स्वतंत्र भारत में भी राजे-रजवाड़े सक्रिय हैं. अंतर सिर्फ इतना आया है कि अब वो अपने राज दरबार में नहीं बल्कि विधानसभाओं और संसद में बैठते हैं. वहां वो अपने इलाके की जनता के मुद्दे उठाते हैं. जनता के हित की लड़ाई लड़ते हैं. यहां तक राज परिवारों से आने वाले ये लोग लोकतंत्र में मंत्री बनकर भी खुश हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी कई राजघराने सक्रिय हैं. आइए हम बात करते हैं आगरा जिले के भदावर राजघराने की.
आजादी के बाद शुरू की राजनीति
आगरा का भदावर राजघराना आजादी के बाद से ही राजनीति में सक्रिय हो गया था. इस राजघराने के लोग बाह विधानसभा सीट का प्रतिनिधिनित्व करते हैं. इस राजपरिवार से जुड़े लोग अब 11 बार इस सीट से विधायक चुने जा चुके हैं. बाह में कांग्रेस और दूसरी पार्टियों को तभी सफलता मिली जब इस राजपिरवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं था. ऐसा 4 चुनावों में हुआ. बाह तहसील जिला मुख्यालय आगरा से करीब 100 किमी दूर है. वहां आने-जाने का बेहतर साधन तक नहीं है.
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भदावर राजघराने के राजा महेंद्र रिपुदमन सिंह पहली बार 1952 में पहली बार विधायक चुने गए थे. उन्होंने यह चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता था. हालांकि बाद में वो जनता पार्टी में शामिल हो गए थे. उन्होंने 1980 तक बाह विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया. उस समय भी वो जनता पार्टी में ही थे. साल 1984 में हुई इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा. उस समय यहां से कांग्रेस उम्मीदवार की जीत हुई थी. इसके बाद 1989 के चुनाव में राजा महेंद्र रिपुदमन सिंह के बेटे राजा अरिदमन सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे और जीते थे. इसके बाद 1991 का चुनाव उन्होंने जनता दल के टिकट पर लड़ा. वो 1996 के चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी के टिकट पर उन्होंने 1996 और 2002 का चुनाव जीता. उन्हें 2007 में हाथी की आंधी में बसपा के मधुसूदन शर्मा के हाथों हार देखनी पड़ी थी. यह हार इस राजपरिवार के लिए झटका थी. इसके बाद हवा का रुख भांपकर राजा अरिदमन सिंह सपा की साइकिल पर सवार हो गए. उन्होंने 2012 का चुनाव सपा के टिकट पर जीता. उन्हें अखिलेश यादव की सरकार में मंत्री भी बनाया गया था.
अनोखा होता है चुनाव प्रचार
बाह भौगोलिक रूप से काफी बड़ा इलाका है. इसकी सीमाएं राजस्थान और मध्य प्रदेश से लगती हैं. वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव का पैतृक गांव सैफई भी बाह से बहुत दूर नहीं है. इस दूरी का असर राजा अरिदमन सिंह और अखिलेश यादव के रिश्तों में भी दिखता है. भदावर राजघराने का इस इलाके में कितना असर है, इसे ऐसे समझ सकते हैं कि इस परिवार का कोई भी सदस्य हाथ जोड़कर वोट नहीं मांगने जाता है. इस राजपरिवार के लोग इलाके में जाते हैं. वहां सभा होती है और एक व्यक्ति चुनाव और चुनाव चिन्ह से जुड़ी जानकारियां लोगों को देता है. इसके बाद सभा खत्म हो जाती है. लोगों का यह सम्मान भदावर राजाओं के चुनाव में जीत की गारंटी भी बनता है.
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साल 2017 का चुनाव राजा अरिदमन सिंह की पत्नी पक्षालिका सिंह ने बीजेपी के टिकट पर लड़ा था. पक्षालिका सिंह ने बसपा के मधुसूदन शर्मा को 23 हजार 143 वोट के अंतर से हराया था. पक्षालिका को 80 हजार 570 और शर्मा को 57 हजार 427 वोट मिले थे.