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प्रयागराज: हाईकोर्ट में पेंडिंग हैं तकरीबन 8 लाख मुकदमे, वकीलों की हड़ताल से और बढ़ेगा बोझ

इलाहाबाद हाईकोर्ट में रोजाना औसतन पांच से सात हजार मुकदमों की सुनवाई होती है. वकील पिछले कई दिनों से हड़ताल पर हैं. वकीलों की हड़ताल के चलते हाई कोर्ट में पिछले 23 फरवरी से मुकदमों की सुनवाई नहीं हो पा रही है.

प्रयागराज: शिक्षा सेवा अधिकरण की प्रधान पीठ लखनऊ में बनाए जाने के विरोध में इलाहाबाद के वकील पिछले कई दिनों से हड़ताल पर हैं. वकीलों ने आज 11वें दिन भी कामकाज ठप रखा और सडकों पर प्रदर्शन करते हुए अपना विरोध जताया. हड़ताली वकीलों ने अब 9 मार्च को प्रयागराज बंद पर पूरा फोकस कर दिया है. वकीलों की हड़ताल के चलते हाई कोर्ट में ेपिछले 23 फरवरी से मुकदमों की सुनवाई नहीं हो पा रही है.

लोगों को होगी परेशानी वकीलों की हड़ताल का सबसे बड़ा खामियाजा वादकारियों को भुगतना पड़ रहा है. तमाम वादकारियों को जहां नई तारीख मिल रही है, वहीं, रोजाना सैकड़ों की संख्या में लोगों को मायूस होकर वापस लौटना पड़ता है. कोरोना की वजह से पिछले एक साल से मुकदमों की सुनवाई वैसे भी बुरी तरह प्रभावित हुई है. पुराने मुकदमों की सुनवाई अब भी शुरू नहीं हो सकी थी, जबकि नए केस को लिस्ट होने में अब भी हफ्तों का वक्त लग जा रहा है. हाईकोर्ट में वैसे भी पेंडिंग केसों की संख्या लाखों में है, ऐसे में वकीलों की ये हड़ताल आने वाले दिनों में लोगों के लिए और बड़ी मुसीबत का सबब बनेगी.

सरकारी अमला है जिम्मेदार वैसे वकीलों की इस हड़ताल के पीछे सीधे तौर पर सरकारी अमला जिम्मेदार है. सरकारी अमले ने पिछली बार के आंदोलन के बाद इस बात का एलान किया था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार के मुताबिक ही अधिकरण का गठन किया जाएगा और यहां के वकीलों के साथ नाइंसाफी नहीं होने दी जाएगी. लेकिन अधिकरण के गठन के वक्त जिम्मेदार लोग अपने वादे से मुकर गए और मनमाने तरीके से गठन का एलान कर दिया. हालांकि, इस मामले में चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर ने सुओ मोटो लेकर सुनवाई करते हुए अधिकरण के गठन की प्रक्रिया पर रोक लगा रखी है और सरकार से जवाब तलब भी कर लिया है. वकीलों का कहना है कि उन्हें न्यायिक व्यवस्था पर तो पूरा भरोसा है, लेकिन उन्हें सरकारी अमले की मंशा पर यकीन नहीं है.

मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है इलाहाबाद हाईकोर्ट में रोजाना औसतन पांच से सात हजार मुकदमों की सुनवाई होती है. इसमें फ्रेश यानी नए मुकदमे भी शामिल रहते हैं और लिस्टिंग के यानी पुराने मुकदमों को भी नई तारीख पर आगे सुना जाता है. इन दिनों सुनवाई पूरी तरह ठप है. कोरोना काल में कामकाज प्रभावित होने की वजह से इलाहाबाद हाईकोर्ट की अकेले प्रधान पीठ यानी इलाहाबाद में ही पौने आठ लाख से ज़्यादा केस पेंडिंग हैं. लंबित मुकदमों में सिविल अपील के 119795, सिविल मिसलेनियस के 31750, सिविल रिट के 265570, क्रिमिनल अपील के 155295, क्रिमिनल मिसलेनियस के 198727 और क्रिमिनल रिट के 15828 केसेज पेंडिंग है. कोरोना काल के पिछले एक साल में मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है.

पैसे और समय की बर्बादी हुई है हाईकोर्ट की प्रधान पीठ में पांच मार्च तक कुल मिलाकर 786965 मुकदमे पेंडिंग हैं. हाईकोर्ट में नोएडा से लेकर गोरखपुर और मुरादाबाद से लेकर झांसी तक के मुकदमों की सुनवाई होती है. तमाम वादकारी तो वकालतनामा और दूसरी जरूरी प्रक्रियाओं के बाद वकीलों के जरिए ही केस की पैरवी कराते हैं, लेकिन कुछ वादकारी हर तारीख पर खुद भी मौजूद रहते हैं. ऐसे में वादकारियों को हो रही परेशानियों को समझा जा सकता है. कई वादकारियों का कहना है कि इससे न सिर्फ उनके पैसे और समय की बर्बादी हुई है, बल्कि उनके मुकदमों पर भी इस हड़ताल का असर पड़ा है.

खामियाजा वादकारियों को ही भुगतना पड़ेगा इस बारे में हाईकोर्ट में वकीलों की संस्था इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना है कि ये लड़ाई वो अपने लिए नहीं, बल्कि वादकारियों और आम नागरिकों के लिए ही लड़ रहे हैं. अधिकरण बनने और प्रधान पीठ लखनऊ में होने से न्याय प्रक्रिया न सिर्फ जटिल होगी बल्कि और महंगी भी हो जाएगी और सीधा खामियाजा वादकारियों को ही भुगतना पड़ेगा.

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