लखनऊ, वीरेश पांडेय। भले ही विशाल ट्रेन और उसके हॉर्न की आवाज से हाथी को हटाने में मशक्कत करनी पड़े। लेकिन एक छोटी सी मधुमक्खी की आवाज से हाथियों का झुंड भी रास्ता बदल लेता है। रेलवे उत्तर पूर्वी राज्यों में इस तकनीक का प्रयोग कर हाथियों को ट्रैक से दूर भगा रहा है। इससे हाथियों की जान बचाई जा रही है और रेल हादसों को भी रोका जा रहा है।


देशभर में ऐसे कई फॉरेस्ट रिजर्व एरीया हैं जहां से रेलवे लाइन गुजरती है। ऐसे में खासकर झारखंड, बंगाल असम और उत्तर प्रदेश के जंगलो में पाये जाने वाली हाथियों के लिए रेलवे ट्रैक जानलेवा साबित होते रहे हैं। ट्रेन की पटरियों पर आए दिन जंगली हाथी हादसे का शिकार होकर अपनी जान गंवा देते हैं। हालांकि कई स्थानों पर रेलवे की तरफ से फाटक नुमा रास्ते बनाए गए हैं। लेकिन, हाथियों का झुंड में मस्त होकर चलना और ट्रैक पर आ रही ट्रेन को नजरअंदाज करना इनके लिए कई बार जानलेवा साबित होता है।



अब इसी को देखते हुए रेलवे के नॉर्थ फ्रांटियर जोन की अनोखी पहल बेहद कारगर साबित हो रही है। साल भर पहले इसकी शुरुआत उत्तरी बंगाल और असम के जंगलों में की गई थी। रेल फाटको पर ट्रेन आते समय 'bee' यानी मधुमक्खी की आवाज की रिकॉर्डिग बजाई जाती है जिससे हाथियों के झुंड रेल पटरियों के पास नहीं आते हैं। हाथियों की बड़ी आबादी वाले इलाके में रेलवे ट्रैक के पास लाउडस्पीकर भी लगाए गए हैं। लाउडस्पीकरों से निकलने वाली मधुमक्खियों की आवाज हाथियों की जान बचाने में कारगर साबित हो रही है।



दरअसल, हाथियों को 'मधुमक्खी' की भनभनाहट वाली आवाज पसंद नहीं होती, इसलिए वो इस आवाज से दूर भागते हैं। हाथियों के इसी स्वभाव को देखते हुए रेलवे ने हाथी बहुल जंगली इलाकों की ट्रेन की पटरियों के पास ऐसे लाउडस्पीकर लगाने शुरू किए हैं जिनसे मधुमक्खियों के झुंड की आवाज निकलती है। असम के रांगिया डिविजन में अब तक सिर्फ 12 जगहों पर इन लाउडस्पीकरों को लगाया गया है जिसके बाद वहां हाथियों के मरने की संख्या में तेजी से गिरावट देखी जा रही है।



असम में हथियों की संख्या सबसे अदिक है। यहां फिलहाल करीब 5700 हाथी मौजूद हैं। 2013 से अब तक असम में करीब 70 हाथी ट्रेन से टकराकर मारे गए हैं। लेकिन करीब 50 जगहों पर इस तरह के लाउडस्पीकर लगा देने के बाद न केवल हाथियों की जान बचाने में बड़ी कामयाबी मिली है बल्कि ट्रेन हादसों को भी रोका जा सका है।



रेलवे बोर्ड के प्रवक्ता आरडी बाजपेई का कहना है की इस प्लान 'bee' में महज दो हजार रुपए का खर्च आ रहा है। लिहाजा इसे ऐसी दूसरी जगहों पर भी लगाया जाएगा जहां हाथियों का झुंड ट्रेन ट्रैक से गुजरता हो। आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच सालों में रेलवे ड्राइवरों ने अपनी सावधानी से करीब 570 हाथियों की जान ट्रेनों को समय रहते रोक कर बचाई है।



पूरे देश में ट्रेन से दर्जनों हाथी मरते हैं हर साल सिर्फ असम में ही हर साल औसतन 12 हाथी ट्रेन की टक्कर से मरते हैं। पिछले पांच साल में यहां 61 हाथी ट्रेन की चपेट में आकर मर चुके हैं। असम के अलावा झारखंड, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भी हर महीने ट्रेन दुर्घटना में हाथियों की मौत होती रहती है।