उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के आरक्षण को लेकर राज्य सरकार इस ओर आगे बढ़ती दिखाई दे रही है. माना जा रहा है कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो हो सकता है इस बार राज्य स्थापना दिवस 9 नवंबर को राज्य आंदोलनकारियों को सरकार की ओर से आरक्षण का तोहफा मिल सकता है. उत्तराखंड में समय-समय पर सरकार के द्वारा जो आरक्षण तय किया गया है, उसको लेकर कोर्ट से झटके लगते रहते हैं. खेल कोटे के तहत सरकारी नौकरियों में मिलने वाले आरक्षण पर भी जहां रोक लगी हुई है तो वही राज्य आंदोलनकारियों को मिलने वाले क्षैतिज आरक्षण पर भी रोक लगी हुई है.
हालात यह है कि महिलाओं को जो आरक्षण सरकारी नौकरियों में मिलता था उस पर भी कोर्ट ने रोक लगा दी है. लेकिन महिला आरक्षण को गंभीरता से लेते हुए धामी सरकार ने जहां सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है, तो वहीं अब राज्य आंदोलनकारियों को 10 फ़ीसदी क्षैतिज आरक्षण पर रोक लगी हुई है. उस पर भी सरकार कानूनी राय लेने का मन बना चुकी है. उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को मिलने वाले आरक्षण को लेकर जहां 2013 में कोर्ट ने रोक लगा दी थी. तो वहीं साल 2018 में आरक्षण का शासनादेश सर्कुलर और अधिसूचना तीनों को कोर्ट ने खारिज कर दिया था.
कानूनी राय के लिए आरक्षण की फाइल भेजी
उत्तराखंड बीजेपी प्रवक्ता विपिन कैंथोला ने कहा कि साल 2015 में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार ने जरूर राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण दिए जाने का विधेयक सदन से पारित किया, लेकिन तब से यह राजभवन में लंबित पड़ा हुआ है. अब फिर से धामी सरकार राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में क्षेत्रीय आरक्षण मिले इसको लेकर कवायद शुरू करने जा रही है जिसको लेकर कानूनी राय के लिए आरक्षण की फाइल भेज दी गई है.
धामी सरकार की लेटलतीफी समझ से परे
इसके साथी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण तो दिया ही जाना चाहिए, क्योंकि राज्य गठन की मांग राज्य आंदोलनकारियों की थी. मेन सिस्टम में जब राज्य आंदोलनकारी आएंगे तो प्रदेश के विकास तेजी से धरातल पर भी उतारा जा सकता है. राज्य आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण दिए जाने पर जहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों दल समर्थन कर रहे हैं तो वहीं राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उन्हें पहले ही यह आश्वासन दिया हुआ था कि वह इस संबंध में निर्णय लेंगे. राज्य आंदोलनकारियों को लेकर जो निर्णय लिया जाना है, उस पर लेटलतीफी समझ से परे है. लेकिन यदि अगर सरकार वास्तव में राज्य आंदोलनकारियों की हितेषी है तो इस बार राज्य स्थापना दिवस से पहले राज्य आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण का तोहफा दे दे.