प्रयागराज: गैरों से दिखाया अपनापन, 125 से ज्यादा लावारिस लाशों का दाह संस्कार कर चुका है ये अफसर
प्रयागराज नगर निगम के जोनल अफसर नीरज कुमार अब तक 125 से भी ज्यादा लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं. इनमें से दर्जन भर से ज्यादा तो कोरोना संक्रमित थे.
प्रयागराज. कोरोना महामारी के खौफ ने रिश्तों की अहमियत को भी खूब आइना दिखाया. कई लोग कोरोना की चपेट में आने के बाद भरा-पूरा परिवार होने के बावजूद अकेले नजर आए तो कई ऐसे बदनसीब भी रहे जिनकी अर्थी को अपनों का कांधा तक नसीब नहीं हुआ. हालांकि इस मुश्किल वक्त में कई इंसान देवदूत बनकर भी सामने आए. ऐसे देवदूतों में प्रयागराज नगर निगम के जोनल अफसर नीरज कुमार सिंह भी शामिल हैं. नीरज कुमार पिछले 10 हफ्तों में सवा सौ से ज्यादा अज्ञात शवों को मुखाग्नि देकर उनका दाह संस्कार कर चुके हैं. इनमें से दर्जन भर से ज्यादा तो कोरोना संक्रमित थे.
खुद अंतिम संस्कार करते हैं नीरज
नीरज कुमार पिछले दो हफ्तों से रोजाना सुबह से शाम तक अज्ञात शवों को कब्रों से बाहर निकालते हैं और धार्मिक रीति-रिवाजों के मुताबिक उनका दाह संस्कार करते हैं. नीरज कब्र से बाहर आ रहे शवों को खुद अपने हाथों से निकालते हैं. अपने हाथों से चिता सजाते हैं. किसी अपने की तरह सभी रस्में अदा करते हैं. हाथ में आग लेकर चिता की परिक्रमा करते हुए मंत्रों का जाप करते हैं और बाद में खुद ही मुखाग्नि देते हुए ईश्वर के सामने हाथ जोड़कर उससे चिता पर जल रहे शव को मोक्ष प्रदान करने और स्वर्ग में जगह देने की प्रार्थना भी करते हैं. जब तक शव पूरी तरह जल नहीं जाते, नीरज सिंह वहीं चिता के पास ही बैठे रहते हैं. चिता में लगातार लकड़ियों के साथ कपूर-घी व दूसरी सामाग्रियां अर्पित करते रहते हैं।
दाह संस्कार के बाद अस्थियों को मोक्षदायिनी गंगा में विसर्जित कर उसकी मुक्ति की कामना भी करते हैं. कई शवों से दुर्गंध आने के बावजूद वह न तो कभी विचलित होते हैं और न ही अपने कदम पीछे खींचते हैं. गंगा का जलस्तर बढ़ने के बाद नीरज को इन दिनों रोज़ाना दर्जन भर से ज़्यादा शवों का दाह संस्कार करना पड़ रहा है. गुमनाम शवों का दाह संस्कार भी वह इतने अपनेपन के साथ करते हैं कि कई बार उनकी आंखें भर आती हैं. गला रुंध जाता है और बोलते व बात करते वक़्त वह भावुक हो जाते हैं.
गंगा किनारे दफना दिए थे शव
दरअसल, कोरोना की दूसरी लहर में संगम नगरी प्रयागराज में अलग-अलग वजहों से बड़ी संख्या में शवों को गंगा के किनारों पर दफना दिया गया था. शवों को इतनी बड़ी संख्या में दफनाया गया था कि श्मशान घाट कब्रिस्तान में तब्दील नज़र आने लगे थे. गंगा का जलस्तर बढ़ते ही तमाम कब्रों की मिट्टियां बहने लगीं और उनमें दफनाए गए शव मोक्षदायिनी व जीवनदायिनी कही जाने वाली राष्ट्रीय नदी गंगा में समाहित होने लगे. मिट्टी बहने वाली तमाम कब्रों के शवों को कुत्ते व दूसरे जानवर नुकसान पहुंचाते हुए भी देखे गए. दफनाए गए शवों की वजह से गंगा के प्रदूषित होने का खतरा भी मंडराने लगा. ऐसे में प्रयागराज के नगर निगम ने अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले फाफामऊ घाट पर दफन शवों को कब्र से निकालकर धार्मिक रीति रिवाजों के मुताबिक़ उनका दाह संस्कार कराए जाने का फैसला किया. नगर निगम ने दफन शवों के दाह संस्कार का जिम्मा जोनल आफिसर नीरज कुमार सिंह सौंपा. उन्हें दर्जनों संविदा कर्मचारी व मजदूर भी दिए गए. एक निगरानी समिति का गठन भी किया गया.
नीरज कुमार सिंह की जिम्मेदारी कब्र से बाहर आ रहे शवों को निकालकर उनका दाह संस्कार कराए जाने के काम की मॉनिटरिंग करने की थी, लेकिन उन्होंने लोगों की बेबसी-लाचारी और मजबूरी को समझा. मौत के बाद शव की दुर्दशा होने की पीड़ा को महसूस किया. यही वजह है कि 6 जून से शुरू हुए अभियान में एक-एक शव का उन्होंने खुद अपने हाथों दाह संस्कार किया. फाफामऊ में पिछले तीन हफ्तों में सवा सौ के करीब शवों को कब्र से निकालकर उनका दाह संस्कार किया गया है.
"इंसान होने का फर्ज निभा रहा"
नीरज सिंह का कहना है कि लोगों ने किस मजबूरी में इस तरह गंगा की रेत में अपनों का शव दफ़न कर दिया यह नहीं पता, लेकिन जो शव दफनाए गए थे और जिन शवों के लिए खतरा मंडराने लगा था, वह भी किसी के परिवार का हिस्सा रहे होंगे. ऐसे में एक इंसान होने के नाते उन्होंने खुद अपने हाथों शवों को निकालकर उनकी चिताएं सजाना, सभी रस्मों को खुद अदा करना, खुद मुखाग्नि देकर दाह संस्कार करना और बाद में अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने का फैसला किया. वो कहते हैं कि वह एक इंसान होने का फर्ज निभा रहे हैं. मुसीबत के वक़्त में किसी को अकेले नहीं छोड़ा जा सकता. अगर सब साथ मिलकर काम करेंगे तो कोरोना को हराकर महामारी पर जीत हासिल करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं.
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