उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के बाद अब दूसरे दौर का मतदान होना है। इस चरण में 8 लोकसभा की सीटों पर 18 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। इस दौर में नगीना, बुलंदशहर, आगरा और हाथरस सुरक्षित सीट हैं। इसके अलावा अमरोहा, अलीगढ़, मथुरा और फतेहपुर सीकरी सीट शामिल हैं। आज हम आपको बताते हैं मथुरा लोकसभा सीट के बारे में वो सारी बातें जो आप जानना चाहेंगे।


भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा का अपना राजनीतिक मूड है। 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां से अभिनेत्री हेमा मालिनी ने जोरदार जीत दर्ज की थी। शुरुआत में इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा था, लेकिन बीते दो दशकों में भारतीय जनता पार्टी ने यहां अपनी पकड़ मजबूत कर ली है।


मथुरा सीट का राजनीतिक इतिहास


मथुरा लोकसभा सीट पर पहले चुनाव से ही राजनीतिक रण होता रहा है, पहले और दूसरे लोकसभा चुनाव में यहां से निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी, लेकिन उसके बाद 1962 से 1977 तक लगातार तीन बार कांग्रेस पार्टी ने यहां जीत दर्ज की। 1977 में चली सत्ता विरोधी लहर में कांग्रेस को यहां से हार का सामना करना पड़ा और भारतीय लोकदल ने जीत हासिल की। 1980 में जनता दल ने यहां से चुनाव जीता, लेकिन 1984 में कांग्रेस ने एक बार फिर यहां से जोरदार जीत हासिल की।


1989 में जनता दल के प्रत्याशी ने यहां जीत दर्ज की, इसके बाद यहां लगातार 1991, 1996, 1998 और 1999 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की। चौधरी तेजवीर सिंह लगातार 3 बार यहां से चुनाव जीते। 2004 में कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह ने यहां से वापसी की। 2009 में बीजेपी के साथ लड़ी रालोद के जयंत चौधरी ने यहां से एकतरफा बड़ी जीत दर्ज की। 2014 में चली मोदी लहर में अभिनेत्री हेमा मालिनी ने 50 फीसदी से अधिक वोट पाकर जीत दर्ज की।


मथुरा का जातिगत समीकरण

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इस सीट पर जाट और मुस्लिम वोटरों का वर्चस्व रहा है। 2014 में भी जाट और मुस्लिम वोटरों के अलग होने का नुकसान ही रालोद को भुगतना पड़ा था। जाटों ने एकमुश्त होकर बीजेपी के हक में वोट किया। 2014 के आंकड़ों के अनुसार मथुरा लोकसभा क्षेत्र में कुल 17 लाख मतदाता हैं, इनमें 9.3 लाख पुरुष और 7 लाख से अधिक महिला वोटर हैं। मथुरा लोकसभा में कुल 5 लोकसभा सीटें आती हैं। इनमें छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा और बलदेव की विधानसभा सीट शामिल हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां मांट सीट पर बहुजन समाज पार्टी को जीत मिली थी, जबकि बाकी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली थी।


2014 में हेमामालिनी की हुई थी जबरदस्त जीत


2014 के लोकसभा चुनाव में यहां हेमा मालिनी को करीब 53 फीसदी वोट मिले थे। रालोद का गढ़ माने जाने वाली इस सीट पर अजित चौधरी के बेटे जयंत को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। 2014 में इस सीट पर 64 फीसदी मतदान हुआ था, इनमें से मात्र 2000 वोट ही NOTA में डाले गए थे। बीजेपी की जीत इतनी बड़ी थी कि उसे मिली वोटों की गिनती बसपा-सपा को मिले वोट से भी ज्यादा थी।


हेमा मालिनी ने 2014 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीता था। हालांकि, बीते लंबे समय से वह राजनीति में एक्टिव थीं। 1999 में उन्होंने पहली बार बीजेपी के लिए प्रचार किया था, जबकि 2004 में आधिकारिक तौर पर पार्टी ज्वाइन की। लोकसभा सांसद चुने जाने से पहले हेमा मालिनी राज्यसभा की भी सांसद रह चुकी हैं।