UP Election 2022: प्रयागराज की सिटी नॉर्थ सीट को यूपी की कुछ प्रमुख वीआईपी और हॉट सीटों में एक माना जाता है. दावा किया जाता है कि सूबे में सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे वोटर इसी सीट पर हैं. इस सीट को बीजेपी का मजबूत गढ़ भी माना जाता है. पिछले सात में पांच चुनावों में यहां बीजेपी का कमल खिला है. चर्चा थी कि बीजेपी के लिए सुरक्षित समझी जाने वाली इस सीट से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य किस्मत आजमा सकते हैं, लेकिन उनके सिराथू जाने के बाद पार्टी के टिकट को लेकर दिग्गज नेताओं में आपसी घमासान मचा गया है. नेताओं की दिलचस्पी खुद के टिकट के बजाय बेटों-बहुओं और दूसरे रिश्तेदारों की उम्मीदवारी तय कराने में हैं.


बेटे मयंक जोशी के टिकट के लिए उनकी सांसद मां रीता बहुगुणा जोशी ने तो मोर्चा खोल दिया है. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और कई राज्यों में गवर्नर रहे केशरीनाथ त्रिपाठी बहू कविता यादव त्रिपाठी के टिकट के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाए हुए हैं, जबकि मौजूदा विधायक हर्षवर्धन बाजपेई अपने पिता अशोक बाजपेई और दिवंगत दादी डा० राजेंद्र कुमारी बाजपेई के नाम के सहारे ताल ठोंक रहे हैं. परिवार की पैरवी करने वालों में कई और चर्चित नाम भी हैं. बड़े नेताओं द्वारा परिवार के टिकट को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए जाने से पार्टी असमंजस की हालत में है. उसे समझ नहीं आ रहा कि एक अनार-सौ बीमार में आख़िरकार किस पर दांव लगाए और बाकियों को कैसे समझाए.


प्रयागराज की सिटी नॉर्थ सीट पर बीजेपी को विपक्षियों से ज़्यादा अपनों से जूझना पड़ रहा है. कांग्रेस और बीएसपी ने जहां इस सीट पर काफ़ी पहले ही अपने योद्धाओं के नामों का एलान कर उनसे प्रचार भी शुरू करा दिया है तो वहीं बीजेपी अभी तक उहापोह में है. पार्टी की मुश्किल, हाल-फिलहाल ख़त्म या कम होती भी नज़र नहीं आ रही है. दिग्गज नेताओं ने बेटों-बहुओं और दूसरे रिश्तेदारों को टिकट दिलाने के लिए जिस तरह अपनी नाक का सवाल बना रखा है, उसमें विपक्ष भी अपने लिए मजबूत संभावनाएं तलाशने लगा है. इलाहाबाद सीट से सांसद और यूपी की पूर्व मंत्री डा० रीता बहुगुणा जोशी बेटे मयंक जोशी के टिकट के लिए लगातार खुलकर बयानबाजी कर रही हैं. उन्होंने सांसदी से इस्तीफ़ा देने और सियासत से संन्यास लेने तक की धमकी दे रखी है. पहले वह लखनऊ की कैंट सीट से बेटे मयंक को टिकट दिलाना चाहती थीं, लेकिन अब वह प्रयागराज की सिटी नार्थ सीट पर निगाह गड़ा चुकी हैं. इसी सीट पर उनका घर है. यहीं से वह मेयर रहीं. यहीं रहते हुए वह यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के तौर पर छात्रों को इतिहास पढ़ाती थीं, लेकिन अब अपने व परिवार के पुराने इतिहास के सहारे बेटे मयंक का भविष्य संवारने की कोशिश में हैं.


केशरीनाथ त्रिपाठी यूपी विधानसभा में कई बार स्पीकर और कई राज्यों में गवर्नर रहे हैं. वह लम्बे अरसे तक यूपी में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं. कभी बीजेपी के संकटमोचक कहे जाने वाले केशरीनाथ त्रिपाठी आज भी मार्गदर्शक की भूमिका में हैं. वह इस सीट से अपनी बहू कविता यादव त्रिपाठी को बीजेपी का सिंबल दिलाना चाहते हैं. उन्होंने रीता जोशी की तरह धमकी तो नहीं दी है, लेकिन अंदरखाने चर्चा यह है कि बहू के लिए वह प्रदेश से लेकर केंद्र तक के नेताओं से लगातार पैरवी कर रहे हैं. हालांकि वह इसे परिवारवाद के दायरे में नहीं मानते. उनकी दलील है कि अगर परिवार का कोई व्यक्ति अपनी काबिलियत के दम पर टिकट मांगता या पाता है तो उसे परिवारदार से बाहर मानना चाहिए. केशरीनाथ का कहना है कि उनकी बहू कविता उनके परिवार में शादी से पहले से ही बीजेपी में सक्रिय होकर काम कर रही हैं. वह ये ज़रूर कहते हैं कि बहू की पहचान उनसे ही है और टिकट मिलने पर वह उन्हें जिताने के लिए जी-तोड़ कोशिश भी करेंगे.


अभी बीजेपी के हर्षवर्धन बाजपेई विधायक हैं


इस सीट से अभी बीजेपी के हर्षवर्धन बाजपेई विधायक हैं. पिछले चुनाव में पार्टी उनके परिवार के गौरवशाली सियासी इतिहास की वजह से ही बीजेपी में लाई थी. हर्षवर्धन इस बार चक्रव्यूह में घिरे हैं, लेकिन उनका टिकट कायम रखने के लिए उनके पूर्व विधायक पिता अशोक बाजपेई और कभी समाजवादी पार्टी की दिग्गज नेताओं में शुमार रहीं डा० रंजना बाजपेई जी तोड़ कोशिशों में लगे हुए हैं. पार्टी नेताओं को हर्ष की दादी पूर्व गवर्नर व केंद्रीय मंत्री रहीं स्वर्गीय डा० राजेंद्र कुमारी बाजपेई के नाम की दुहाई दी जा रही है. हर्ष की दादी राजेंद्री बाजपेई और पिता अशोक बाजपेई इसी नार्थ सीट से विधायक रह चुके हैं. पूर्व विधायक अशोक बाजपेई बेटे हर्ष को परिवार की सियासी विरासत का वारिस तो मानते हैं, लेकिन यह भी कहते हैं कि वह अपने संघर्षों के दम पर विधायक बना और इस बार भी सबसे प्रबल दावेदार है.


परिवार के लिए पसीना बहाने वालों में पार्टी के दिग्गज नेता और शहर के जाने माने चिकित्सक डा० बीबी अग्रवाल का नाम भी शामिल है. उनकी चचेरी बहू डा० कीर्तिका अग्रवाल भी यहां से टिकट पाने वाले संभावितों की सूची में हैं. एक अन्य दावेदार राधाकांत ओझा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और संघ के पसंदीदा चेहरों में एक हैं. राधाकांत ओझा के भाई शिवकांत ओझा समाजवादी पार्टी के नेता हैं और यूपी में मंत्री भी रह चुके हैं. तमाम लोग राधाकांत ओझा को शिवाकांत के भाई के तौर पर ही पहचानते हैं. इन सबके अलावा पूर्व मंत्री डा० नरेंद्र कुमार सिंह गौर, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर प्रो० गिरीश त्रिपाठी, शिक्षक नेता डा० शैलेश पांडेय, काशी प्रांत के उपाध्यक्ष अवधेश चंद गुप्ता और ईएनटी सर्जन डा० एलएस ओझा का नाम भी सुर्ख़ियों में है. चर्चा इस बात की भी है कि आपसी झगड़े को ख़त्म करने के लिए एक पूर्व प्रधानमंत्री के परिवार से जुड़े जिले की दूसरी सीट से विधायक और कद्दावर नेता को इस बार यहां भेजा जा सकता है.


अनुग्रह नारायण सिंह हफ़्तों से प्रचार भी कर रहे हैं


अब देखना दिलचस्प होगा कि परिवारवाद और बड़े नामों में से बीजेपी में किसकी लाटरी लगती है और किन्हें मायूसी हाथ लगती है. वैसे कांग्रेस ने यहां से चार बार विधायक रहे ज़मीनी नेता अनुग्रह नारायण सिंह को फिर से मैदान में उतारकर अपनी रणनीति साफ़ कर दी है. अनुग्रह नारायण सिंह हफ़्तों से प्रचार भी कर रहे हैं. बीजेपी के परिवारवाद पर चुटकी लेते वह सियासी हमला भी बोल रहे हैं. उनका कहना है कि पांच सालों में हर मोर्चे पर नाकाम रही बीजेपी किसी भी परिवार व चेहरे को टिकट दे, लेकिन इस बार यहां उसकी दाल नहीं गलने वाली है. बीएसपी ने यहां से संजय गोस्वामी को उम्मीदवार बनाया है, जबकि समाजवादी पार्टी बीजेपी का टिकट घोषित होने के बाद पार्टी में सेंधमारी के ज़रिये खुद को मजबूत करने की कवायद में है.