प्रयागराज (मोहम्मद मोइन). कानपुर में विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद यूपी के सरकारी अमले ने माफियाओं और टॉप क्रिमिनल्स की जो लिस्ट तैयार की है, उनमे कुंडा के बाहुबली विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया का नाम शामिल नहीं है. सैंतालीस आपराधिक मुक़दमे के बावजूद राजा भैया का नाम शामिल नहीं होने पर सवाल उठ रहे हैं. विपक्षी साफ आरोप लगा रहे हैं कि लंबी-चौड़ी क्रिमिनल हिस्ट्री और पोटा व गैंगस्टर के तहत कार्रवाई होने के बावजूद राजा भैया पर सरकार मेहरबान है. आरोप यह भी लग रहा है कि बाहुबली विधायक पर सरकार की मेहरबानी सिर्फ इसलिए है, क्योंकि इन दिनों वह बीजेपी के करीब जा पहुंचे हैं और मौके -बेमौके उसकी मदद कर रहे हैं.
प्रयागराज जोन में राजा भैया से कम मुक़दमे वालों को भी टॉप क्रिमिनल्स की लिस्ट में रखा गया है. ऐसे में लिस्ट पर सवाल उठना स्वाभाविक है. राजा भैया पर हत्या -हत्या के प्रयास, डकैती, सरकारी काम में बाधा पहुंचाने और आतंकवाद निरोधक क़ानून पोटा के साथ ही गैंगस्टर के तहत भी मुक़दमे दर्ज हैं, लेकिन उन पर सबसे गंभीर आरोप अपने तालाब में मगरमच्छ पालकर लोगों को उसमे ज़िंदा डालने का है.
कुंडा सीट से लगातार छह बार विधायक
राजा भैया प्रतापगढ़ की कुंडा विधानसभा सीट से लगातार छह बार विधायक रहे हैं. राजनाथ सिंह के नाते उनकी नजदीकियां कभी भाजपा के साथ थीं तो कभी अमर सिंह की वजह से समाजवादी पार्टी में. समाजवादी सरकार में वह दो बार कैबिनेट मंत्री भी रहे. हालांकि वह सीधे तौर पर कभी किसी पार्टी में शामिल नहीं हुए और हर बार निर्दलीय चुनाव ही लड़ते रहे. देश में लोकतंत्र कायम है. राजा भैया लोकतांत्रिक तरीके से होने वाले चुनाव से ही विधायक चुने जाते हैं, लेकिन शायद यह कम लोगों को ही पता होगा कि राजा भैया चुनाव के दौरान भी न तो किसी वोटर के दरवाजे जाते हैं और न ही हाथ जोड़कर उससे वोट मांगते हैं. पूरे चुनाव में वह पांच -छह जनसभाएं करते हैं और वहीं से शक्ति प्रदर्शन कर वोटरों को रिझाते हैं. लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने जनसत्ता नाम से अपनी अलग पार्टी भी बनाई थी, लेकिन एमएलसी चुनाव में उन्होंने बीजेपी की मदद की थी. लोकसभा चुनाव के बाद से उनकी पार्टी ठंडे बस्ते में है.
मायावती के राज में लगा था गैंगस्टर व पोटा एक्ट
राजा भैया के खिलाफ सैंतालीस मुकदमे दर्ज हैं. उनका अपना गैंग भी है. मायावती राज में राजा भैया और उनके पिता उदय प्रताप को गैंगस्टर और पोटा के तहत जेल भेजा गया था. राजा पर डिप्टी एसपी जियाउल हक़ की हत्या का भी आरोप लगा था. इस मामले में एफआईआर दर्ज होने के बाद उन्हें कैबिनेट मंत्री की कुर्सी भी छोड़नी पडी थी. हालांकि इस चर्चित मर्डर केस में सीबीआई ने बाद में उन्हें क्लीन चिट दे दी थी. लम्बी चौड़ी क्रिमिनल हिस्ट्री होने के बावजूद राजा भैया का नाम एसटीएफ द्वारा तैयार की गई टॉप क्रिमिनल्स की लिस्ट में नहीं है. इसे लेकर सवाल उठना लाजिमी है.
विपक्षियों का साफ़ तौर पर कहना है कि लिस्ट तैयार करने में भेदभाव किया जा रहा है. विपक्षी पार्टियों से जुड़े लोगों को बेवजह अपराधी घोषित किया जा रहा है, जबकि सियासी फायदे के मद्देनजर तमाम लोगों पर कृपा बरसाई गई है. हालांकि बीजेपी सांसद रीता बहुगुणा जोशी का कहना है कि भेदभाव के आरोप गलत व बेबुनियाद है. सरकारी अमला क़ानून की जद में अपना काम कर रहा है. योगी राज में अपराधी को अपराधी की नज़र से देखा जाता है और उससे कोई सहानुभूति नहीं बरती जाती.
एसटीएफ की लिस्ट में अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे बाहुबलियों के नाम तो हैं. उनके खिलाफ पिछले कुछ दिनों से कार्रवाई भी की जा रही है, लेकिन राजा भैया का नाम न होना कई सवाल खड़े कर रहा है.
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