Saharanpur News: उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने मदरसों में संस्कृत का भाषा को अनिवार्य करने का फैसला लिया है. उत्तराखंड के मदरसों में जल्द ही बच्चे संस्कृत की पढ़ाई करते देखे जा सकेंगे, इसके लिए शिक्षा छात्रों को पंडित देंगे. धामी सरकार के इस फैसले पर प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया है. उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड की इस पहल के बाद सहारनपुर में मदरसा संचालकों ने कहा इसमें कोई हर्ज नहीं.


मौलाना मोहम्मद याकूब बुलंदशहरी का कहना था कि इसमें कोई हर्ज नहीं है. जितने भी जबाने, उलूम, फुनूम आदमी जितने भी हासिल करें. उसमे आदमी की अपनी सलाहियत में निखार पैदा होता है. अगर सरकार ऐसा कदम उठा रही है यदि सरकार दीनी इस्लामिक तालीम के साथ-साथ और दूसरी और जवानों में भी माहिर करना चाहती है इसमें हर्ज ही क्या है.


उत्तर प्रदेश का मामला उत्तर प्रदेश की सरकार के साथ है. जहां तक मदरसों की बात है तो मदरसे इस्लामिक तालीम के एक उदाहरण है. हमारे कानून के अंदर तमाम हिंदुस्तानियों को अपने अपने धर्म की तालीम हासिल करने का अधिकार है. इसी के लिए मदारीसा इस्लामिक कायम किए गए है. इसमें इस्लामिक तालीम होती है जो बरसों से चली आ रही है. 


'सरकार अपने सिलेबस में कुछ एड करना चाहती है तो उसमें क्या हर्ज'
उन्होंने कहा कि, यूपी में 1500 मदरसे हैं जिनमें से 500 मदरसे ऐसे हैं जो सरकार के अधीन है. सरकार अपने सिलेबस में कुछ ऐड करना चाहती है तो हर्ज की क्या बात है. फायदा तो सरकार की नीयत पर होगा, जब सरकार पढ़ने वालों को नौकरी देगी. जो पढ़ना चाहते हैं उनको आगे बढ़ाएगी तो फायदा होगा. यदि सरकार किसी चीज को अपना नाम देकर के बीच में छोड़ देगी तो कोई फायदा नहीं होगा. सरकार उर्दू के टीचरों को भर्ती नहीं कर रही है सरकार मदरसों को ग्रांट पर नहीं ले रही है. पहले मदरसों को जो सहूलियत मिलती थी. वह सब बंद होती जा रहे हैं. रजिस्ट्रेशन बंद कर दिए गए हैं तो क्या फायदा होगा नुकसान हो रहा है.


सहारनपुर पहुंचे आम आदमी पार्टी से मुस्तफाबाद, दिल्ली के विधायक हाजी यूनुस का कहना था कि संस्कृत हो या कोई भी जबान व्यक्ति का जानना मौलिक अधिकार है. सभी को हर जबान जाननी चाहिए चाहे वह उर्दू हो, चाहे वह संस्कृत हो. मैं मदरसा बोर्ड एवं उत्तराखंड सरकार को कहना चाहता हूं जिस तरीके से उन्होंने संस्कृत लागू की मदरसों के अंदर इसी तरह से जो माइनॉरिटी के स्कूल हैं एवं इदारे हैं.


उन सभी में उर्दू भी कंपल्सरी होनी चाहिए. माइनॉरिटी के लिए उर्दू जानना भी बहुत जरूरी होता है. पहले जो गुरुकुल मदरसों की तरह चला करते थे उनमें भी उर्दू पढ़ाई जाती थी संस्कृत के साथ-साथ. जिस तरह से जबानों के जरिए यह नफरत फैलाने का काम किया जा रहा है और एक मैसेज देने का काम किया जा रहा है की देखिए इस वर्ग के लिए हमने यह कर दिया.


'हर जबान को पढ़ने की आजादी होनी चाहिए'
उन्होंने आगे कहा कि, हमें नफरत से उठकर जिस तरह से दिल्ली सरकार ने एवं मुखिया अरविंद केजरीवाल के काम है हर वर्ग के लिए सबका साथ सबका विकास, चाहे वह स्वास्थ्य क्षेत्र में हो, चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में हो, चाहे वह बिजली के क्षेत्र में हो या पानी हो उसका फायदा हर आम आदमी को मिल रहा है. सरकार वह कामयाब होती है जो सबके लिए सोचे दिल्ली में ऐलान किया हुआ है कि वह बच्चे जो किसी भी धर्म से हो और उर्दू पढ़ना चाहते हैं उनके ऊपर पाबंदी नहीं है.


यदि एक कक्षा में उर्दू पढ़ने वाले बच्चे 20 हैं तो उनको एक टीचर उर्दू पढ़ने के लिए मिलता है. इसी तरह हर जबान को पढ़ने की आजादी होनी चाहिए, तभी हमारा देश तरक्की कर सकता है नहीं तो यह पॉलीटिकल स्टंट बनकर रह जाएगा.


(मुकेश गुप्ता की रिपोर्ट)


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