबसे बड़े मेले में तकरीबन पांच करोड़ श्रद्धालु यहां आस्था की डुबकी लगाने के लिए आएंगे. लेकिन करोड़ों की भीड़ जिस गंगाजल में आस्था की डुबकी लगाने के लिए आएगी, मेला शुरू होने से ठीक पहले तक उसकी हालत में कोई बदलाव नहीं हुआ है. संगम और आसपास आने वाला गंगाजल इतना प्रदूषित है कि वह कहीं काला तो कहीं मटमैला सा नज़र आ रहा है. जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी मानी जाने वाली गंगा का पानी नाले या सीवर के गंदे जल की तरह नज़र आ रहा है.
आस्था के मेले में गंगा की यह हालत तब है, जब पीएमओ से लेकर यूपी के डिप्टी सीएम तक इस मामले में हफ्ते भर पहले ही नाराज़गी जताते हुए अफसरों को ज़रूरी हिदायत दे चुके हैं. माघ मेले में आए साधू-संत और श्रद्धालु गंगा की इस हालत को देखकर दुखी और नाराज़ दोनों हैं. कुछ संतों ने शिकायत की है कि संगम पर आने वाले गंगाजल से हाथ धुलने पर खुजली और त्वचा संबंधी शिकायत हो रही है. कई श्रद्धालु तो गंगा के इस गंदे पानी में डुबकी लगाए बिना सिर्फ आचमन और प्रणाम करके ही मायूस होकर वापस चले जा रहे हैं. मेले में तमाम जगहों पर अभी स्नान घाट भी नहीं बने हैं, जिससे लोगों की दिक्कतें और बढ़ गईं हैं.
अधिकारी कर रहे आंकड़ों की बाजीगरी
वैसे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समेत सरकारी अमले के दूसरे ज़िम्मेदार अधिकारी अब इस मामले में आंकड़ों की बाजीगरी करते हुए कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से बच रहे हैं. ज़ाहिर है, उनके पास बोलने और बताने के लिए कुछ है भी नहीं, इसलिए वह सामने आने से बचेंगे ही. अफसरों की लापरवाही और उनका नाकारापन आस्था के इस सबसे बड़े मेले में सरकार की भी फजीहत करा सकता है. कोरोना के विपरीत हालात में सरकार ने मेले के आयोजन की घोषणा कर खूब वाहवाही लूटी थी, लेकिन गंगाजल की यह हालत और अफसरों का ढुलमुल रवैया अब उसके लिए मुसीबत का सबब बन सकता है.
प्रयागराज में संगम के तट पर हर साल डेढ़ से दो महीने तक माघ मेले का आयोजन होता है. आस्था के इस मेले के लिए संगम के तट पर तम्बुओं का अलग शहर बसाया जाता है. लोहे की सड़कें बनाई जाती हैं. पीपे के पुल बनाए जाते हैं. तम्बुओं के अस्थाई कैम्प बनते हैं तो साथ ही थाने-चौकियों से लेकर सभी सरकारी विभागों के दफ्तर बनते हैं. कई शंकराचार्य समेत बड़ी संख्या में साधू-संत और लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां एक से डेढ़ महीने रहकर कल्पवास भी करते हैं. श्रद्धालु यहां दोनों वक़्त गंगा स्नान कर संयमित जीवन बिताते हैं.
गंगाजल की क्वालिटी लगतार खराब होती जा रही है
संगम पर आने वाले गंगाजल की क्वालिटी पिछले करीब एक महीने से लगतार खराब होती जा रही है. पिछले हफ्ते कई संतों और संस्थाओं के साथ ही तमाम श्रद्धालुओं ने इसे लेकर आवाज़ उठाई तो कोहराम मच गया था. पीएमओ ने इस बारे में सेंट्रल पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से जवाब तलब कर लिया था. टीमें दिन रात नमूना लेने में सक्रिय नज़र आईं. स्थानीय अफसरों ने खुद यह माना था कि यहां आने वाला गंगाजल न तो पीने लायक है और न ही आचमन करने लायक. यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने तो इस मामले की जांच कराकर मकर संक्रांति से पहले अविरल व निर्मल धारा मुहैया कराने का एलान भी किया था. लेकिन इन सबके बावजूद हालात जस के तस ही हैं और मोक्षदायिनी व जीवनदायिनी कही जाने वाली राष्ट्रीय नदी की हालत में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
जानकारों का मानना है कि अफसरों की लापरवाही केंद्र और यूपी सरकार की मंशा पर पानी फेर रही है. गंगा की यह हालत इसलिए भी है क्योंकि कानपुर से लेकर प्रयागराज तक नालों और सीवर का गंदा पानी गंगा में बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे छोड़ा जा रहा है. गंगाजल और उसका प्रवाह कम होने से गंदा पानी ज़्यादा नज़र आ रहा है और यही वजह है कि जल कहीं काला तो कहीं मटमैला सा दिख रहा है.
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