Raja Bhaiya News: जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नेता और प्रतापगढ़ स्थित कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया ने मंगलवार शाम जब यह ऐलान किया कि वह किसी भी पार्टी को समर्थन नहीं देंगे और उनके समर्थक खुद फैसला लेने को स्वतंत्र हैं. इसके बाद पूर्वांचल की सियासत में खलबली मच गई. दो महीने पहले राज्यसभा की 10 सीटों के हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को समर्थन देने वाला राजा भैया का यह रुख लोगों की सोच के विपरीत रहा.


माना जा रहा था कि राज्यसभा में जब राजा भैया ने समर्थन किया है तो लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी के साथ जाएंगे. हालांकि बीते दिनों गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करने वाले राजा भैया उस वक्त बीजेपी के मंच पर नजर नहीं आए जब प्रतापगढ़ में पार्टी ने एक जनसभा की.


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हालांकि राजा भैया के लिे यह नया नहीं है. उनकी सियासत की शुरुआत निर्दलीय हुई थी. साल 1993 में सियासत में एंट्री करने वाले राजा भैया समाजवादी पार्टी की सरकार में मंत्री रहे. यह बात भी सार्वजनिक है कि सपा संस्थापक और संरक्षक मुलायम सिंह यादव का राजा भैया को संरक्षण प्राप्त रहा. बहुजन समाज पार्टी की सरकार में जब उन्हें जेल भेजा गया तब सपा ने इसका जमकर विरोध किया था. बाद में जब साल 2003 में सपा की सरकार आई तो वह भी बनाए गए.


क्यों जरूरी माने जाते हैं राजा भैया?
सवाल यह उठता है कि आखिर यूपी में दो मुख्य दल समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी, हमेशा राजा भैया का साथ पाने के लिए तैयार क्यों रहते हैं?  बीजेपी और सपा दोनों जानते हैं कि अगर राजा भैया उनके साथ रहेंगे तो पूर्वांचल की सीटों पर उनके प्रभाव का फायदा उन्हें मिलेगा. इसके अलावा क्षत्रिय मतदाता आसानी से उनके साथ आ सकते हैं. चुनाव विधानसभा का हो या लोकसभा, हर इलेक्शन में राजा भैया का पूर्वांचल की कई सीटों पर असर माना जाता है. इसमें कौशांबी और प्रतापगढ़ मुख्यतः शामिल है.