(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
कितना लुभा पाएगा प्रियंका गांधी का नया अवतार
कांग्रेस को यह अहसास हो चुका है कि नरम हिंदुत्व को अपनाए बगैर वह बीजेपी को टक्कर नहीं दे सकती. यही वजह है कि यूपी में पार्टी की बागडोर संभालने के बाद से ही प्रियंका का हर कदम पार्टी को नरम हिंदुत्व की राह पर लगातार आगे लेता जा रहा है.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान संभाल चुकीं प्रियंका गांधी गुरुवार को अपने नए अवतार में सामने आईं. प्रयागराज में हाथों में माला लिए गंगा में डुबकी लगाने के कई सियासी मायने हैं. इसके जरिए उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की है कि कांग्रेस अब नरम हिंदुत्व की नाव पर पर सवार होकर सत्ता की वैतरणी पार करने की तलाश में हैं.
कांग्रेस को यह अहसास हो चुका है कि नरम हिंदुत्व को अपनाए बगैर वह बीजेपी को टक्कर नहीं दे सकती. यही वजह है कि यूपी में पार्टी की बागडोर संभालने के बाद से ही प्रियंका का हर कदम पार्टी को नरम हिंदुत्व की राह पर लगातार आगे लेता जा रहा है. मौनी अमावस्या पर मौन डुबकी लगाकर प्रदेश के हिन्दू वोटरों को लुभाने की पहल कितनी कारगर साबित होती है, यह तो आगामी विधानसभा चुनाव में ही पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि योगी आदित्यनाथ के उग्र हिंदुत्व का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस को अपनी इस रणनीति पर मजबूती से काम करना होगा.
जाहिर है कि यूपी के चुनाव में कांग्रेस का ‘चप्पू’ प्रियंका के हाथों में ही होगा और वह सूबे में पार्टी की ‘खेवनहार’ की भूमिका में होंगी. लेकिन पार्टी की नैया पार लगाने के लिए उन्हें अभी से ही बूथ लेवल तक समर्पित कार्यकर्ताओं की फौज तैयार करनी होगी. अपने खोए हुए जनाधार को पाने के लिए पार्टी के उन लोगों को सक्रिय करना होगा, जो पिछले चुनावों में कांग्रेस के निराशा भरे प्रदर्शन के बाद यह मानकर घर बैठ गए कि अब कांग्रेस का उद्धार नहीं हो सकता. ऐसे तमाम लोगों को अब प्रियंका में उम्मीद की किरण दिखने लगी है.
अपने पुरखों की सियासी विरासत संभालने वाली प्रियंका का सबसे मजबूत पक्ष यही है कि उन्हें अपने भाई राहुल गांधी के उलट आम लोगों से कनेक्ट करने की कला बखूबी आती है. उनके व्यक्तित्व व भाषण देने के अंदाज में अपनी दादी इंदिरा गांधी का अक्स नजर आता है. कांग्रेस के लिए यही सबसे बड़ी पूंजी है, जिसे पार्टी को पिछले चुनाव के वक्त ही भुनाना चाहिए था.
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