Independence Day 2021: अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम कर दिया था अमर शहीद राज नारायण ने, ब्रिटिश सरकार ने दी थी फांसी
राज नारायण मिश्र ने भारत छोड़ों आंदोलन में भाग लिया था. यही नहीं उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को परेशान कर दिया था. 1944 में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने फांसी की सजा सुना दी थी.
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Independence Day 2021: लखीमपुर खीरी वीर क्रांतिकारी शहीद राज नारायण मिश्र जिनकी भारत छोड़ो आंदोलन में 1942 की क्रांतिकारी में हिस्सा लिया और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान शस्त्र इकट्ठा करने के प्रयास में हुई हत्या तथा तोड़फोड़ की कार्यों के सिलसिले के मामले में इन्हें लखनऊ में 8 दिसंबर 1944 में फांसी दी गई थी. वीर क्रांतिकारी ने हंसते हुए फांसी को स्वीकार किया और शहीद हो गए.
भारत छोड़ो आंदोलन में लिया हिस्सा
लखीमपुर खीरी के तहसील मितौली इलाके के भीखमपुर गांव के रहने वाले पंडित राज नारायण मिश्र पांच भाई थे और यह सबसे छोटे थे. मात्र 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने शस्त्र इकट्ठा करके अंग्रेजों को भगाने का प्रयास किया. जिसमें 1942 की क्रांतिकारी भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया, उसमें गिरफ्तार कर लिए गए. उनको फांसी की सजा दी गई. 24 वर्ष की आयु में राजनारायण मिश्र हंसते-हंसते शहीद हो गए. वहीं, लखीमपुर शहर में उनके नाम पर एक स्मारक बनाया गया है, आंख अस्पताल सीतापुर के नाम से है, वहीं पर राष्ट्रीय पर्व और उनकी मूर्ति पर फूल माला चढ़ाए जाते हैं.
अंग्रेजी हुकूमत को परेशान कर दिया था
शहीद राज नारायण मिश्र के भाई के बेटे दीपू मिश्रा ने बताया कि, उस वक्त अंग्रेजी हुकूमत में लोगों को काफी परेशान किया जाता था. हमारे बाबा राजनारायण मिश्र ने जब शस्त्र इकट्ठा करते वक्त जिलेदार की हत्या हो गई थी, उस वक्त जानकारी पर अंग्रेज सैनिक पहुंचे और घर में सब तहस नहस कर दिया. आग लगा दी साथ घर को खोदकर नमक बो दिया था. वहीं, सैनिक आने की सूचना पर सभी लोग किसी तरीके से जान बचाकर भाग गए थे, लेकिन शहीद राज नारायण मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया गया. 24 वर्ष की आयु में उनको लखनऊ के कारागार में फांसी दे दी गई थी, साथ ही उनका कहना है कि फांसी की सजा पाए हुए इससे उनको काफी प्रसन्नता भी हुई और इससे उनका वजन भी बढ़ गया था.
उपेक्षा से दुखी परिवार
दीपू मिश्रा को स्व राजनरायन मिश्र बाबा का देशभक्त शहीद होने की खुशी है, उन्हें तो गम है इस हालात पर कि, आजकल उनकी कोई सुनने वाला नहीं, परिवार को कोई देखने वाला नहीं, वहीं सरकारें तिरस्कार लगातार कर रही हैं. गांव में सड़क बनी लेकिन उनके दरवाजे को छोड़कर सड़क बनाई गई कहा कि ऐसा दुर्व्यवहार तो नहीं होना चाहिए. एक शहीद के परिवार से. किसी पर्व पर ही केवल तस्वीर को फूल मालाओं से लाद दिया जाता है उसके बाद भूल जाते हैं अधिकारी. दीपू मिश्रा वह वक्त याद करके और आज का वक्त याद करके रोने लगते हैं.
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