Prayagraj News: धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर्स और पैरा मेडिकल स्टाफ की देरी की वजह से मरीज की जान जाने या उसकी ज़िंदगी खतरे में पड़ने के मामले तो कई बार आपके सामने आए होंगे, लेकिन संगम नगरी प्रयागराज (Prayagraj) में इस देरी का खामियाज़ा भुगतने के चलते एक सरकारी अस्पताल ही अब दम तोड़ने की कगार पर है. इस सरकारी अस्पताल का निर्माण पंद्रह साल पहले पूरा हो चुका है. बिल्डिंग स्वास्थ्य विभाग को हैंड ओवर भी हो चुकी है, लेकिन आज तक यहां किसी डॉक्टर्स-पैरा मेडिकल स्टाफ या दूसरे कर्मचारी की नियुक्ति नहीं हुई है. लिहाज़ा ये अस्पताल महज़ शोपीस बनकर अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, यह मामला प्रयागराज शहर से तकरीबन पचास किलोमीटर दूर लालापुर इलाके के अमिलिया गांव का है. मध्य प्रदेश की सीमा से सटे इलाकों में कोई भी सरकारी स्वास्थ्य सुविधा नहीं थी. इलाज के लिए लोगों को पचास किलोमीटर का सफर तय कर शहर के अस्पतालों में आना पड़ता था. सबसे ज़्यादा दिक्कत महिलाओं को होती थी. इलाज के अभाव या देरी होने की वजह से तमाम गर्भवती महिलाओं की मौत तक हो चुकी है. आस-पास के दर्जनों गांवों के लोगों की अपील पर साल 2004 में यहां राजकीय महिला अस्पताल खोले जाने का फैसला किया गया. ज़मीन खोजने में ही जब सालों का वक़्त बीतने लगा तो इलाके के श्री नाथ त्रिपाठी ने अस्पताल के लिए अपनी एक बीघा ज़मीन दान कर दी. दान की इस ज़मीन पर तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने अस्पताल की बिल्डिंग तैयार करा दी.
कोई रख-रखाव नहीं होने से अस्पताल की बिल्डिंग डेढ़ दशक के लम्बे इंतज़ार के बाद अब जर्जर होती जा रही है. अस्पताल भले ही न शुरू हो सका हो, लेकिन वेंटिलेटर पर पहुंचने की कगार पर पहुंच चुकी बिल्डिंग को अब बड़ी सर्जरी की ज़रुरत ज़रूर महसूस की जाने लगी है. महिलाओं के इस अस्पताल का यह हाल तब है, जब पिछले पंद्रह सालों में तमाम महिलाएं इलाज के अभाव में दम तोड़ चुकी हैं. आस -पास के इलाकों में रहने वाली आधी आबादी को इलाज की खातिर शहर जाने के लिए कम से कम पचास किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. बिना किसी स्टाफ का यह अस्पताल सफ़ेद हाथी साबित हो रहा है. अस्पताल का इंतजार कब ख़त्म होगा और होगा भी या नहीं, इस बारे में अब भी दावे के साथ कोई कुछ भी नहीं कह सकता. वजह यह है कि ज़िम्मेदार लोगों ने सरकार से यहां डॉक्टर्स और स्टाफ की नियुक्ति कर अस्पताल को शुरू कराए जाने की सिफारिश एक नहीं, बल्कि कई बार कर दी है, लेकिन हुक्मरानों के कानों में जूं कतई रेंगने का नाम नहीं ले रही है.
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इस बीच यूपी में सत्ता परिवर्तन हो गया. मुलायम सिंह यादव की जगह मायावती की सरकार आ गई. अस्पताल की बिल्डिंग साल 2007 में ही तैयार हो गई और इसे स्वास्थ्य विभाग को हैंड ओवर भी कर दिया गया, लेकिन महिलाओं के अस्पताल का यह चैप्टर यहीं बंद भी हो गया. स्वास्थ्य विभाग के ज़िम्मेदार लोगों ने कई बार सरकार से यहां डॉक्टर्स-पैरा मेडिकल स्टाफ और दूसरे कर्मचारियों की नियुक्ति कर इलाज के लिए ज़रूरी सुविधाएं मुहैया कराए जाने की मांग की, लेकिन पंद्रह सालों का वक़्त बीतने के बावजूद अभी तक इस मांग पर कोई सुध नहीं ली गई. तीस बेड के इस अस्पताल को लेकर इलाके के लोगों का इंतजार ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है. अब तो यहां के लोगों ने किसी तरह की उम्मीद भी छोड़ दी है. सरकारों और सिस्टम के रवैये को लेकर यहां के लोगों में ज़बरदस्त नाराज़गी है.
अब सीएमओ ने दिया ये आश्वासन
कहा जा सकता है कि अस्पताल के निर्माण से लेकर अब तक यूपी में कई सरकारें बदलीं, लेकिन इस अस्पताल की तक़दीर नहीं बदली. कहावत है कि लम्बा इंतजार आंखों का आंसू सुखा देता है, लेकिन पंद्रह सालों के इंतजार के चलते महिलाओं के लिए बनाए गए अस्पताल की इमारत की दर ओ दीवार सूख-सूखकर जर्जर होती जा रही है. खिड़कियां-दरवाजे गायब होते जा रहे हैं. दीवार और छत के प्लास्टर उखड कर मलबे में तब्दील हो रहे हैं. फर्श खराब हो चुका है और थोड़े बहुत रखे फर्नीचरों में दीमक लग चुके हैं. कोरोना काल में इस इलाके के तमाम लोग इलाज के अभाव में तड़पे हैं. सबसे ज़्यादा दिक्कत महिलाओं को होती है. आस-पास कोई दूसरा अस्पताल नहीं होने की वजह से तमाम गर्भवती महिलाएं प्रसव से पहले ही अपने मायके या किसी रिश्तेदार के यहां चली जाती हैं, ताकि उन्हें वक़्त पर इलाज मिल सके.
समय पर इलाज नहीं मिलने से कई महिलाओं या उनके नवजात बच्चों की मौत हो चुकी है. यह हाल तब है जब इलाके की सांसद रीता बहुगुणा जोशी खुद महिला हैं. इतना ही नहीं योगी सरकार के पहले कार्यकाल के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह भी प्रयागराज से ही विधायक चुने गए थे. प्रयागराज डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की भी कर्मस्थली है. जिले के मौजूदा सीएमओ डॉक्टर नानक सरन का कहना है कि उन्होंने एक बार फिर से फ़ाइल तैयार कर उसे शासन के पास भेजा है. शासन से नियुक्तियां होने और संसाधन मिलने के बाद ही महिलाओं के इस सरकारी अस्पताल को शुरू किया जा सकेगा. उन्होंने हफ्ते में दो दिन तीन-तीन घंटे के लिए किसी डॉक्टर को यहां भेजकर लोगों को चिकित्सकीय सलाह देने का फरमान ज़रूर जारी किया है. हालांकि यह भी ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित होगा. इलाके के दर्जनों गांव के लोगों ने अगले चुनाव में वोट का बहिष्कार करने की भी बात कही है.
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