Prayagraj News: संगम के शहर प्रयागराज में यूं तो 50 से ज़्यादा जगहों पर रामलीलाओं का आयोजन होता है, लेकिन इनमे से गंगापार के कोटवा इलाके में खुले मैदान में होने वाली रामलीला लोगों के ख़ास आकर्षण का केंद्र होती है. तकरीबन 120 साल पुरानी यहां की रामलीला से लोगों का जुड़ाव बनाए रखने के लिए लाइट एंड साउंड की हाइटेक तकनीक का इस्तेमाल तो किया जाता है, लेकिन यहां की रामलीला को ख़ास पहचान देने वाली पुरानी परम्पराओं और मान्यताओं से कोई समझौता नहीं किया जाता. यहां के रामलीला आज भी मंच के बजाय खुले मैदान में अलग-अलग जगहों पर घूम-घूमकर की जाती है. यहां की रामलीला के डायलॉग और बीच-बीच में बजने वाले भक्ति गीत प्री रिकार्डेड नहीं होते, बल्कि कलाकारों की टोली इन्हें लाइव बोलती व गाती रहती है. यही वजह है कि ओम नमः शिवाय संस्था द्वारा आयोजित इस रामलीला को देखने के लिए अब भी बड़ी संख्या में दर्शक देर रात तक डटे रहते हैं. हर दिन रामलीला ख़त्म होने के बाद दर्शकों को भोजन प्रसाद भी दिया जाता है.


गंगापार के कोटवा इलाके में होने वाली रामलीला तकरीबन 120 साल पुरानी है. इस साल पहले दिन हुई यहां की रामलीला में सबसे पहले भगवान शिव द्वारा माता पार्वती को रामकथा सुनाए जाने के प्रसंग का मंचन हुआ. महिला कलाकार ने खुले मैदान में ही नृत्य पेश किया. इसके बाद लंकाधिपति रावण और उसकी सेना द्वारा ऋषियों-मुनियों पर किये जाने वाले अत्याचार, उनके यज्ञ व धार्मिक अनुष्ठानों में खलल पैदा किये, महात्माओं द्वारा ब्रह्मा जी की पूजा किये जाने और उनके द्वारा अवध नरेश के यहां ब्रह्म अवतार के तौर पर बालक के जन्म होने की घोषणा के दृश्यों को पेश किया गया. ये सभी प्रसंग खुले मैदान में अलग-अलग जगहों पर पेश किये गए. मंचन के दौरान कलाकारों की टोली वाद्य यंत्रों के साथ गीत और संगीत पेश कर रही थी. कलाकारों के डायलॉग लाइव बोले जा रहे थे.


पूरे रामलीला ग्राउंड को ख़ूबसूरती से सजाया गया है


कलाकारों को आकर्षक ड्रेस पहनाई गईं थीं. पूरे रामलीला ग्राउंड को ख़ूबसूरती से सजाया गया है. यहां बेहतरीन लाइटिंग की गई थी. ओम नमः शिवाय संस्था के प्रमुख गुरुदेव खुद पूरे वक़्त यहां मौजूद रहकर व्यवस्थाओं की मानीटरिंग करते रहते हैं. संस्था के सदस्य यहां वालेंटियर का काम करते हैं और आयोजन में अपना सहयोग देते हैं. यहां की रामलीला में परम्पराओं और आधुनिकता का अनूठा संगम भी देखने को मिलता है. संस्था के प्रमुख गुरुदेव के मुताबिक तकरीबन एक सौ बीस साल पुरानी यहां की रामलीला में तमाम उतार-चढ़ाव आए हैं, लेकिन प्रस्तुतीकरण के ख़ास अंदाज़ की वजह से लोगों के बीच इसका आकर्षण आज भी बरकरार है. यहां रामलीला की तैयारियां डेढ़ दो महीने पहले ही शुरू हो जाती हैं. कलाकार महीने भर पहले से ही रिहर्सल करने लगते हैं.




ख़ास और अनूठे अंदाज़ में होने वाली इस रामलीला को कई संस्थाओं द्वारा सर्वश्रेष्ठ रामलीला के खिताब से नवाज़ा भी जा चुका है. दूसरी तमाम रामलीलाओं में जहां दर्शकों का अभाव होता है, वहीं यहां की रामलीला में इंट्री पाने के लिए लोगों को खासी जद्दोजेहद करनी पड़ती है. यहां की रामलीला का मंचन इतने आकर्षक अंदाज़ में होता है कि दर्शक अपनी सुध बुध खोकर पात्रों व किरदारों में डूब जाते हैं. हालांकि इस बार की रामलीला पर कोरोना की महामारी का असर साफ़ तौर पर देखने को मिल रहा है.


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