देहरादून: हाई प्रोफाइल अपॉइंटमेंट के मामले में तीरथ सरकार एक और चूक कर गयी है. आरएसएस के प्रांतीय और केंद्रीय टीम के पदाधिकारियों की सिफारिश पर पिछले दिनों पूर्व आईएफएस आरबीएस रावत की मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार के पद पर नियुक्ति की गयी, लेकिन पृष्ठभूमि कुछ और ही कहानी कह रही है. वर्ष 2016 में सब ऑर्डिनेट सर्विस कमीशन की 298 ग्राम पंचायत विकास अधिकारीयों की भर्ती परीक्षा में धांधली पाई गयी. इससे उपजे विरोध के बाद कमीशन के चेयरमैन आरबीएस रावत को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था. आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की गंभीर धाराओं में मुकदमा लिखने के बाद विजिलेंस आज भी इस मामले की जांच कर रही है, जांच खत्म नहीं हुई और रावत प्रमुख सलाहकार बन गए.
 


सरकार के फैसले पर सवाल


वैसे तो जब तक जांच में आरोप साबित न हो जाय तब तक किसी को दोषी नहीं कह सकते लेकिन जांच पूरी होने से पहले किसी को निर्दोष मान लेने की इजाज़त भी कानून नहीं देता है. इसीलिए सरकार के फैसले पर सवाल खड़े हो रहे हैं. वैसे तो आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व के लिए यह जांच का विषय है कि, कांग्रेस सरकार में प्रभावशाली रहा एक अफसर रिटायर होने के बाद कैसे संघ में प्रान्त पर्यावरण प्रमुख बन गया? वह प्रभावशाली इसलिए भी था, क्योंकि सेवा निवृति के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उन्हें आयोग का चेयरमैन बनाया था. प्रभावशाली इसलिए भी था कि, उनका इस्तीफ़ा छह महीने बाद सितम्बर 2016 में स्वीकार गया.
  
अब वो भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार बन गए हैं. यह एक प्रभावशाली पद होता है और इस बात की गारंटी कौन लेगा कि, रावत अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके विजिलेंस की उस मामले की जांच को प्रभावित नहीं करेंगे, जिसकी वजह से उन्हें कमीशन के पद से कार्यकाल के बीच में ही इस्तीफ़ा देना पड़ा था. अब रावत को संघ के केंद्रीय और प्रान्त के बड़े पदाधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है. जब धांधली सामने आई थी तब विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने सड़क तक इस मामले की जाँच कर दोषियों  कार्रवाई करने के लिए हरीश सरकार पर हमला बोला था और आज भाजपा की ही सरकार में ताजपोशी हो गयी. इतना दोष आरबीएस रावत का नहीं है, जितना कि भाजपा सरकार और संघ के कुछ बड़े लोगों का है जिन्होंने जानते हुए भी यह नियुक्ति करवाई. वरिष्ठ आईएएस डॉक्टर रणवीर सिंह की अध्यक्षता वाली समिति की जाँच में गड़बड़ी पाई थी. उसके बाद विजिलेंस जाँच शुरू हुई जो अभी भी चल रही है. ये तमाम सवाल मुंह बाये खड़े हैं जिनका जवाब सरकार को देना है. 
 
ग्राम पंचायत विकास अधिकारी के 298 पदों की परीक्षा में धांधली से जुड़ा घटनाक्रम 


एक ही गांव के 22 अभ्यर्थी चयनित हुए तो संदेह हुआ 


उत्तराखंड सब ऑर्डिनेट सर्विस कमीशन ने 29 मार्च 2016 को इस परीक्षा का परिणाम घोषित किया. परिणाम में घपलेबाज़ी की खबरें सामने आ रही थीं, जैसे कि, एक ही परिवार के कई कई सदस्यों का चयनित हो जाना. ऐसे लोग चयनित ही नहीं हुए, बल्कि टॉपर्स भी बन गए थे. पड़ोस के कई ऐसे बच्चे चयनित हो गए जो पढाई लिखाई में अक्षम थे और मेधावी युवा चयनित नहीं हुए. नाकामयाब रहे क़ाबिल युवाओं ने सूची के आधार पर गांव गांव जाकर आंकड़ा जुटाना शुरू किया तो धांधली का खेल खुल गया और बड़ी संख्या में युवाओ ने आंदोलन शुरू कर दिया. उधमसिंह नगर के पास के अकेले महुवा डाबरा गांव से 22 युवाओं का चयन हुआ.  
 
सरकार ने जांच कमेटी गठित की 
राज्यपाल ने कार्मिक विभाग से रिपोर्ट तलब की तो, कार्मिक विभाग ने सब ठीक है करके रिपोर्ट भेजी और तत्कालीन राज्यपाल ने रिपोर्ट देख करके फाइल वापस भेज दी. लेकिन विपक्ष का दबाव बढ़ रहा था तो तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जाँच बैठा दी. जांच के लिए एक तत्कालीन प्रमुख सचिव डॉ रणवीर सिंह के नेतृत्व में कमेटी गठित कर दी, जिसमे तत्कालीन आईजी पुलिस जीएस मर्तोलिया और तत्कालीन अपर सचिव न्याय सयन सिंह को बतौर सदस्य शामिल किया गया. 


आरबीएस रावत ने चेयरमैन के पद से इस्तीफ़ा दिया 
जब विरोध रुकने का नाम नहीं ले रहा था तो उत्तराखंड सब ऑर्डिनेट सर्विस कमीशन के चेयरमैन के पद से आरबीएस रावत को इस्तीफ़ा देना पड़ा. इसमें भी खास बात यह रही कि तत्कालीन सरकार ने छह महीने बाद सितम्बर 2016 में इस्तीफा स्वीकार किया, इसे लेकर सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे थे. लेकिन चूंकि, आरबीएस रावत को हरीश रावत के नजदीक माना जाता था, इसलिए यही चर्चा हुई की इस्तीफा स्वीकार नहीं करने की वजह निकटता है. 


जांच समिति ने क्या पाया 
 समिति ने ओएमआर शीट मंगवाकर देखी और पाया कॉपियों में टेम्परिंग की गयी है, समिति ने यह भी सिफारिश की कि, परीक्षा रद्द करके नए सिरे से कराइ जाय. इसी बीच आयोग के नए चेयरमैन के पद पर अपर मुख्य सचिव के पद से सेवा निवृत हुए एस राजू को नियुक्त कर दिया गया. राजू ने फॉरेंसिक जाँच की सिफारिश भी की और जब लखनऊ से जांच होकर रिपोर्ट आई तो उसमें साफ़ उल्लेख था कि धांधली हुई है, मसलन :- सुनियोजित तरीके से ओएमआर शीट खाली छुड़वा दी गयी, टेम्परिंग की गयी इत्यादि. 


हैरतअंगेज खुलासा 
2018 में इन्हीं पदों के लिए पुन: परीक्षा करवाई गयी तो हैरत में डालने वाले नतीजे सामने आये. कई वो अभ्यर्थी पास हुए जो पहले चयनित नहीं हुए थे और कई वो अभ्यर्थी धराशायी हो गए जो टॉपर बन गए थे. 


मामले की विजिलेंस जांच के आदेश 
विपक्ष ने जब इस मामले को लेकर हंगामा जारी रखा तो तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत को सदन में विजिलेंस जाँच करवाने का आश्वासन देना पड़ा. इस तरह से जनवरी 2020 में विजिलेंस ने एफआईआर संख्या 1/2020 u/s 420, 468, 471, 120-बी, आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के सेक्शन 13 (1) व (2) के तहत मुकदमा कायम करके विवेचना शुरू की गयी. लेकिन यह विवेचना आज तक आगे नहीं बढ़ी और जाँच अधिकारी इस जाँच पर कुंडली मारे बैठे हैं. 


क्या कहते है डीआईजी विजिलेंस 
डीआईजी अरुण मोहन जोशी ने कहा कि इस भर्ती घोटाले की जाँच गतिमान है, मामला संवेदनशील है जल्द ही जाँच पूरी की जाएगी. आवश्यकता पड़ी तो मैं स्वयं इस मामले का परीक्षण करूँगा, जाँच पूरी होगी. 


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