प्रयागराज: धर्म की नगरी प्रयागराज में संगम की रेती पर हर साल जनवरी महीने से शुरू होने वाला माघ मेला इस बार कोरोना की बलि नहीं चढ़ेगा. इसे दुनिया का सबसे बड़ा सालाना धार्मिक आयोजन कहा जाता है, जिसमें हर बार पांच करोड़ के करीब श्रद्धालु शामिल होते हैं. कोरोना की महामारी के बीच इस बार के माघ मेले के आयोजन को लेकर यूपी सरकार ने अपनी तरफ से हरी झंडी दे दी है, हालांकि अभी औपचारिक एलान नहीं हुआ है. सरकार की तरफ से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद अफसरों ने तम्बुओं का शहर बसाने को लेकर अपना होम वर्क शुरू कर दिया है.


मेले के परम्परागत आयोजन में तो कोई दिक्कत नहीं आएगी, लेकिन सरकारी अमले के सामने असली चुनौती यहां आने वाले लाखों करोड़ों श्रद्धालुओं को कोरोना के संक्रमण से बचाने की होगी. सरकारी अमला आयोजन से ज़्यादा इसी पर माथापच्ची कर रहा है. फिलहाल जो योजना तैयार की जा रही है, उसके मुताबिक़ मेले में लगने वाले तम्बुओं के शिविरों में कटौती की जा सकती है. शिविर थोड़ी दूरी पर बनाए जा सकते हैं. शिविरों में रुकने वालों की संख्या निर्धारित की जा सकती है. बिना मास्क वाले श्रद्धालुओं की इंट्री पर पाबंदी लग सकती है तो साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर सख्ती बरती जा सकती है. घाटों और मेला क्षेत्र में श्रद्धालुओं की संख्या सीमित की जा सकती है.


कोरोना काल में भी गाइडलाइन के मुताबिक़ माघ मेले का आयोजन कराए जाने की मांग को लेकर साधू संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद सीएम योगी व डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से लखनऊ में मुलाकात कर उनसे अपील कर चुका है. सीएम ने संतों को मेले की परंपरा खंडित नहीं होने का भरोसा दिलाया था तो डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने खुद प्रयागराज में सार्वजनिक तौर पर मेले के आयोजन का एलान किया था. सीएम और डिप्टी सीएम से मिले ग्रीन सिग्नल से जहां साधू-संतों से लेकर तीर्थ पुरोहित और श्रद्धालु उत्साहित हैं, वहीं सरकारी अमले ने इसके लिए अपनी कवायद भी शुरू कर दी है.


माघ मेले का आयोजन मिनी कुंभ की तर्ज पर होता है


प्रयागराज में संगम की रेती पर हर साल तकरीबन पचास दिनों तक लगने वाले माघ मेले का आयोजन मिनी कुंभ की तर्ज पर होता है. माघ मेले की परंपरा यहां प्राचीन काल से चली आ रही है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक प्रयागराज के माघ मेले में एक महीने तक कल्पवास करने से लोगों के जन्म जन्मांतर के पाप दूर हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है यानी जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है. मेले के आयोजन के लिए संगम की रेती पर हर साल तम्बुओं का अलग और अस्थाई शहर बसाया जाता है. तकरीबन डेढ़ महीने के माघ मेले में हर बार छह प्रमुख स्नान पर्व होते हैं.


अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का दावा है कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने साधू संतों से की गई मुलाकात में मेले के आयोजन पर अपनी सहमति दे दी है. उनका दावा है कि सीएम योगी ने साफ़ तौर पर कहा है कि सदियों पुरानी परंपरा को कतई खंडित नहीं होने दिया जाएगा. चार दिन पहले प्रयागराज आए डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी एक कार्यक्रम में एलान किया था कि कोविड गाइड लाइन का पालन करते हुए माघ मेले का आयोजन कराया जाएगा. इस दौरान लोगों की सुरक्षा का ख़ास ध्यान भी रखा जाएगा. तीर्थ पुरोहितों की संस्था प्रयागवाल सभा के महामंत्री राजेंद्र पालीवाल ने भी मेले का आयोजन हर हाल में कराए जाने की मांग की है. उनका कहना है कि आस्था के इस मेले में लोग वैसे भी नियम-संयम का पालन करते हैं. ऐसे में यहां आने वाले श्रद्धालु और अनुशासित रहकर खुद को संक्रमण से बचा सकते हैं.


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