प्रयागराज: यूपी में कोरोना की दूसरी लहर के बीच हुए पंचायत चुनावों ने तमाम ज़िंदगियों को निगल लिया. चुनाव ड्यूटी के चक्कर में संक्रमित होकर किसी घर के इकलौते कमाऊ सदस्य की मौत हो गई तो कहीं तकरीबन पूरा परिवार ही ख़त्म हो गया. कुछ ऐसा ही हुआ है संगम नगरी प्रयागराज में बीएससी की छात्रा शगुन कांडपाल के साथ. चुनाव ड्यूटी के चलते घर से बाहर निकलने पर शगुन के माता-पिता दोनों ही संक्रमित हो गए. अलग-अलग अस्पतालों में इलाज के दौरान एक ही दिन में दोनों कोरोना के आगे ज़िंदगी की जंग हार बैठे. छोटी बेटी मां-बाप की मौत का सदमा नहीं सह पाई और दसवें दिन उसने भी दम तोड़ दिया.


प्रयागराज के झलवा इलाके में रहने वाली शगुन अब एक करीबी रिश्तेदार के यहां पनाह लिए हुए हैं. सरकार ने पंचायत ड्यूटी में लगे कोरोना संक्रमित शिक्षकों-कर्मचारियों के परिवार वालों को आर्थिक मदद का एलान किया था. अनाथ हो चुके बच्चों की हर मुमकिन सहायता के दावे किये थे, लेकिन डेढ़ महीने बीतने के बावजूद शगुन को अभी तक कहीं से कोई मदद नहीं मिली है. सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाकर थक चुकी यह छात्रा अब सीएम योगी से इंसाफ की गुहार लगा रही है. उसे जितना ग़म अपने मां-बाप और बहन को खोकर अनाथ होने का है, उससे ज्यादा टीस पूरे परिवार की मौत के बाद सिस्टम से मिल रही झिड़क और टरकाने वाले रवैये से है. नाकारा सिस्टम के आगे नाउम्मीद हो चुकी शगुन को सरकारी अमले से ढेरों शिकायतें हैं. बहरहाल शगुन के मामले के बहाने शिक्षक संगठनों और विपक्षी पार्टियों ने भी सरकार पर सियासी तीर चलाने शुरू कर दिए हैं.


संगम नगरी प्रयागराज में इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से बीएससी फर्स्ट इयर की पढ़ाई कर रही शगुन कांडपाल के परिवार में दो महीने पहले तक सब ठीक ठाक था. चार लोगों के हंसते -खेलते परिवार में पिता चंद्रमोहन सेंट्रल स्कूल में सर्विस करते थे, जबकि मां जीवंती कांडपाल शहर के ही एक प्राइमरी स्कूल में हेडमास्टर थीं. तकरीबन दो महीने पहले इस परिवार को तब किसी की बुरी नज़र लग गई, जब शगुन के माता-पिता दोनों की ही पंचायत चुनाव में ड्यूटी लग गई. पिता चुनाव की ट्रेनिंग करने के लिए कई दिन घर से बाहर निकले तो मां अपनी ड्यूटी रिसीव करने व स्कूल के दूसरे स्टाफ को ड्यूटी के बारे में जानकारी देने के लिए.


शगुन फिलहाल अपने ताऊ मदन मोहन कांडपाल के घर रह रही है


चुनावी ड्यूटी के चक्कर में दोनों कोरोना से संक्रमित हो गए. दोनों पहले होम आइसोलेशन में रहे, बाद में तेजी से आक्सीजन लेवल गिरने के बाद उन्हें अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती होना पड़ा. अस्पताल में जगह पाने के लिए भी दोनों को कई दिनों तक जद्दोजेहद करनी पडी. आईसीयू में भर्ती होने की वजह से दोनों 15 अप्रैल को होने वाले पहले चरण के पंचायत चुनाव की ड्यूटी पर नहीं जा सके थे. 19 अप्रैल को कुछ ही घंटों के फर्क में दोनों ही कोरोना के आगे ज़िंदगी की जंग हार बैठे और अपनी दोनों बेटियों को ईश्वर के भरोसे छोड़कर दुनिया को अलविदा कह दिया. माता-पिता के संपर्क में आने की वजह से छोटी बेटी मोनिका भी संक्रमित हो गई थी. मां-बाप की मौत के सदमे को वह बर्दाश्त नहीं कर पाई और जिस वक़्त दसवें दिन का शांति पाठ चल रहा था, ठीक उसी वक़्त उसने भी दम तोड़ दिया. मां-बाप और बहन की मौत के बाद शगुन घर में अकेली हो गई. उसकी दुनिया उजड़ गई, वह अनाथ हो गई. शगुन फिलहाल कालिंदीपुरम इलाके में रहने वाले अपने ताऊ मदन मोहन कांडपाल के घर रह रही है.


पूरे परिवार को खोने के बाद मासूम शगुन पर क्या बीत रही होगी, इसका अंदाजा लगा पाना कतई मुश्किल नहीं है. पूरा परिवार उजड़ने के बाद शगुन के आंसू पोछने, उसे दिलासा देने और सरकार द्वारा किये गए एलान के मुताबिक़ मदद करने के लिए उसके दरवाजे आज तक न तो कोई सियासी रहनुमा पहुंचा और न सरकारी महकमों से जुड़ा कोई अफसर. पंचायत चुनाव में ड्यूटी की वजह से कोरोना से संक्रमित होकर जान गंवाने वाले सरकारी मुलाजिमों के लिए सरकार ने राहत का जो ढिंढोरा पीटा था, उसमे से अनाथ शगुन को अब तक फूटी कौड़ी भी नसीब नहीं हुई है.


दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते शगुन और उसके ताऊ थक चुके हैं


तमाम सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते शगुन और उसके ताऊ थक चुके हैं. आरोप है कि ज़िम्मेदार लोग मदद करने के बजाय ताना मारते हैं. कुछ भी सुनने व मदद करने के बदले टालमटोल व बहानेबाजी करते रहते हैं. छोटे-छोटे काम के लिए बार-बार दौड़ाते हैं. कई लोगों का रवैया भी बेहद खराब रहता है. मामले को उलझाने के लिए ऐसे कागजात मांगे जाते हैं, जो मुमकिन ही नहीं है. सिस्टम से जुड़े लोग सीधे मुंह बात करने के बजाय अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते हुए गुमराह करते रहते हैं. शगुन के सामने अभी पूरी ज़िंदगी पडी है. उसे अपना पेट पालने के साथ ही आगे की पढ़ाई करने व कैरियर बनाने में ज़रुरत पड़ने वाले रूपयों की फ़िक्र है. ताऊ का परिवार बेशक उसे बेटी की तरह पाल रहा है. उसे सिर आंखों पर बिठाए हुआ है, लेकिन शगुन को आने वाले दिनों में सामने पड़ने वाली मुश्किलों का बखूबी एहसास है, लिहाजा उसने सीएम योगी से इंसाफ की गुहार लगाई है. शगुन का साफ़ कहना है कि पंचायत चुनाव में ड्यूटी की वजह से ही उसका पूरा परिवार तबाह हुआ. जिन लोगों ने ड्यूटी लगाई, उन्होंने इलाज के दौरान भी कोई मदद नहीं की थी. हालत ज़्यादा खराब होने के बावजूद शगुन के माता-पिता को दो-तीन दिन बाद ही अस्पताल में जगह मिल सकी थी.


वैसे शगुन जैसे तमाम और लोग भी हैं, जिन्हें पहले कोरोना ने रुलाया और अब सिस्टम की पेचीदगियां उनके ग़म को और बढ़ा रही हैं. बेहतर होता कि शगुन जैसों का दर्द बांटने और उनकी मदद करने के लिए सरकारी नुमाइंदे खुद उनके दरवाजे जाते. ज़रूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उन्हें घर बैठे तमाम सहूलियतें मुहैया कराते. वैसे शगुन के बहाने शिक्षक संगठनों और विपक्षी पार्टियों ने अब सरकार पर निशाना साधा है. समाजवादी पार्टी के एमएलसी मान सिंह का साफ़ तौर पर कहना है कि यह बीजेपी सरकार की कथनी-करनी में फर्क का जीता-जागता नमूना है. सरकार की नाकामी से पहले तमाम लोगों को जान गंवानी पड़ी और अब उनका परिवार तिल-तिल कर मरने को मजबूर हो रहा है.


शिक्षक नेता राम अवतार ने इसे दुखद करार दिया


विधायक मान सिंह के मुताबिक़ उनकी पार्टी शगुन कांडपाल व दूसरे अन्य पीड़ितों के साथ कतई नाइंसाफी नहीं होने देगी. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी मदद करेंगे और साथ ही आवाज़ भी उठाएंगे. शिक्षक नेता राम अवतार ने भी इसे दुखद करार दिया है और कहा है कि सरकार को ऐसे पीड़ित परिवारों की मदद के लिए आगे आना चाहिए और पेचीदगी वाले नियमों में ढील देकर मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखकर काम करना चाहिए.


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