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UP Election 2022: अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा ये पुल, जान हथेली पर रखकर गुजर रहे लोगों ने ले लिया ये बड़ा फैसला

पक्के पुल का निर्माण ना होने के कारण ग्रामीणों को लगभग आठ से दस किलोमीटर दूर का सफर तय करना पड़ता है. इसी को देख ग्रामीणों ने ड्रेन पर लकड़ी द्वारा पुल का निर्माण कराया गया.

UP Assembly Election 2022: चुनाव के समय नेता जनता से बड़े-बड़े वायदे करते हैं और लोक लुभावन सपने दिखाकर सत्तासीन हो जाते हैं लेकिन पांच साल तक उनको जनता का दुख दर्द दिखाई नहीं देता. ऐसा ही एक दर्द जो सदर विधानसभा क्षेत्र के रामपुर बघेला के ग्रामीणों का है जहां ड्रेन पर बने लकड़ी के पुल से लोगों को गुजरने के लिए मजबूर होना पड़ आ रहा है. जान हथेली पर रखकर बच्चे ,बूढ़े ,जवान सभी हजारों की संख्या में प्रतिदिन गुजरते हैं. इस लकड़ी के पुल के पक्के निर्माण लिए ग्रामीणों द्वारा नेताओं सहित अधिकारियों तक के दरवाजे खटखटाये जा चुके हैं लेकिन अभी तक किसी की नजरें इसपर नहीं पड़ीं. जिससे नाराज ग्रामीणों ने नेताओं के लोक लुभावने वादे में  इस बार ना फंस कर वोट ना देने का फैसला किया है.

जान हथेली पर रखकर गुजरते हैं लोग
सदर विधानसभा क्षेत्र के रामपुर बघेल गांव के पास से महाराजगंज ड्रेन गुजरता है जो सीधे रामपुर बघेला को राही से जोड़ता है लेकिन उसपर पक्के पुल का निर्माण ना होने के कारण ग्रामीणों को लगभग आठ से दस किलोमीटर दूर का सफर तय करना पड़ता है. इसी को देख ग्रामीणों ने ड्रेन पर लकड़ी द्वारा पुल का निर्माण कराया गया और उसी पुल से पैदल वे दो पहिया वाहन से लोग गुजरते हैं लेकिन जिस तरह जान हथेली पर रखकर लोग गुजरते हैं वह निश्चित तौर पर दिल को झकझोरने वाला है. इस पुल से गुजरते हुए कई बार बड़े हादसे भी हो चुके हैं जिसमें कई लोगों को गंभीर चोटें भी आ चुकी हैं.  बच्चे विद्यालय जाते समय कई बार पानी में गिर चुके हैं लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि का ध्यान इस ओर आकृष्ट नहीं होता है और अगर होता भी है तो या तो पल्ला झाड़ लेते हैं या फिर देखने की बात कहकर टाल देते है. 

लोगों को होती है दिक्कत
छोटे-छोटे बच्चे भी जान जोखिम में डालकर लकड़ी के पुल को पार करते हैं. बच्चों का कहना है कि डर तो बहुत लगता है लेकिन स्कूल जाना भी जरूरी है.  वहीं, एक बच्चे ने कहा कि एक बार पुल को पार करते समय नीचे नहर में गिर गए थे जिसके बाद गांव वालों ने उसे बाहर निकाला.  इस तरह जान जोखिम में डालकर  बच्चों को विद्यालय आना जाना पड़ता है. इतना ही नहीं बूढ़ी महिलाएं तो बैठकर किसी तरह पुल को पार करती हैं तब जाकर दूसरी तरफ पहुंच पाती हैं.  इस तरह हर साल ग्रामीणों द्वारा लकड़ी का पुल बनाया जाता है जो बरसात में बह कर नष्ट हो जाता है. बरसात बाद फिर पुल बनता है . दशकों से यही प्रक्रिया चली आ रही है लेकिन पक्के पुल के निर्माण की तरफ किसी ने सकारात्मक पहल नहीं की.

विधायक ने कहा हमारे बजट से बाहर
सदर विधानसभा क्षेत्र की विधायिका अदिति सिंह से भी लोगों ने अपील की लेकिन सकारात्मक उत्तर नहीं मिला. ग्रामीणों का कहना है कि अदिति  ने कहा यह पुल हमारे बजट के बाहर है.  वहीं इसके पहले अदिति के पिता अखिलेश सिंह पच्चीसों साल से सदर से विधायक रहे और सोनिया गांधी भी रायबरेली की सांसद हैं.  कांग्रेस की केंद्र सरकार होने के बावजूद सोनिया गांधी ने ग्रामीणों की इस समस्या की तरफ ध्यान नहीं दिया. अब देखना यह है की ग्रामीणों की यह समस्या जस की तस बनी रहती है या फिर किसी सफेदपोश का ध्यान आकृष्ट होता है और ग्रामीणों को इस समस्या से निजात दिलाता है.  ऐसी उम्मीद लगाए ग्रामीण पुल बनने की आस लगाए बैठे हैं.

ग्रामीणों ने कहा इसबार वोट नहीं देंगे
ऐसे ही विकास के दम पर सभी पार्टियां अपना दम भर रही हैं और लोगों को समझाने की कोशिश भी कर रही हैं. सभी राजनीतिक दल अपने-अपने विकास कार्यों को गिनाने से चूक नहीं रहे हैं लेकिन क्या यही विकास कार्य है.  ऐसे ही विकास कार्य हैं जो कराए गए हैं. जिस पुल से हजारों की संख्या में लोग रोज गुजरते हैं और दर्जनों गांव उससे जुड़े हुए हो वह पुल अभी भी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है . जिसे ग्रामीण खुद लकड़ी से बनाते हैं और उस पर से रिस्क लेकर गुजरते हैं. फिलहाल ग्रामीणों ने इस बार वोट ना देने का भी मन बना रखा है. कहना है जब विकास ही नहीं होता तो जनप्रतिनिधि चुनने से क्या फायदा?

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