प्रयागराज. संगम नगरी प्रयागराज में लगे माघ मेले में वैसे तो देश के कोने-कोने से हजारों की संख्या में संत-महात्मा आए हुए हैं, लेकिन इनमें से खरगोश वाले बाबा श्रद्धालुओं के बीच आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. खरगोश वाले बाबा का दर्शन करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए उनके कैंप में दिन भर श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है. दर्जनों खरगोशों के साथ बाबा जब अपने भक्तों के बीच आते हैं तो श्रद्धालुओं की खुशी का ठिकाना नहीं रहता. खरगोश बाबा वैसे तो एक अखाड़े के महामंडलेश्वर भी हैं, लेकिन मेले में आए श्रद्धालु इन्हें खरगोश वाले बाबा के नाम से ही जानते हैं. आखिर कौन हैं यह खरगोश वाले बाबा. इन्हें खरगोशों से इतना लगाव क्यों है. साथ ही आपको बताएंगे कि सफेद खरगोशों के जरिए इनकी साधना में कैसे एकाग्रता आती है.


खरगोश बाबा का असली नाम महामंडलेश्वर कपिल देवदास नागा जी महाराज है. वह चित्रकूट के मां तारा आश्रम के प्रमुख होने के साथ ही वैष्णव समुदाय के निर्वाणी अणि अखाड़े के महामंडलेश्वर भी हैं. सिर पर पगड़ी और गले में मोतियों की माला डाले खरगोश वाले बाबा अपने पंडाल में आसन पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन व आशीर्वाद देते हैं. कोई श्रद्धालु बाबा को निहारता है तो कोई उनके खरगोशों को. बाबा के आसन पर उनके साथ बड़ी संख्या में खरगोश नजर आते हैं. बाबा के साथ हरदम तकरीबन डेढ़ दर्जन खरगोश मौजूद रहते हैं. हर वक्त खरगोशों के बीच घिरे रहने की वजह से महामंडलेश्वर कपिल देवदास नागा को लोग खरगोश वाले बाबा के नाम से ही जानते हैं.


खरगोशों के लिए तैयार करता हैं स्पेशल खाना
महामंडलेश्वर कपिल देवदास नागा को अपने खरगोशों से खासा लगाव है. वे इन खरगोशों के लिए स्पेशल खाना तैयार कराते हैं. आश्रम और मेले के पंडाल में इनके लिए रोजाना मोमोज और दूसरे व्यंजन तैयार कराए जाते हैं. इसके साथ ही इन्हे फल व सब्जियां अलग से दी जाती हैं. खरगोशों की देखभाल और इनके खान-पान की जिम्मेदारी महामंडलेश्वर कपिल देवदास नागा की शिष्या और उनकी बेटी योगाचार्य राधिका वैष्णव के जिम्मे होती है. यही वजह है कि खरगोश वाले बाबा जब अपने खरगोशों के साथ भक्तों को दर्शन देने के लिए आसन पर विराजमान होते हैं, तो राधिका वैष्णव कुर्सी पर उनके ठीक बगल बैठती हैं.


10 साल पुराना है खरगोश प्रेम
महामंडलेश्वर कपिल देवदास नागा का खरगोश प्रेम तकरीबन दस साल पुराना है. उनका कहना है कि खरगोश का सफेद रंग के होने की वजह से दिखने में सुन्दर व आकर्षक नजर आते हैं. शाकाहारी होने के नाते इनका आध्यात्मिक महत्व भी होता है. इनके बीच रहने से मन को शांति मिलती है. मन एकाग्र होता है तो साधना में किसी तरह की कोई कठिनाई नहीं आती. बाबा के मुताबिक, प्रत्येक जीव में परमात्मा का वास होता है. ऐसे में सभी जीवों की सेवा करनी चाहिए. इसी वजह से वह पशुओ को पालते हैं और पूरे मनोयोग के साथ उनकी सेवा भी करते हैं. बाबा इससे पहले तमाम सांप और बंदर भी पाल चुके हैं. खरगोशों के अलावा उन्हें गायों से भी खूब लगाव है.


खरगोशों की देखभाल करने वाली योगाचार्य राधिका वैष्णव के मुताबिक साधना और दूसरे अनुष्ठानों के बीच इन खरगोशों की सेवा के लिए भी अलग से समय निकालना पड़ता है. हालांकि उनका दावा है कि मन में सेवाभाव होने की वजह से ऐसा करने में उन्हें कोई ख़ास दिक्कत नहीं होती. आश्रम से जुड़े कथा वाचक मधुसूदन शास्त्री का कहना है कि खरगोशों की सेवा करने के बाद किसी साधना से कम सुख व संतुष्टि नहीं मिलती. माघ मेले में खरगोश वाले बाबा का पंडाल संगम नोज से पुल नंबर एक पार करने के बाद खालसा चौक में है.


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