UP News: मन में अगर कुछ करने का जज्बा हो, इरादे नेक हों और मंजिल की तरफ बढ़ने वाले कदम पूरी मेहनत, लगन और समर्पण के साथ रखे जा रहे हों तो शरीर की दिव्यांगता कभी रुकावट नहीं बन सकती. यह बात संगम नगरी प्रयागराज (Prayagraj) की उस यशी कुमारी (Yashi Kumari) पर पूरी तरह फिट बैठती है, जो अब तक भारत में लाइलाज समझी जाने वाली सेरेब्रल पाल्सी ( Cerebral Palsy) नाम की बीमारी से जूझ रही थी. सात बरस की उमर तक उसके हाथ-पांव काम नहीं करते थे और वह पूरे वक्त बिस्तर पर ही पड़ी रहती थी, लेकिन आज यही यशी ना सिर्फ अपने पैरों पर खड़ी हुई है, बल्कि उसका सेलेक्शन देश के सबसे पुराने कोलकाता के मेडिकल कॉलेज में भी हो गया है.
कभी रिश्तेदारों से सुनने पड़ते थे ताने
एमबीबीएस कोर्स में दाखिले के लिए यशी को पहली ही कोशिश में बड़ी कामयाबी मिली है. जो यशी खुद चल फिर सकने में लाचार थी, अब वह डॉक्टर बनने जा रही है. डॉक्टर बनकर वह अपने जैसे तमाम दूसरे दिव्यांग बच्चों की सेवा कर उन्हें भी उनके पैरों पर खड़ा करने की कोशिश करेंगी. यशी की यह उपलब्धि ना सिर्फ उसकी कामयाबी की गाथा को बयां कर रही है, बल्कि अब वह तमाम दूसरे बच्चों और दिव्यांगों के लिए प्रेरणा का सबब भी बन चुकी है. हालांकि बिस्तर पर लाचारी में पड़े रहने की वजह देना रिश्तेदारों और स्कूल में ताना सुनने वाली बच्ची और उसके बाद अब डॉक्टर बनने जा रही यशी की कहानी बिल्कुल फिल्मों सरीखी है.
यशी के पिता चलाया करते थे ऑटो
यशी कुमारी जन्म से ही सेरेब्रल पाल्सी नामक ऐसी बीमारी से ग्रसित थी, जो कुछ दिनों पहले तक भारत में पूरी तरह लाइलाज मानी जाती थी. यशी के पिता मनोज कुमार सिंह ऑटो ड्राइवर थे. परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. इसके बावजूद पिता मनोज ने ऑटो से होने वाली कमाई से यशी का इलाज कराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. हालांकि इसके बावजूद उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था. बचपन में यशी को जिंदगी कभी- कभी बोझ लगने लगती थी. हालांकि दिन भर बिस्तर पर पड़े रहने के बावजूद यशी ने कभी हिम्मत नहीं हारी. वह अपनी कमजोरी को ही ताकत बनाना चाहती थी. कुछ साल पहले यशी के परिवार वाले उसे लेकर प्रयागराज में डॉ जितेंद्र कुमार जैन के पास पहुंचे.
हर परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल करती आई हैं यशी
डॉ जितेंद्र जैन अकेले भारत ही नहीं बल्कि दर्जनों देशों के सैकड़ों बच्चों को लाइलाज समझी जाने वाली सेरेब्रल पालसी की बीमारी से निजात दिला चुके हैं. उनके पास अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों के बच्चे भी इलाज कराने के लिए आते हैं. यशी को धीरे धीरे डॉ जितेंद्र जैन के इलाज से आराम मिलने लगा और उसके शरीर में हरकत होने लगी. यशी ने इसके बाद स्कूल जाना शुरू किया. उसने हर परीक्षा फर्स्ट डिवीजन में पास की. हालांकि स्कूल के टीचर शारीरिक अक्षमता के चलते उसे ना तो कभी किसी एक्टिविटी में शामिल होने देते थे.
इस डॉक्टर ने दिया सामान्य जीवन
बारहवीं की परीक्षा गोरखपुर के एक स्कूल से पास करने के बाद यशी मेडिकल कोर्स में दाखिले के लिए होने वाली नीट में शामिल हुई. पहली कोशिश में वह न सिर्फ मेरिट में जगह बनाने में कामयाब हुई बल्कि उसे सबसे अहम कोर्स कहे जाने वाले एमबीबीएस में दाखिला मिला. उसका सेलेक्शन देश के सबसे पुराने मेडिकल कॉलेजों में एक कोलकाता में हुआ है. एडमिशन से पहले वह अपने डॉक्टर जितेंद्र जैन से मिलने एक बार फिर प्रयागराज आई. डॉक्टर जैन ने यशी को यहां एप्रन और स्टेथो स्कोप गिफ्ट किया. संघर्ष की मिसाल बन चुकी यशी का कहना है कि डॉ जितेंद्र जैन ने जिस तरह के सेवा भाव से उसे लगभग सामान्य बना दिया है, उसी तरह वह खुद डॉक्टर बनकर तमाम दूसरे बच्चों को ठीक करना चाहती है. बीमारों की सेवा करना चाहती हैं.
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