प्रयागराज: यूपी में लव जिहाद की घटनाओं को रोकने के लिए योगी सरकार के जरिए लाया गया धर्मांतरण अध्यादेश अब कानूनी दांवपेच में फंसता नजर आ रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस अध्यादेश को लेकर यूपी सरकार से जवाब तलब कर लिया है. हाईकोर्ट ने सरकार से इस बात का डिटेल में जवाब देने को कहा है कि आखिरकार इस अध्यादेश को लाने की जरूरत क्यों पड़ी. अध्यादेश लाया जाना क्यों बेहद जरूरी है.
सात जनवरी को होगी अंतिम सुनवाई
चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस मामले में सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए चार जनवरी तक की मोहलत दी है. अगले दो दिनों में याचिकाकर्ताओं को सरकार की दलील पर अपना जवाब दाखिल करना होगा. हाईकोर्ट इस मामले में सात जनवरी को अंतिम सुनवाई करेगा. सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों को ओपन कोर्ट में भी अपनी बात रखने का मौका दिया जाएगा.
हाईकोर्ट में तीन अलग-अलग अर्जियां दाखिल की गई थीं
दरअसल, योगी सरकार लव जिहाद की घटनाओं को रोकने के लिए जो अध्यादेश लाई थी, उसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में तीन अलग-अलग अर्जियां दाखिल की गई थीं. इनमें से एक अर्जी वकील सौरभ कुमार की थी तो दूसरी बदायूं के अजीत सिंह यादव और तीसरी रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी आनंद मालवीय की तरफ से दाखिल की गई थी.
अध्यादेश को गैर जरूरी बताया गया
तीनों ही जनहित याचिकाओं में अध्यादेश को गैर जरूरी बताया गया. कहा गया कि ये सिर्फ सियासी फायदे के लिए है. इसमें एक वर्ग विशेष को निशाना बनाया जा सकता है. दलील ये भी दी गई कि अध्यादेश लोगों को मिले मौलिक अधिकारों के खिलाफ है, इसलिए इसे रद कर दिया जाना चाहिए. याचिकाकर्ताओं की तरफ से ये भी कहा गया कि अध्यादेश किसी इमरजेंसी हालत में ही लाया जा सकता है, सामान्य परिस्थितियों में नहीं.
महिलाओं की सुरक्षा का हवाला दिया गया
शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की तरफ से एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल ने कोर्ट में कहा कि धर्मांतरण की घटनाओं की वजह से कानून व्यवस्था बिगड़ने का बड़ा खतरा रहता है. लोगों को डराकर और लालच देकर धर्मांतरण कराया जा रहा है. ऐसे में अध्यादेश लाकर ही इस पर अंकुश लगाया जा सकता था. सरकार की तरफ से इस अध्यादेश के जरिए महिलाओं की सुरक्षा का भी हवाला दिया गया.
योगी सरकार को फौरी राहत
चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने इस मामले में सुनवाई करते हुए यूपी सरकार से जवाब तलब कर लिया है. अदालत अब सात जनवरी को इस मामले में अंतिम तौर पर सुनवाई करेगी. हालांकि, शुक्रवार की सुनवाई के दौरान योगी सरकार को फौरी तौर पर थोड़ी राहत मिल गई है.
कोर्ट ने इस मामले में नहीं दी राहत
दरअसल, याचिकाओं में केस का अंतिम फैसला आने तक अध्यादेश पर अंतरिम तौर पर रोक लगाए जाने की अपील की गई थी, जिसे कोर्ट ने मना कर दिया. याचिकाकर्ताओं की तरफ से केस का फैसला आने तक अध्यादेश की धाराओं के तहत गिरफ्तारी नहीं किए जाने की भी गुहार भी लगाई गई, लेकिन कोर्ट ने उस पर भी कोई राहत नहीं दी.
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