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Prayagraj Magh Mela: माघ मेले को लेकर प्रयागराज में तैयारियां जोरों पर, कोरोना से बचने की होगी चुनौती

प्रयागराज का माघ मेला चौदह जनवरी को मकर संक्रांति से शुरू होकर एक मार्च को महाशिवरात्रि तक चलेगा. मेले में कोरोना नियमों का पालन करना सबसे बड़ी चुनौती होगी.

Prayagraj News: देश में एक तरफ कोरोना के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. लोगों की जिंदगी बचाने के लिए सरकार तमाम पाबंदियां लगा रही हैं. मास्क लगाने और दो गज की दूरी बरतने के साथ ही कोविड प्रोटोकॉल की हिदायतें फिर से याद दिलाई जा रही हैं. तो वहीं दूसरी तरफ संगम नगरी प्रयागराज में आस्था के नाम पर हर साल लगने वाले माघ मेले के लिए तंबुओं का एक ऐसा शहर ज़ोर-शोर से बसाया जा रहा है. सरकार और मेला प्रशासन ने संत-महात्माओं, कल्पवासियों और दूसरे श्रद्धालुओं को कोरोना के संक्रमण से बचाने के लिए कई नियम बना दिए हैं. एडवाइजरी जारी कर दी है. सख्ती बरतने और लोगों को जागरूक करने का दावा किया है. लेकिन सिर पर आस्था की गठरी लादकर पुण्य कमाने की लालसा में आने वाली लाखों की भीड़ के बीच कोविड प्रोटोकॉल का पालन करा पाना व्यवहारिक तौर पर कतई मुमकिन नज़र नहीं आता.

पिछले साल हरिद्वार कुंभ का अंजाम देखने के बावजूद मेले के आयोजन पर रोक लगाकर एक तरफ जहां सरकार चुनावी साल में वोटर रूपी श्रद्धालुओं को नाराज करने का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती तो वहीं दूसरी सियासी पार्टियां भी इस मामले में आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है. प्रयागराज के माघ मेले में हर साल कई शंकराचार्यों के साथ ही देश के तकरीबन प्रमुख संत-महात्मा यहां कल्पवास करने या आस्था की डुबकी लगाने के लिए आते हैं. कोरोना के बढ़ते खतरे के बीच यह भगवाधारी ही यहां आनी वाली भीड़ को नसीहत देकर या फिर उनसे अपील कर तमाम लोगों की ज़िंदगी और सेहत खतरे में पड़ने से बचा सकते हैं. क्योंकि आम श्रद्धालुओं से लेकर ज़्यादातर महात्मा और तीर्थ पुरोहित इस भरोसे के साथ यहां डेरा जमाने लगे हैं कि गंगा मइया की गोद में रहकर माघ महीने में धर्म और आध्यात्म की अलख जगाने पर कोरोना उनका कोई नुकसान नहीं कर सकेगा. इस तरह की दलीलें देने और यकीन रखने वाले लोग बेफिक्र होकर मेले में इंट्री कर रहे हैं. वह न तो मास्क लगा रहे हैं. न ही दो गज़ की सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं. इतना ही नहीं ज़्यादातर लोग तो आस्था के आगे व्यवस्थाओं को बौना साबित कर महामारी का मज़ाक उड़ाते हुए पूरे दावे से यह कह रहे हैं कि उन्हें न तो कोरोना से डर लगता है और न ही वह बहुत फिक्रमंद हैं.

प्रयागराज में तेजी से बढ़ रहा कोरोना

यह हाल तब है, जब अकेले प्रयागराज में कोरोना बेहद तेजी से पांव पसारने लगा है. संगम नगरी प्रयागराज की बात करें तो यहां हफ्ते भर पहले कई दिनों तक एक भी केस नहीं आ रहा था. 31 दिसंबर को यहां छह मामले आए. एक जनवरी को सात. दो जनवरी को पांच लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी. तीन जनवरी को छत्तीस लोग संक्रमित हुए. चार जनवरी को संख्या इकतीस पर सीमित हुई, जबकि पांच जनवरी को विस्फोट हुआ और संख्या सौ के पार जाकर एक सौ छत्तीस पर पहुंच गई. जिले में संक्रमितों की संख्या बढ़कर अब ढाई सौ का आंकड़ा पार कर चुकी है.

चौदह जनवरी को शुरू होगा माघ मेला

प्रयागराज का माघ मेला चौदह जनवरी को मकर संक्रांति से शुरू होकर एक मार्च को महाशिवरात्रि तक चलेगा. सैंतालीस दिनों के इस मेले में सत्रह जनवरी को पौष पूर्णिमा से लेकर सोलह फरवरी को माघी पूर्णिमा तक एक महीने का कल्पवास रहेगा. आम तौर पर दो से ढाई लाख संत महात्मा और देश के कोने कोने से आने वाले श्रद्धालु पूरे माघ महीने यहीं तम्बुओं के शहर में रहकर कल्पवास करते हैं. यानी अपनी काया का कल्प करते हैं. एक महीने मोह माया से दूर रहकर भगवान की भक्ति में बिताते हैं. संत महात्माओं के सानिध्य में गंगा की गोद में जीवन बिताकर अपने लिए मोक्ष यानी खुद के जीवन मरण के बंधन से मुक्ति पाने की कामना करते हैं. कल्पवास करने वाले संतों और श्रद्धालुओं के साथ भी तमाम लोग तम्बुओं के शहर में रहते हैं. इस तरह पूरे एक महीने यहां स्थाई तौर पर आठ से दस लाख श्रद्धालुओं का रहना होता है, जबकि रोज़ाना लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आस्था की डुबकी लगाने, संतों का दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेने और पूजा अर्चना के बाद वापस जाते रहते हैं. छह प्रमुख स्नान पर्वों में मौनी अमावस्या पर श्रद्धालुओं की संख्या एक करोड़ का आंकड़ा पार कर जाती है तो वहीं मकर संक्रांति - बसंत पंचमी, पौष पूर्णिमा, माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि पर भी लाखों की भीड़ जुटती है.

मेले में कोरोना नियम लागू करने के निर्दश

माघ मेले के लिए रेलवे तमाम स्पेशल ट्रेन चलाता है तो साथ ही रोडवेज को हज़ारों स्पेशल बसें चलानी पड़ती हैं. मेले के आयोजन के लिए इस बार भी आईएएस अफसर शेषमणि पांडेय को मेलाधिकारी नियुक्त किया गया है तो आईपीएस राजीव नारायण मिश्र को एसपी के तौर पर सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है. योगी सरकार ने नई गाइडलाइन जारी करते हुए मेले में इंट्री करने वाले सभी लोगों के लिए वैक्सीन के दोनों डोज़ का सर्टिफिकेट व बहत्तर घंटे के अंदर की कोविड की आरटीपीसीआर नेगेटिव रिपोर्ट लाए जाने की हिदायत दी है. मेला प्रशासन ने भी हफ्ते भर पहले से ही सभी इंट्री प्वाइंट पर इन हिदायतों की चेकिंग करने, रैंडम सैम्पलिंग करने और वैक्सिनेशन की व्यवस्था करने के दावे किये हैं, लेकिन हमारी टीम को यह कहीं भी नज़र नहीं आई. मेला प्रशासन ने अपनी तरफ से भी कई नियम बनाकर अलग से एडवाइजरी भी जारी की है. गंगा और यमुना के खुले मैदान में साढ़े छह सौ हेक्टेयर के करीब क्षेत्रफल में बसाये जा रहे मेले में कहने को तो चौदह इंट्री प्वाइंट रहेंगे, लेकिन लोग तमाम दूसरे रास्तों से भी मेले में दाखिल हो सकते हैं. ऐसे में मेला शुरू होने पर लाखों की भीड़ के बीच लोगों की निगरानी करना, उनके सर्टिफिकेट जांचना और टेस्टिंग व ट्रेसिंग करना व्यवहारिक तौर पर कतई संभव नहीं होगा. मेलाधिकारी शेषमणि पांडेय भी सब कुछ बेहतर रहने का दावा कर रहे हों, लेकिन हकीकत का अंदाज़ा उनसे मिलने के लिए उनके चैंबर के बाहर खड़ी दर्जनों की भीड़ को देखकर ही लगाया जा सकता है.

सुरक्षा व्यवस्था को लेकर उठाए जाएंगे ये कदम

मेले में इस बार भी तेरह पुलिस स्टेशन और चालीस के करीब पुलिस चौकियां बनाई गई हैं. तमाम विभागों के दफ्तर खोले गए हैं. अस्थाई तौर पर कई अस्पताल खोले गए हैं. पांच हज़ार पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है, लेकिन लाखों -करोड़ों की भीड़ के आगे यह व्यवस्थाएं बौनी साबित होती हैं. समूची दुनिया में अकेले प्रयागराज ही ऐसी जगह है, जहां कल्पवास करने की परंपरा है. धार्मिक मान्यता यह है कि प्रयागराज में लगातार बारह सालों तक कल्पवास करने पर लोगों को जीवन मरण के बंधन से मुक्ति यानी उन्हें मोक्ष मिल जाता है. सरकार की दलील यह है कि वह लोगों का कल्पवास खंडित कर उनकी आस्था से खिलवाड़ नहीं कर सकती, इसलिए थोड़ी पाबंदियों के साथ मेले का आयोजन हर हाल में कराया ही जाएगा. कहा जा सकता है कि दावे भले ही लाख किये जाएं. तमाम नियम बना दिए जाएं, लेकिन इन्ही नियमों और पाबंदियों के रहते हुए पिछले साल हरिद्वार के महाकुंभ मेले में बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए थे और मेले को बीच में ही स्थगित करना पड़ा था. यह इसलिए भी याद रखने वाली बात है कि मेले में जो भी महात्मा और श्रद्धालु अभी आ चुके हैं, वह कोरोना से डरने व एहतियात बरतने के बजाय उसका माखौल उड़ा रहे हैं और पूरी तरह बेफिक्र नज़र आ रहे हैं. ऐसे में अगर आप भी माघ मेले में आने की तैयारियों में हैं तो सरकार और प्रशासन के भरोसे नहीं बल्कि या तो खुद को पूरी एहतियात बरतते हुए अपने को खतरे से बचाना और सुरक्षित रखना होगा या फिर भगवान भरोसे ही आना होगा.

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