Prayagraj News: प्रयागराज का स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल यहां के मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज द्वारा संचालित हॉस्पिटल है. यह प्रयागराज के आसपास के एक दर्जन से ज्यादा जिलों का रेफरल अस्पताल भी है. यहां रोजाना एक हजार से ज्यादा मरीज अपना इलाज कराने के लिए आते हैं. विशेषज्ञ डॉक्टरों और कर्मचारियों की कमी है, लेकिन अस्पताल से किसी को भी वापस नहीं किया जाता है. यूपी सरकार ने इस अस्पताल के लिए खजाना खोल रखा है. यहां एक नई बिल्डिंग बन गई है, जबकि ट्रामा सेंटर की भी शुरुआत हो चुकी है. अस्पताल में चूहों व अन्य जानवरों के आतंक की तस्वीरें पहले कई बार सामने आ चुकी हैं. 


चूहों का आतंक इस कदर हो गया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट को इस मामले में दखल देना पड़ा है. हाईकोर्ट ने चूहों के आतंक के चलते मरीजों और अस्पताल को हो रही परेशानी और सरकारी रकम के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए इस मामले में स्वत: संज्ञान यानी सुओ मोटो लेते हुए खुद सुनवाई की है और दिशा निर्देश जारी किया है. अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि यह सार्वजनिक महत्व से जुड़ा हुआ बेहद संवेदनशील मामला है, इसलिए उसे खुद ही इस मामले में दखल देना पड़ रहा है. हाईकोर्ट के दखल के बाद अस्पताल प्रशासन से लेकर यूपी सरकार तक हड़कंप मच गया है.


अस्पताल में ही अमृत फार्मेसी चलाने वाले विनय का दावा है कि चूहों ने इस कदर आतंक मचा रखा है कि उन्हें हर महीने हजारों रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है. अपने मेडिकल स्टोर में उन्होंने चूहों की रोकथाम के लिए कई चूहे दानी लगा रखी हुई हैं. कई जगहों पर रैट पैड लगाए हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद रात के वक्त चूहे दवाओं को खराब कर ही देते हैं. दवाओं को रखने के लिए स्टोर न मिल पाने की वजह से उन्हें तमाम दवाएं बाहर जमीन पर ही रखनी पड़ती हैं.



अगली सुनवाई 12 फरवरी को


 प्रयागराज से प्रकाशित होने वाले एक अखबार ने चूहों के आतंक की वजह से सरकारी दवाओं के हो रहे नुकसान और मरीजों को हो रही परेशानी की खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था. एक्टिंग चीफ जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र की डिवीजन बेंच ने इसी खबर को आधार बनाकर मामले में सुओ मोटो लिया. हाईकोर्ट ने इस मामले में सीधे तौर पर सुनवाई की और चूहों के आतंक पर चिंता जताई. अदालत ने इसे सार्वजनिक महत्व का मामला बताते हुए जिम्मेदार लोगों से जवाब तलब कर लिया और व्यवस्था में सुधार करने की हिदायत दी. अदालत ने इस मामले को जनहित याचिका के तौर पर कायम करने के निर्देश दिए और फिर से सुनवाई के लिए 12 फरवरी की तारीख तय की. 


चूहे पकड़ने के लिए किये जा रहे इंतजाम


 डॉक्टरों और कर्मचारियों की कमी के चलते पहले ही मरीजों के इलाज के लिए जद्दोजहद कर रहे अस्पताल प्रशासन को अब चूहों को पकड़ने का काम भी मिल गया है. हालांकि अस्पताल प्रशासन ने पहले ही साफ-सफाई और देखरेख करने का काम एक एजेंसी को दे रखा है. हाईकोर्ट के आदेश के बाद एजेंसी को और सक्रिय होकर बेहतर तरीके से काम करने का फरमान जारी किया गया है. अस्पताल के जिम्मेदार लोग अब खुद ही दवाओं के स्टोर रूम का निरीक्षण और मॉनिटरिंग कर रहे हैं. स्टोर रूम में जगह-जगह रैट पैड लगाए जा रहे हैं, ताकि चूहे उनमें चिपक जाए और उन्हें पकड़ा जा सके. स्टोर रूम के बाहर ब्लीचिंग पाउडर व दूसरे केमिकल का छिड़काव किया जा रहा है, जिससे चूहे व दूसरे जीव जंतुओं पर अंकुश लगाया जा सके. हॉस्पिटल कैंपस में चलने वाले मेडिकल स्टोर में कई चूहे दानियां रख दी गई है. मरीजों को बचा हुआ खाना डस्टबिन में डालने के पोस्टर तैयार किए गए हैं. तीमारदारों से वार्ड के बजाय रैन बसेरे में खाना खाने की अपील की जा रही है. दवाओं और दूसरे सामानों के लिए नई अलमारियां भी खरीदे जाने का फैसला किया गया है. वैसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के सुओं मोटो लेने के बाद ABP News की टीम अस्पताल पहुंची तो वहां वार्डों के बाहर कई जगहों पर कुत्ते घूमते हुए नजर आए, जबकि कैंपस में गाय और सांड टहलते हुए दिखाई दिए.


अस्पताल प्रशासन का दावा चूहों का कोई खास आतंक नही


 अस्पताल प्रशासन यह दावा कर रहा है कि चूहों का अब कोई खास आतंक नही रहा है. चूहों को पकड़ने और दवा व दूसरे सामानों की सुरक्षा के लिए पहले ही एजेंसी के लोग मुस्तैदी से काम कर रहे हैं. हालांकि इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि आखिरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट को इस मामले में खुद दखल क्यों देना पड़ा. हाईकोर्ट के आदेश के बाद अस्पताल से लेकर जिले के अफसरों ने आज मीटिंग की है, जबकि प्रिंसिपल डा० एसपी सिंह राज्य सरकार को जानकारी देने के लिए लखनऊ गए हुए हैं. दूसरी तरफ अस्पताल के सीएमएस डॉक्टर एके सक्सेना का दावा है कि इक्के दुक्के चूहे ही अस्पताल परिसर में है. यह चूहे भी मरीजों द्वारा बचे हुए खाने को ऐसे ही फेंक देने की वजह से बने रहते हैं. उनके मुताबिक अस्पताल प्रशासन इस समस्या को लेकर पहले ही गंभीर था. हाईकोर्ट के दखल के बाद अब और सक्रिय होकर काम किया जा रहा है. तमाम एहतियाती कदम उठाए जा रहे हैं. वह और दूसरे जिम्मेदार लोग खुद मॉनिटरिंग कर रहे हैं. एजेंसी को भी और तेजी वा जिम्मेदारी से काम करने की हिदायत दी गई है. 


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