Kajli Mela: महोबा में कजली मेला की शुरुआत, यहां रक्षाबंधन के अलगे दिन बांधी जाती है राखी, जानें वजह
Mahoba Kajli Mela: बारहवीं शताब्दी के गौरवशाली चंदेल साम्राज्य के वैभवपूर्ण अतीत की स्मृतियों को संजोए उत्तर भारत का सबसे प्राचीन और विशाल महोबा का कजली मेला गुरुवार से आरंभ हो गया.
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UP News: उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के महोबा (Mahoba) जिले में रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) के अगले दिन राखी बांधने की प्राचीन और ऐतिहासिक परंपरा है. इस दिन वीर योद्धा आल्हा-ऊदल की वीरता को याद करते हुए विशाल कजली महोत्सव विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है. इसमें हाथी, ऊंट और नाचते हुए घोड़ों के साथ झांकियां निकाली जाती हैं. इसे देखने के लिए लाखों की भीड़ जुटती है. उत्तर भारत में अपनी आन, बान और शान के लिए मशहूर महोबा के ऐतिहासिक कजली मेला 842वां उद्घाटन सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल (Pushpendra Singh Chandel) और डीएम-एसपी ने संयुक्त रूप से फीता काटकर किया है.
इस मौके पर एमएलसी, विधायक सहित अन्य जनप्रतिनिधि भी मौजूद रहे. नगर पालिका अध्यक्ष ने मुख्य अथितियों को पगड़ी पहनाकर जुलूस का आरंभ कराया. कजली मेले में निकली शोभा यात्रा देखने के लिए बड़ी भीड़ नजर आई. सुरक्षा के मद्देनजर शहर में काफी मात्रा में पुलिस तैनात की गई. महोबा, वीर आल्हा-ऊदल की इस नगरी का ऐतिहासिक महत्व रहा है. इन्हीं वीर युद्धाओं से दिल्ली का राजा पृथ्वीराज चौहान हार कर भाग गया था. महोबा के इस ऐतिहासिक शौर्य और पराक्रम को याद करने के लिए सावन महीने में कजली मेला पिछले सैकड़ों सालों से चला आ रहा है.
शोभा यात्रा होती है मेले की खासियत
इस मेले में यूपी के जिलों से ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश से भी लोग आते हैं. इस मेले की खासियत शोभा यात्रा होती है, जिसको देखकर आल्हा उदल और उनके गुरु ताला सैय्यद को याद किया जाता है. मगर आज भी यह उत्तर भारत का मशहूर मेला राजकीय नहीं हो पाया., जिसका मलाल भी यहां के लोगों को है, मगर जनप्रतिनिधि इसे जल्द राजकीय मेला कराने के प्रयास में लगे हुए हैं. शहर के हवेली दरवाजे से शुरू हुई शोभायात्रा में लाखों की भीड़ देखने को मिली. शोभायात्रा में हाथी पर सवार आल्हा और घोड़े पर बैठे उदल सहित आल्हा खंड में लिखे सभी इतिहास के पात्रों की झांकिया देखने के लिए लोग उमड़ पड़े.
जुलुस में आधा सैकड़ा घोड़े नृत्य करते हुए लोगों का मन मोह रहे थे. इस दौरान शौर्य और वीरता के महाकाव्य आल्हा के फिजाओं में गूंज रहे ओजस्वी स्वरों के बीच समूचे जनपद में भाई बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्योहार भी पारम्परिक हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया. इस मौके पर सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने कहा कि ये देश का ऐतिहासिक विशेष महत्व का मेला है. ये एक परम्परा है जिसे नगर पालिका भव्य रूप से आयोजित करती है. इस मेले को राजकीय मेला कराने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है.
'हमारे पूर्वजों की याद दिलाता है कजली मेला'
इस मौके पर एमएलसी जीतेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा कि उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला है जो आल्हा-ऊदल की शौर्य का प्रतीक है. इस वीर भूमि में यह मेला एक परंपरा है. वहीं विधायक राकेश गोस्वामी ने कहा कि ये कजली मेला हमारे पूर्वजों की याद दिलाता है. इस मेले को आगे बढ़ाने की अपील भी जिले के लोगों से की गई. वहीं नगर पालिका अध्यक्ष संतोष चौरसिया ने मेले की व्यवस्थाओं को बेहतर रखने के लिए पालिका कर्मचारियों की कई टीम गठित की है. उन्होंने कहा कि ये महोत्सव नगर के वक्त से इसका महत्व रहा है. इसका सम्मान बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं.
डीएम मनोज कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय पहचान बनाए हुए उत्सव हैं. यहां की वीरता प्रसिद्ध है, जिसे बढ़ाने के लिए जिला प्रशासन काम कर रहा है. राजकीय मेला कराने के लिए शासन को पत्र लिखा जाएगा. मेले का गुरुवार से आगाज हो गया है. अब एक सप्ताह तक मंच से सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे और कीरत सागर तालाब किनारे लगे मेले का लोग आनंद लेंगे. वहीं आल्हा मंच से आल्हा गायन का मंचन होगा.
सुरक्षा को लेकर मेला चौकी बनाई गई
मेले की सुरक्षा को लेकर पुलिस अधीक्षक अपर्णा गुप्ता ने बताया कि इसमें बुंदेलखंड और प्रदेश के आलावा अन्य राज्यों से भी लोग मेला देखने आते हैं. सुरक्षा के मद्देनजर मेला चौकी बनाई गई है. बाहरी जिलों से भी पुलिस मुहैया कराई गई है. पर्याप्त पुलिस बल तैनात है. साथ ही जाम से निपटने के लिए अतिरिक्त ट्रैफिक पुलिस व्यवस्था भी की गई है.
बारहवीं शताब्दी के गौरवशाली चंदेल साम्राज्य के वैभवपूर्ण अतीत की स्मृतियों को संजोए उत्तर भारत का सबसे प्राचीन और विशाल महोबा का कजली मेला गुरुवार से आरंभ हो गया. वीर भूमि महोबा में कजली मेला 'विजय पर्व' के रूप में मनाया जाता है. इतिहासकारों के अनुसार सन् 1182 ईसवी में चंदेलों और पृथ्वीराज चौहान की सेना के बीच यह युद्ध सावन की पूर्णिमा के दिन कीरत सागर के किनारे हुआ था. महोबा के चंदेल शासक के सेनापति वीर आल्हा, ऊदल ने अपने शौर्य और पराक्रम से दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान की सेना को खदेड़ दिया था और इसके बाद राखी का पर्व मनाया गया था.
सद्भावना का प्रतीक माना जाता है मेला
यही वजह है कि इसी विजय पर्व की याद में यहां एक दिन बाद बहन अपने भाई की कलाई में राखी बांधकर रक्षाबंधन का पर्व मनाती है. एक सप्ताह तक चलने वाले इस मेले में पारम्परिक लोक नत्य के साथ लोगों के मनोरंजन के लिए अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. इस बार भी कई सांस्कृतिक कार्यक्रम और कवि सम्मलेन का आयोजन होना है. यहां हिंदू-मुसलमान और सिख-इसाई सभी कजलियों को पवित्र मानकर सम्मान करते हैं. महोबा का यह कजली महोत्सव सद्भावना का प्रतीक माना जाता है.
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