प्रयागराज, मोहम्मद मोईन: संगम नगरी प्रयागराज के कोरोना हॉस्पिटल में मरीजों को जरूरी सुविधाएं देने के नाम पर उनसे जबरन वसूली किए जाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है. हॉस्पिटल की नर्सों और वार्ड ब्वाय की तरफ से मरीजों तक खाने पीने के सामान और दवाएं पहुंचाए जाने के बदले सैकड़ों रुपये वसूले जाने के कई वीडियो भी सामने आए हैं.


बैकफुट पर हैं जिम्मेदार
वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि हॉस्पिटल का मेडिकल स्टाफ पीपीई किट पहनकर पैसे ले रहा है और उसके बदले सामान अंदर पहुंचाया जा रहा है. ये वीडियो कोरोना वार्ड में भर्ती होने के बाद मौत का शिकार हुए एक बुजुर्ग के परिवार वालों ने बनाया है. वीडियो सामने आने के बाद हॉस्पिटल से जुड़े जिम्मेदार लोग बैकफुट पर हैं और उन्हें कोई जवाब देते नहीं बन रहा है.


दावों की खुली पोल
कोरोना हॉस्पिटल में वसूली के वीडियो ने सरकारी अमले के बड़े-बड़े दावों की पोल खोलकर रख दी है. इस वीडियो से यह भी साफ हुआ है कि लक्षण होने के बावजूद ज़्यादातर लोग क्यों कोरोना की जांच कराने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. प्रयागराज का ये वही सरकारी अस्पताल है, जहां रोजाना कई मरीजों की मौत होने और जरूरी सुविधाओं का अभाव होने की वजह से इलाहाबाद हाईकोर्ट कई बार अपनी नाराजगी तक जता चुका है.


मेडिकल स्टाफ ले रहा था पैसे
दवा, पानी, जूस और कपड़े पहुंचाने और कोरोना वार्ड में गंभीर रूप से बीमार मरीज को नली वगैरह लगाने के नाम पर मेडिकल स्टाफ की तरफ से पैसे वसूले जाने का ये वीडियो प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज संचालित स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल का है.



कोरोना वार्ड में कराया गया भर्ती
दरअसल, सोरांव इलाके के रहने वाले सतीश कुमार शर्मा मुम्बई में फिल्मों और टीवी सीरियल्स की एडिटिंग का काम करते हैं. उनके पिता लक्ष्मी नारायण शर्मा को एक अगस्त को जुकाम और बुखार हुआ तो परिवार वाले उन्हें अगले दिन यानी दो अगस्त को स्वरुपरानी नेहरू अस्पताल ले आए. यहां जांच में रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उन्हें कोरोना वार्ड में भर्ती करा दिया.


पैसों की डिमांड की गई
पिता की बीमारी की खबर सुनकर सतीश और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा उनका छोटा भाई लकी भी आ गया. कोरोना वार्ड में मरीजों की कोई देखभाल नहीं होती थी. न वक्त पर पानी मिलता था और न ही फल व दवाएं. पीड़ित लक्ष्मी नारायण अंदर से फोन के जरिये बेटों को अपनी बेबसी की दास्तां सुनाते रहते थे. इस पर उनके बेटों ने कोरोना वार्ड में ड्यूटी करने वाले वार्ड ब्वायों और नर्सों से संपर्क कर उनसे जूस और अन्य सामान अंदर पहुंचाने की गुजारिश की तो सीधे तौर पर पैसों की डिमांड हो गई.


हर काम के लिए देने पड़ते थे पैसे
सुमित के मुताबिक उन्हें सबसे पहले 50 रूपये का जूस बीमार पिता तक पहुंचवाने के बदले 500 सौ रूपये देने पड़े. पैसे लेने वाले लोग सुमित और उनके परिवार वालों के साथ ही वार्ड में भर्ती पिता से अलग से पैसे लेते थे. आरोप है कि हर काम के लिए पैसों की डिमांड की जाती थी. बिना पैसा लिए हॉस्पिटल का स्टाफ कोई मदद करने को तैयार नहीं होता था. बाकी मरीजों के तीमारदार भी इसी तरह पैसा देकर ही काम कराते थे. बाहर से मरीज का मोबाइल चार्ज कराने तक के 300 से 500 सौ रूपये लिए जाते थे. पैसे वाले लोग जेब ढीली कर अपना काम करा लेते थे, जबकि गरीब परेशान रहते थे.


पैसा लेने के बावजूद होती थी बदसलूकी
सुमित के मुताबिक कई बार ऐसा हुआ कि उन्हें अलग-अलग काम के लिए एक-एक दिन में सात से आठ हजार रूपये की रिश्वत देनी पड़ी थी. मेडिकल स्टाफ पीपीई किट पहनकर आता था. किसी के हाथ में थैली तो किसी के पास छोटा थैला होता था. पैसा गिनवाने के बाद झोले या थैले में डाल दिया जाता था और सामान व उसके साथ मरीज का नाम और बेड नंबर लिखी पर्ची साथ लेकर चले जाते थे. कई बार पैसा लेने के बावजूद स्टाफ बदसलूकी करता तो सुमित और उनके परिवार वालों ने चुपचाप वीडियो बनाना शुरू किया.



बना लिया वीडियो
सुमित ने खुद और दूसरे मरीजों के तीमारदारों की तरफ से दिए जाने वाले पैसे का अपने मोबाइल फोन से वीडियो बना लिया. आरोप है कि हर काम के लिए पैसे लेने के बावजूद हॉस्पिटल में उनके पिता लक्ष्मी नारायण की ठीक से देखभाल नहीं हुई और उनकी तबीयत बिगड़ने लगी तो वो लोग उन्हें लेकर लखनऊ के केजीएमयू हॉस्पिटल चले गए.


पिता की हुई मौत
सुमित और उनके भाई को खुद पीपीई किट पहनकर वार्ड से अपने बीमार पिता को एम्बुलेंस तक लाना पड़ा था. इस मामले में अफसोसजनक ये रहा कि लक्ष्मी नारायण लखनऊ में भी ज्यादा दिनों तक कोरोना से नहीं लड़ सके और 16 अगस्त को उन्होंने दम तोड़ दिया. इस मामले में मेडिकल कालेज और हॉस्पिटल प्रशासन आधिकारिक तौर पर कैमरे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है.


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